कविता का मौन तोड़ना
कविता के अपने उसूल हैं
मिज़ाज हैं..
वो मितभाषी है
संयमी है
वो चुनती है मौन
बनिस्पत कुछ भी अनर्गल कहने के!
वो चुनती है सूक्ष्म अवलोकन
पन्नों पर उतरने से पहले !
कविता जब होती हैं मौन
वो संवाद करती है
मुखर होते दौर से..!!
एक एक कर डालती हैं
चुनौतियों के सिक्के
समय की गुल्लक में
किसी रोज़ भरकर पूरी तरह
रिक्त हो जाने को !
कविता का मौन होना
दरअसल एक लघु अंतराल है/
घड़ी की तीनों सुइयों के बीच झूलते
प्रतीक्षारत समय जितना !
एक शब्द से दूसरे शब्द के बीच
अनकहे भाव जितना..!
कविता का मौन होना
एक दौर की बेचैनी को
प्रति क्षण महसूस करना है..!!
कविता का मौन तोड़ना
महज पन्नों पर
स्याही का उतरना नहीं
एक एक हर्फ़ का
समय की हथेली पर
हस्ताक्षर करना है..!
-अल्पना नागर