Sunday 2 July 2023

आज के समय गुरु की आवश्यकता

 आज के समय गुरु की आवश्यकता


गुरु की महिमा से हम सभी परिचित हैं।भारत में अनादि काल से गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है।कहा जाता है,' हरि रूठे गुरु ठौर है,गुरु रूठे नहीं ठौर,' यानी हरि के रूठने पर गुरु का आश्रय मिल जाता है,किंतु गुरु के रूठने पर कहीं कोई आश्रय नहीं।

गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति अटूट आस्था,समपर्ण का दिन होता है।आज ही के दिन महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी का भी जन्मदिन है अतः उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का दिन सुनिश्चित किया गया है।

गुरु वह है जो शिष्य को चेतना के शिखर तक पहुंचाने में मदद करे,अन्तर्दृष्टि को जागृत करे, अहंकार को पूर्णतः समाप्त कर समपर्ण के भाव को मजबूत करे।गुरु के सामीप्य से हमारे अन्तर्विकार उसी तरह दूर हो जाते हैं जैसे सूर्य की किरण के आते ही रात्रिभर का अंधकार गायब हो जाता है।मनुष्य रूप में जन्म लेने पर श्रीराम नें गुरु वशिष्ठ से शिक्षा ग्रहण की थी और श्रीकृष्ण नें सांदीपनि से।

गुरु ऊर्जा का असीम भंडार होता है अतः उसे अपनी ऊर्जा को निष्कासित करने के लिए योग्य शिष्यों की आवश्यकता होती है।कहा जाता है कि शिष्य गुरु का चुनाव नहीं करते अपितु गुरु अपने शिष्य का चुनाव करता है।गुरु और शिष्य देह से परे आत्मिक तौर पर एक ही होते हैं।जैसे ही समर्पण का भाव शिष्य में आना शुरू होता है,गुरु की कृपा ऊर्जा के रूप में शिष्य की ओर बहनी शुरू हो जाती है।अतः मान,मद,मोह,अहंकार,पद,वैभव,बौद्धिक श्रेष्ठता आदि समस्त विकारों का समर्पण गुरु के चरणों में कर देने के उपरांत ही गुरु कृपा सम्भव है।

अब प्रश्न ये है कि आज के समय में जहाँ अविश्वास,व्यभिचार,अनैतिकता का बोलबाला है,आये दिन समाचार पत्रों में धर्म के नाम पर आम लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले छद्मवेषधारी गुरु सलाखों के पीछे दिखाई देते हैं।ऐसे में किस पर विश्वास किया जाए!

अब दूसरा प्रश्न ये कि क्या गुरु का देहधारी होना आवश्यक है अगर नहीं तो किसे गुरु मानकर जीवन का ध्येय पूरा किया जाए।

अगर सौभाग्य से देह रूप में इस जीवन में सुयोग्य गुरु मिल जाये तो जीवन की दिशा बदल जाती है।नकारात्मक ऊर्जा,मनोविकार व अन्य मानवोचित दुर्गुण गुरु कृपा प्राप्त व्यक्ति को छू भी नहीं पाते।

लेकिन ये संभव नहीं कि हरेक का जीवंत गुरु से साक्षात्कार हो।गुरु असल में देह मात्र नहीं है।गुरु एक तत्व है,एक विचार है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्यापक है।हर व्यक्ति के अंदर एक गुरु विद्यमान होता है।ध्यान के क्षणों में अंदर स्थित गुरु से साक्षात्कार होता है।

हर व्यक्ति की अपनी एक चेतना होती है जो सदैव सक्रिय रहती है किंतु दुर्भाग्य से सांसारिक विकारों के प्रभाव में आकर व्यक्ति अपनी चेतना के कपाट पूर्णतः बंद कर देता है।उचित अनुचित कार्य के उन क्षणों में अंदर की चेतना आवाज देती है किंतु व्यक्ति उस आवाज को अनदेखा करता है।जीवन पर्यंत ये प्रक्रिया चलती रहती है।ये अंदर की आवाज ही गुरु तत्व है जो हरेक को दिखाई या सुनाई नहीं देती,इसे प्रत्यक्ष अनुभव करने या सुनने के लिए आत्मा पर छाई दुर्गुणों की मलिनता को स्वच्छ करना होता है।गुरु तत्व हमारा दर्पण है जिसमें आत्मदर्शन होते हैं किंतु स्वच्छ प्रतिबिंब देखने के लिए विचारों पर छाई धूल को हटाना अत्यंत आवश्यक है।सार रूप में गुरु शिष्य एक ही तत्व हैं।

यह आवश्यक नहीं कि गुरु की प्राप्ति के लिए हिमायल जाकर साधना की जाए या मठ,मंदिरों में गुरु की खोज की जाए।दैनिक जीवन निर्वाह करते हुए भी गुरु तत्व प्राप्त किया जा सकता है,बस चैतन्य होना ही प्रथम और प्रमुख दीक्षा है।अगर नित्य प्रतिदिन ध्यान या चिंतन में कुछ समय व्यतीत किया जाए तो अंदर की चेतना पुनः सक्रिय होना शुरू हो जाती है।चैतन्य व्यक्ति कुछ भी कार्य करने से पहले अंतर्मन की आवाज सुनता है जो उसे उचित अनुचित के मध्य के भेद को दूर कर जीवन के उद्देश्य को पूरा करने में सहायता करती है ठीक वैसे ही जैसे शिष्य कोई भी कार्य गुरु के परामर्श के बिना नहीं करता है,जीवन के हर मोड़ पर उसे गुरु के सतत मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है उसी तरह चैतन्य व्यक्ति अंदर की चेतना को गुरु तत्व मानकर सफल जीवन निर्वाह करता है।

-अल्पना नागर

Thursday 13 April 2023

नींद में होना

 नींद में होना


अधिकतर नींद में होती हूँ

चलती हूँ, बात करती हूँ

खाना बनाती हूँ

हँसती हूँ नाचती हूँ

मुखौटे चुनती हूँ

भेड़ों के बीच भेड़ बन

खुद को सहज पाती हूँ,

किसी भी बात का कोई अर्थ है या नहीं

मैं सरोकार नहीं रखती

मगर अर्थ पाने के नए आयाम खोजती हूँ

अजीब है मगर सत्य है

'अर्थ' के बिना

जीवन का अर्थ निरर्थक है !


नींद मुझे प्रिय है

नींद में नकार सकती हूँ

'अवाँछनीय एपिसोड'

अस्वीकृत कर सकती हूँ

स्वीकृत यथार्थ को

घटनाओं को अपने हिसाब से

तोड़ मरोड़ सकती हूँ

अनदेखा कर सकती हूँ वो रास्ते

जिनपर चलकर गुजार दिया

जीवन का अधिकांश हिस्सा,



नींद की दुनिया घिरी होती है

कुहासे की मोटी परत से

कभी न छँटने वाला कुहासा

सुना है,कुहासे के उस पार है 

सवेरा

चमकीला सूरज

और जागृत अवस्था

मैं अक्सर खुद को पाती हूँ

इन दोनों के बीच

और महसूस करती हूँ कि

कुहासे के इस पार और उस पार की दुनिया में

अब ज्यादा भेद नहीं रहा

इसलिए पूरे होशोहवास में चुनती हूँ

नींद की बेसुध दुनिया!



नींद में स्पष्ट नजर नहीं आते चेहरे

न समझ आती हैं आवाजें

बस कुछ चलती फिरती आकृतियां

क्षणभर में आकार बदलती घटनाएं

नींद में असामान्य चीजें भी

नजर आती हैं सामान्य,

स्पष्ट चेहरे और परिचित आवाजें

चौंकाती हैं

इसलिए नींद बेहतर है !


पर अफसोस कि

नींद में नहीं लिख सकती कविताएं !

नींद कविताएं पसंद नहीं करती

और कविताएं नींद को पसंद नहीं करती

वो खींचकर ले आती हैं

कुहासे के उस पार/

डालती हैं बाल्टी भर

ठंडा पानी

सुबकियां आने तक,

दिखाती हैं अपने नजरिये से

नया सूर्योदय

खुली हुई खिड़कियां

और मुँह छुपाता कुहासा,


बस यही फ़र्क है

जीवन और मृत्यु के बीच

मैं जब नींद में नहीं होती

कविताएं लिखती हूँ..!

-अल्पना नागर

Tuesday 21 March 2023

कविता का मौन तोड़ना

 कविता का मौन तोड़ना


कविता के अपने उसूल हैं

मिज़ाज हैं..

वो मितभाषी है

संयमी है

वो चुनती है मौन

बनिस्पत कुछ भी अनर्गल कहने के!

वो चुनती है सूक्ष्म अवलोकन

पन्नों पर उतरने से पहले !


कविता जब होती हैं मौन

वो संवाद करती है

मुखर होते दौर से..!!

एक एक कर डालती हैं

चुनौतियों के सिक्के

समय की गुल्लक में

किसी रोज़ भरकर पूरी तरह 

रिक्त हो जाने को !


कविता का मौन होना

दरअसल एक लघु अंतराल है/

घड़ी की तीनों सुइयों के बीच झूलते

प्रतीक्षारत समय जितना !

एक शब्द से दूसरे शब्द के बीच

अनकहे भाव जितना..!

कविता का मौन होना

एक दौर की बेचैनी को

प्रति क्षण महसूस करना है..!!


कविता का मौन तोड़ना

महज पन्नों पर 

स्याही का उतरना नहीं 

एक एक हर्फ़ का 

समय की हथेली पर 

हस्ताक्षर करना है..!


-अल्पना नागर



Friday 24 June 2022

आलेख

 

आधुनिक कविता और उसका प्रभाव

1850 के बाद लिखी गई कविताओं को आधुनिक कविता कहा जाता है।वह दौर परिवर्तनों से भरा हुआ दौर था।प्रथम स्वतंत्रता संग्राम,संचार के साधनों का विकास,आवागमन के साधनों द्वारा संपूर्ण भारत को एक इकाई के रूप में जोड़ा जाना क्रन्तिकारी परिवर्तन था।छापेखाने के आविष्कार से पत्र पत्रिकाएं व समाचार पत्र की पहुँच घर घर में होने लगी,इसी तरह रेडियो टीवी ,शिक्षा आदि के द्वारा भी सोच में सकारात्मक परिवर्तन हुए जिसने आधुनिक कविता के प्रादुर्भाव में महत्वपूर्ण योगदान दिया।आधुनिक कविता विभिन्न तरह के आंदोलनों से होकर गुजरी।सर्वप्रथम छायावादी युग,अज्ञेय युग,प्रगतिवादी युग,प्रयोगवादी युग,से होते हुए आधुनिक कविता नयी कविता के दौर में पहुंची जिसने अब तक के सभी प्रतिमानों को तोड़कर नवीन युग का प्रारंभ किया।छायावादी युग से पूर्व पद्य भारतेंदु युग व द्विवेदी युग में विभाजित था।
नयी कविता सर्वप्रथम 1953 में इलाहाबाद से प्रकाशित पत्रिका 'नए पत्ते' में दिखाई दी।
नई कविता की प्रमुख विशेषता ये है कि यह किसी विशेष शिल्प या वाद में बंधकर नहीं चलती।शिल्प को प्रधानता न देकर भावों को प्रमुखता दी गई है,परंपराओं से विलग नई कविता में नवीन बिम्बों,उपमाओं,उपमानों,प्रतीकों आदि का भरपूर प्रयोग दिखाई देता है जो नई कविता को ताजगी से ओतप्रोत करने में भी सहायक होता है।आधुनिक कविता में संप्रेषण के माध्यम से ज्यादा संप्रेषण को महत्व दिया गया है।आधुनिक कविता में भाषा का आकाश अनंत है यह किसी एक पद्धति में बंधा हुआ नहीं है,नई कविता विभिन्न बोलचाल के तद्भव,तत्सम,अंग्रेजी,संस्कृत आदि सभी शब्दों को चुनकर लोक जीवन की अनुभूतियों को सहजता से स्वीकार करती है।आधुनिक कवि यथार्थ जीवन से विभिन्न तथ्यों को उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह अनुभव करता है,किसी तरह का कोई बनावटीपन नहीं।
भवानीप्रसाद मिश्र के शब्दों में -
"जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख,और उसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख।
कितनी सहजता व सारगर्भित तरीके से मिश्र जी नें अपनी बात संप्रेषित कर दी!कविता का मुख्य उद्देश्य अभिव्यक्ति होता है,बिना लाग लपेट का एक सरल व सहज वाक्य पाठक को कल्पना के अगले वाक्य तक ले जाता है,एक अटूट तारतम्य बंधता चला जाता है।आडंबर से पूर्ण पांडित्य भरी आलंकारिक कविताएं सुनने में व देखने में अवश्य अच्छी लगती हैं किन्तु कई बार ये आम पाठक की समझ से परे होती हैं ठीक जैसे पानी की अधिकता होने पर बाढ़ की स्थिति हो जाती है लेकिन रिमझिम फुहारों से न केवल मन भीगता है अपितु वह पानी धीरे धीरे जमीन में अवशोषित होकर लाभकारी भी होता है।आधुनिक कविता पर आक्षेप है कि यह पश्चिम की नकल पर आधारित है,इसी वजह से नई कविता में नकारात्मकता,जीवन के प्रति उदासीनता आदि भाव देखने को मिलते हैं किंतु यह आक्षेप पूर्णतः सत्य नहीं है अगर हम विभिन्न आधुनिक कवियों जैसे अज्ञेय,धर्मवीर भारती,भवानीप्रसाद मिश्र,रघुवीर सहाय,केदारनाथ सिंह,नेमीचंद जैन,केदारनाथ अग्रवाल ,गजानंद माधव मुक्तिबोध,नागार्जुन,रामदरश मिश्र,भारतभूषण अग्रवाल आदि को पढ़े तो पता चलता है कि नई कविता निषेध पर आश्रित न होकर जीवन के प्रति आस्थावान कविता है,जीवन की विभिन्न विसंगतियों के बावजूद जीवन में हर्षोल्लास है, इसी खोज को तरह तरह के प्रयोगों के माध्यम से कविता में लाना आधुनिक कविता की मुख्य विशेषता है।उपरोक्त सभी कवियों में जनसामान्य के जीवन को ,समाज के अभावग्रस्त व परित्यक्त व्यक्तियों की पीड़ा को अपनी कविता में चित्रित किया है,आधुनिक कविता जन सामान्य की उपेक्षा नहीं करती अपितु उनके साथ हुए सामाजिक अन्याय व परिणामतः अभावों की स्थिति के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करती है व उन्हें सम्मानजनक,संतोषजनक स्थान दिलाने के लिए भी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करती है।नई कविता माँ के हाथ के खाने की तरह सहज व स्वाभाविक है,हम तमाम तरह के चटपटे विदेशी पकवान खाकर भी कई बार अतृप्त महसूस करते हैं किन्तु माँ के हाथ के बने साधारण खाने से विशेष किस्म का जुड़ाव महसूस करते हैं।नई कविता भी ऐसी ही है,एकदम सहज व सरल,जिसमें स्वाद यानि अनुभूति व बुद्धि को महत्व दिया गया है न कि विभिन्न मसालों यानि छन्द, वाद या विधान को।नई कविता मनुष्य व समाज को केंद्र में लेकर आयी है।कविता को रोचक व संप्रेषणीय बनाने के लिए विभिन्न तरह के प्रयोग भी आधुनिक कविता में किये गए हैं।मुक्तिबोध जी नें तो कविता में पौराणिक व वैज्ञानिक तथ्यों को भी प्रमुखता से स्थान दिया है।आधुनिक कविता की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह साधारण शब्दों में भी गहरे अर्थ संप्रेषित करने की क्षमता रखती है,कई बार कवि अपनी कविता में विभिन्न सन्दर्भों को डालते हैं जिसके लिए पाठक का वृहत ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है किंतु इससे संप्रेषण में बाधा उपस्थित नहीं होती अपितु ज्ञान क्षेत्र में ही वृद्धि होती है।नई कविता यथार्थ व बौद्धिक होते हुए भी संवेदना से शून्य नहीं है,इसकी संभावनाएं अंतरिक्ष की भांति अपार व अनंत हैं।
आधुनिक कविता में जीवन की सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु के लिए भी जिज्ञासा है,नई कविता का दायरा सीमित नहीं है,यह अपनी उड़ान के लिए खुला नीला आसमान चाहती है जिसकी कोई सीमा नहीं,बंधनों से मुक्त अभिव्यक्ति चाहती है,जिसमें सहजता से अनुभूतियों को पाठक के हृदय तक संप्रेषित किया जा सके।उसकी सीमा में अणु से लेकर अनंत आकाश की गहराइयां समाहित हैं।नई कविता आज विश्व की समृद्ध कविताओं में गिनी जाती है।
आजादी के बाद की कविताओं में रघुवीर सहाय की कविताएं प्रमुख हैं जिनमें लोकतंत्र के ढीले तौर तरीकों से लेकर दंगों, हिंसा,बेरोजगारी,नव धनाढ्य संस्कृति आदि को प्रमुखता से दर्शाया गया है।उनकी एक कविता 'फूट' की कुछ पंक्तियां देखिये-
"हिन्दू और सिख में
बंगाली असमिया में
पिछड़े और अगड़े में
पर इनसे बड़ी फूट
जो मारा जा रहा और जो बचा हुआ
उन दोनों में है।"
हम देख सकते हैं कि कितनी सहजता से रघुवीर जी नें आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त किया है।पाठक सोचने पर विवश हो जाता है और यही अच्छी कविता की विशेषता होती है,गहरे तक उतारना और समाहित हो जाना।
आधुनिक कविता का प्रभाव जनजीवन पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।समय के साथ तौर तरीके भी बदलते हैं,आधुनिक कविता नें गेयता व लयात्मकता की परंपरा को तोड़ा है,जिससे इसका कलापक्ष अवश्य प्रभावित हुआ है किंतु लय, छन्द आदि से विहीन होने पर भी इसका बौद्धिक पक्ष और भी मजबूत हुआ है।वर्तमान में जिस तरह की तेज रफ़्तार जीवन शैली है उसे देखते हुए आधुनिक कविता अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल है।आधुनिक कविताएं इसलिए भी लोकप्रिय होती जा रही हैं क्योंकि वे सीधी सादी भाषा के माध्यम से संप्रेषित होती हैं,उनमें किसी तरह का आडंबर या बनावटीपन नहीं होता,पाठक सहज रूप से स्वयं को कविता के साथ अनुभव करता है।लोक परिवेश से गहरा जुड़ाव व जनजीवन में अगाध विश्वास पाठकों को सहज ही लेखक से संबद्ध करता है,अनुभूति की कसौटी पर आधुनिक कविता खरी उतरती है।इसका अपना सौंदर्य ,आनंद व लालित्य है।

अल्पना नागर

Sunday 19 June 2022

पिता के लिए

 

पिता के लिए

पिता वो जो
संतान की शिक्षा दीक्षा और
विकास के लिए
बन जाता है
कोरा पन्ना..
जिसपर अंकित होता रहता है
समय का महाजनी ब्याज/

पिता वो जो
दुनिया के मेले में कसकर थामता है
संतान की उँगली
भले ही देख न पाती हो
उसकी आँखें
मेले के रंग/
वो बिठाता है संतान को
अपने काँधे पर
महसूस करता है
मेले की रंगीनियां
संतान की उत्साही उँगलियों से/

पिता वो जो
सांझ ढले घर लौटने पर
बाहर पायदान पर ही छोड़ आता है
थकन और उदासी की धूल और
भरकर लाता है झोले में
खुशियों के मीठे फल/

पिता वो जो
रक्तिम आँखों से
पीठ मोड़ लेता है..
बिटिया की विदाई पर
ताकि कमजोर न होने पाए
रिवाजों की कड़ी/

पिता वो जो
जिंदगी भर धूल फांकता फिरता है
संघर्षों की सड़क पर..
उठाता है कंकड़ पत्थर रास्ते के
ताकि सुगम हो सके
संतान का जीवन परिपथ..!

-अल्पना नागर

Saturday 18 June 2022

बारिशें नहीं जानती दुनियावी सलीके

 

चलो अच्छा है,
कम से कम बारिशें नहीं जानती
दुनियावी सलीके

ये करती है
कहीं से भी घुसपैठ
मानो घूम रहा हो
हाथ फैलाये
शरारती कोई रॉकेट बच्चा/
खिड़की के इस पार
सांकल तोड़
भीगने लगता है तरल मन
छूट जाती है
सूखी देह
खिड़की के उस पार ही कहीं..!

बारिश के बादल
घुमड़ने लगते हैं
उम्रदराज़ आँखों में/
मन की दरकती ज़मीन पर
भरने लगती हैं दरारें
नम होने लगते हैं
धरती की कोख में
अलसाये पड़े
बंजर स्वप्न..
न जाने क्या क्या उगने लगता है
आँखों की कोरों में
और ये सब होता है
बारिश के जमीन पर पांव रखने से
बहुत पहले..!

-अल्पना नागर

बारिश

 

बारिश बचपन की स्वरलिपि है

हाँ,मेरा बचपन बसता है
इन बारिशों में
झंकृत हो उठती हैं
हजारों पायलें
और एक बार फिर
चलाई जाती हैं
फुरसत के लम्हों पर
कागज़ की नावें
और चहकते चप्पू..
पहुँच जाती हूँ
मासूम सवालों की
टोलियों के बीच
जो कौतूहल भरी निगाहों से
देखती हैं हर चीज़
ये आसमां के उस सिरे से
ज़मीन तक टंगी
लम्बी पनीली झालरें
किसने बनाई !
या सरोवर में गिरती
टुपुक टुपुक
बूँदों की जलेबियाँ
कौन बना रहा है !
बूँदें गिरते ही
मिट्टी से
इत्र का ढक्कन
किसने खोला !
किसने उकेरे बादलों में
ढेर सारे सुनहरे चित्र!!
बिजली से कौंधते
सवालों के जवाब
चाहती हूँ कभी न मिले
इन्ही सवालों की उँगली थामे
लौट आता है बचपन
और जिंदा हो उठती हैं
मुझमें छुपी हुई बारिशें...

-अल्पना नागर