Monday 8 January 2018

कहानी-धर्मसंकट


धर्मसंकट
कहानी

"अम्मी,ये हिन्दू कौन होते हैं?चार वर्षीय रहमान नें पूछा।
"शहजादे,हिन्दू हमारी दुश्मन कौम है,बहुत बुरे लोग होते हैं।"खाना बनाती आबिदा नें कहा।
"पर अम्मी इनका पता कैसे चलता है,क्या इनके बड़े बड़े दांत और लाल आँखें होती हैं,जैसी आप कहानियों में सुनाती हो!"रहमान की जिज्ञासा शांत नहीं हो रही थी।
"नहीं बेटा,ये हमारी तरह ही दिखते हैं,पर इनकी नियत बहुत ख़राब होती है,मन के काले होते हैं हिन्दू,सिर्फ अल्लाह नें ये दुनिया बनाई है।"
"मन के काले कैसे होते हैं?और अल्लाह नें दुनिया बनाई तो फिर बुरे हिन्दू क्यों बनाये!"
"ओहो रहमान,आप तो बस सवाल पे सवाल! जाइये आपके स्कूल का समय हो गया है।"पास ही खड़े रहमान के अब्बू नें कहा।
"क्या जरुरत थी,रहमान को ये सब बताने की?कभी तो अक्ल से काम लिया करो,अभी बच्चा है वो।"रहमान के अब्बू नें कहा।
"हुंह..बच्चा है पर कभी बड़ा भी तो होगा,अभी से जान लेगा तो सही रहेगा,हिंदुओ से जितना दूर रहेगा उतना ही अच्छा होगा उसके लिए।भूल गए! क्या हुआ था मेरे भाई का फैसलाबाद दंगों में..चीथड़े चीथड़े उड़ा दिए थे,हैवान हिन्दू दंगाइयों नें,कसाई कहीं के!अंतिम अलविदा भी नहीं कह पाए थे हम।"बीते दिनों की याद नें आबिदा के ज़ख्म हरे कर दिए थे।
"लेकिन आबिदा,क्या एक बच्चे में मन में जहर घोलना ठीक होगा? वो जो कुछ भी हुआ उसका अफ़सोस मुझे भी है,तुम्हारा भाई मेरा भी कुछ लगता था,इन्हीं हाथों से उसकी आधी अधूरी लाश दफनाई थी! लेकिन,मैं ये भी मानता हूँ कि भीड़ की कोई शक़्ल, कोई ईमान या धर्म नहीं होता..भीड़ चंद जमा लोगों का सामूहिक आक्रोश होता है।उन दंगो में जितने मुसलमान मरे,उससे कहीं ज्यादा हिन्दू भी मरे थे।मैं नहीं चाहता कि कल को हमारी औलाद,हमारा ज़िगर का टुकड़ा,उसी बेशक्ल,बेअक्ल भीड़ का हिस्सा बनें।मैं उसे इन सब चीजों से दूर रखना चाहता हूँ,अच्छी तालीम देना चाहता हूँ।"अब्बू नें कहा।
"अल्लाह के लिए बस कीजिये हिंदुओं की पैरवी करना,नफ़रत हैं मुझे उनसे और मरते दम तक रहेगी,अगर मेरे भाई की जगह आपका भाई होता तो क्या आप तब भी यही कहते!"आबिदा तिलमिला उठी।
"आबिदा तुम भूल रही हो...याद है आज से पांच साल पहले रमजान के महीने में मेरे अब्बा जान गुजर गए थे !दरअसल वो भी दंगों के ही शिकार थे,उस रोज नमाज पढ़कर वो घर लौट ही रहे थे कि तभी नुक्कड़ पर दंगाई मिल गए,और देखते ही देखते उन्होंने....।"कहते हुए रहमान के अब्बू की आँखें भर आयी।"तुम गलत समझ रही हो।भला मैं हिंदुओं की पैरवी क्यों करूँगा!मैं तो बस इस नफरत के खिलाफ हूँ।"रुंधे गले से आसिफ़ कहने लगे।
आसिफ़ ,रहमान के अब्बू एक सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे।बहुत ही नेकदिल और सुलझे विचारों वाले आसिफ़ नें भी दंगों में अपने अब्बा को खो दिया था,लेकिन फिर भी वो हक़ीक़त से ताल्लुक रखने वाले ऐसे इंसान थे जिनके लिए इंसानियत मज़हब से भी ऊपर थी।
दंगों में बहुत से लोगों की तरह आबिदा नें भी किसी अपने को खोया था,जिसके घाव अभी तक उसके जेहन में जिन्दा थे।
"अम्मी,अम्मी,अम्मी....पता है आज स्कूल में क्या हुआ!"बैग और टिफिन को बिस्तर पर फेंकते हुए रहमान बोला।
"हम्म आज भी तुम्हारा दोस्त टिफ़िन खा गया?"
"नहीं,अम्मी! वो तो रोज़ खा जाता है मेरे पीछे से,आप बनाती ही इतना अच्छा हो,पर आज मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त बनी है।"
"अच्छा?"
"उसने अपना टिफ़िन मेरे साथ शेयर किया,और मुझे अपने कलर्स भी दिए,और और मुझे अपनी ड्राइंग बुक भी दी,अम्मी उसके पास बहुत अच्छी अच्छी स्टोरी बुक भी हैं,परी और राजकुमार की कहानियों वाली बुक,उसने कहा है वो मुझे कल लाकर देगी।"रहमान बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह बोलता जा रहा था।
"अच्छा ! नाम क्या है आपकी नई दोस्त का?"
"हम्म...नाम...उसका नाम अंकिता है अम्मी।"सर खुजाते हुए रहमान बोला।
"ओह, हिन्दू है..!"आबिदा के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी।
"पता नहीं अम्मी,ये तो पूछा ही नहीं मैंने!पर अम्मीजान वो बहुत सुंदर है,उसकी भी राबिया दीदी जैसी दो चोटियां हैं।और रंग भी गोरा है आपके जैसा।अगर हिन्दू होती तो बुरी होती न! उसका मन भी काला होता,पर वो तो ऊपर से नीचे तक पूरी सफ़ेद है,बिल्कुल राबिया दीदी जैसी।"
आबिदा के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई,अचानक से ही वो रहमान पर भड़क उठी।
"कोई जरूरत नहीं है उस लड़की से बात करने की,और ख़बरदार जो कभी उसका खाना खाया या कोई चीज शेयर की!"
नन्हा रहमान कुछ समझ पाता उससे पहले ही आबिदा नें उसे खींचकर कसकर गले से लगा लिया।
पता नहीं क्यूँ इंसान जैसे जैसे बड़ा होता जाता है उसके दुराग्रह ,उसकी शंकाओं का घेरा भी बड़ा होता जाता है।बचपन सुबह पत्तों पर छाई ओस की बूंदों सा एकदम मासूम,पवित्र,शीशे सा चमकता हुआ होता है...लेकिन कब परिपक्वता का सूरज अपनी दृष्टि डालता है और वो मासूम ओस कब हवा में अदृश्य हो जाती है,कोई नहीं जानता!बच्चों से बहुत सी बातें सीखी जा सकती हैं लेकिन हमारी 'परिपक्व' सोच हम पर हावी होने लगती है।
खैर, सब कुछ अच्छा चल ही रहा था कि एक दिन वह हो गया जिसकी किसी नें कल्पना भी न की थी।
अस्पताल के मैनेजमेंट विभाग से एक जरुरी फोन आया,और रहमान के अम्मी अब्बू को तुरंत वहाँ पहुँचने का निर्देश दिया गया।
जब वहाँ पहुंचे तो एक और परिवार वहाँ मौजूद था।देखने से हिन्दू परिवार लग रहा था।माता पिता के अलावा रहमान का हमउम्र एक और बच्चा अपनी माँ से चिपका हुआ था।
"साहब आप पूरी जांच पड़ताल कीजिये।हमें विश्वास है कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ हुई है।" हिन्दू दंपत्ति अस्पताल के मैनेजर से निवेदन कर रहे थे।
"लीजिये ये लोग भी आ गए,अब आप दोनों आपस में ही बात कर लीजिए।"मैनेजर नें रहमान के अब्बू की तरफ इशारा किया।
"मेरा नाम रमेश अग्रवाल है,ये मेरी पत्नी शीतल और बच्चा रोहन है।मामला ये है कि चार साल पहले बाइस अक्टूबर को जन्मे बच्चों में आपका भी बच्चा है,उसी दिन मेरी पत्नी नें भी पुत्र को जन्म दिया था,पुराने रिकॉर्ड को खंगालने पर ज्ञात हुआ कि मेरी पत्नी और आपकी पत्नी उस दिन एक ही वार्ड में भर्ती थे,जिन्होंने लगभग एक ही समय पुत्रों को जन्म दिया।" रमेश नें रहमान के अब्बू से कहा।
" जी सही फ़रमाया आपने,मेरा नाम आसिफ़ है।बाइस अक्टूबर रात एक बजे हमारे रहमान का जन्म हुआ था इसी अस्पताल में।"रहमान के अब्बू नें सहमति जताई।
"तो आसिफ़ जी बात ये है कि रोहन की मौसी को रोहन के सांवले रंग को देखकर संदेह हुआ।हम दोनों पति पत्नी का रंग एकदम साफ है,लेकिन रोहन का रंग दबा हुआ है,खैर ये बिल्कुल बेतुकी बात है जिसे मैं सिरे से इंकार करता हूँ,यहाँ तक कि रोहन की मम्मी और दादी भी मौसी की बात से कोई इत्तेफाक नही रखते,हम सब रोहन से बेइंतिहा प्रेम करते हैं,हम सब की जान बसी है उसमें।अब तक उनका मानना है कि रोहन उनका अपना खून है,उन्हीं का अंश है,लेकिन एक बार इसकी मौसी की जिद में आकर हमने रोहन का डीएनए टेस्ट कराया और पता चला कि रोहन का डीएनए मुझसे मिलता ही नहीं!" रमेश अग्रवाल नें स्पष्ट करते हुए कहा।
रमेश अग्रवाल की पत्नी मासूम रहमान को बड़े ही प्यार और अपनेपन से देख रही थी।
आबिदा और आसिफ़ का मुँह खुला रह गया,आने वाली किसी अनहोनी की घटना से दोनों सहमे हुए चुपचाप सुन रहे थे।रहमान अपनी अम्मी के और नज़दीक चला गया।
"उस दिन वार्ड में तीन औरतें भर्ती थी,और हमें लगता है उस दिन बच्चे अंजाने में बदले गए हैं,अपने मन की तस्सली के लिए हमने उस परिवार से निवेदन किया बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए,बड़े ही भले लोग थे,मान गए,लेकिन उनके बच्चे का डीएनए भी मैच नहीं हुआ।अब बचे आप लोग...तो अगर अनुमति हो तो...।"रमेश अग्रवाल नें अपनी बात रखी।
आसिफ़ नें आबिदा की ओर देखा,वो बेहद घबराई हुई और चिंतित लग रही थी,रहमान को उसने अपने और क़रीब चिपका लिया।रहमान भी किसी हिरण के बच्चे की तरह अम्मी के आँचल में दुबक गया।
तभी आसिफ़ नें विनम्रता के साथ टेस्ट की अनुमति दे दी।ये सुनकर आबिदा विचलित हो उठी।
"ये सब गलत है,अल्लाह के लिए मेरे बच्चे को मेरे पास ही रहने दो,रहमान मेरा बच्चा है,मेरा अपना खून है।"
"आबिदा, टेस्ट ही तो है,हो जाने दो,इन्हें भी तसल्ली हो जायेगी।कुछ नहीं होगा,अल्लाह पर भरोसा रखो।"हालांकि खुद आसिफ़ मन ही मन पशोपेश में था,रहमान को खोने के डर से अंदर ही अंदर बेहद घबराया हुआ था,लेकिन किसी तरह खुद को संयत कर हिम्मत से काम ले रहा था,ताकि आबिदा की हिम्मत न टूटे।
डीएनए टेस्ट हुआ और परिणाम पॉजिटिव निकला।उस दिन तैनात दोनों नर्सों को लापरवाही के जुर्म में नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया।
काँपते हुए हाथों से आसिफ़ नें टेस्ट रिपोर्ट देखी।आबिदा रिपोर्ट पर यकीन करने को तैयार न थी।
",सब झूठ है,ये अस्पताल.. ये डॉक्टर..सब लोग,मैं माँ हूँ रहमान की,क्या इससे बड़ा टेस्ट कोई हो सकता है?दूध पिलाया है इसे अपना!आप कैसे कह सकते हैं रहमान मेरी औलाद नहीं!"आबिदा लगातार बड़बड़ाये जा रही थी,आसिफ आँखों ही आँखों में हिन्दू परिवार को सांत्वना दे रहे थे।
तभी अस्पताल के बरामदे से कुछ फीट की दूरी पर अचानक रोहन के रोने की आवाज़ आयी।दोनों परिवार बातचीत में इतनी गंभीरता से मग्न थे कि उन्हें अहसास ही नहीं हुआ,रोहन खेलते हुए कब वहाँ से निकल गया!
"रोहन,मेरा बेटा..लगी तो नहीं तुझे!"कहकर घबराई हुई शीतल देवी नें रोहन पर चुम्बनों की बौछार कर दी।रमेश अग्रवाल भी भागकर रोहन के पास आये और दुलारने लगे।
आसिफ़ और आबिदा भी बच्चे को सँभालने दौड़े।रोहन को दाएं पैर के घुटने में चोट लगी थी।आबिदा नें अपनी चुन्नी का एक कोना फाड़कर तुरंत रोहन के पाँव में बांधकर प्राथमिक उपचार किया।
"रमेश जी आप बताइए क्या करना चाहिए ?आबिदा को मैं समझा लूंगा,थोड़ा वक़्त लगेगा,माँ है न आखिर लेकिन धीरे धीरे समझ जायेगी।पर एक बात कहना चाहता हूँ अचानक रिश्ते नहीं बदले जा सकते।अस्पताल प्रबंधन से जो गलती हुई उसकी सजा दोनों माँओं को क्यूँ दी जाये ! हम जानते हैं रहमान की तरह आपने भी रोहन को बेपनाह प्यार दिया है,ये सब आपके लिए भी आसान नहीं होगा।" आसिफ़ नें कहा।
"जी आसिफ जी ,रोहन हम सब का दुलारा,हमारी जान बन चुका है,अब ये हमारे लिए भी संभव नहीं होगा।लेकिन हम एक काम कर सकते हैं अगर आपको मंजूर हो तो.."।रमेश नें संकोच के साथ पूछा।"क्या हम दोनों परिवार अपने बच्चों की ख़ातिर हर महीने मिल सकते हैं?इससे बच्चों को भी दोनों माँओं का प्यार मिल सकेगा।"
"अरे भाईजान! इससे नेक ख्याल भला और क्या होगा! मैं भी यही सोच रहा था।दोनों परिवार जुड़ेंगे,भाईचारा बढेगा।अल्लाह रहम करम।"
कहकर आसिफ़ और रमेश एकदूसरे से गले मिलने लगे।उन दोनों के चेहरों पर अब सुकून के भाव तैर रहे थे।
शीतल और आबिदा दोनों नें एक दूसरे को देखा और मुस्कुराई।हिंदुओं से नफ़रत करने वाली आबिदा खुद चलकर शीतल को गले लगा रही थी।खून के रिश्ते पर इंसानियत का रिश्ता भारी पड़ रहा था।वर्षों से जमा हुआ नफ़रत का कोहरा छँटने लगा था।इंसान जन्म से किसी धर्म का पहरेदार नहीं होता है,अपितु उसे बनाया जाता है,इंसान रूपी कच्ची मिट्टी को धीरे धीरे तालीम और धर्म की थपकी देकर पक्के घड़े में परिवर्तित किया जाता है।आज की इस घटना नें दोनों परिवारों को प्रेम के धागे से जोड़ दिया था।
"अम्मी जान, क्या हिन्दू सचमुच हमारे दुश्मन हैं? रहमान नें मासूमियत से वही प्रश्न दोहराया।
"नहीं बेटा, हिन्दू मुस्लिम दोनों भाई भाई हैं।"आबिदा नें उत्तर दिया।
"अम्मी,फिर काला मन किसका होता है?"
"शहजादे, काला मन बुरा सोचने वाले का होता है।"
"तो क्या अब मैं अंकिता का टिफ़िन शेयर कर सकता हूँ!"गोल गोल आँखें मटकाता हुआ रहमान बोला।
"बिल्कुल कर सकते हो,मेरी बनाई मीठी सेवइयां खिलाना कल उसे।"आबिदा नें हँसते हुए कहा।

अल्पना नागर






Sunday 7 January 2018

कहानी- विलायती बहू

कहानी
विलायती बहू

होने को तो वो पूरे पैंसठ साल की थी लेकिन चुस्त दुरुस्त इतनी कि कभी पचपन से ज्यादा की लगी ही नहीं! नाम था उसका 'धापूड़ी' देवी।हिंदी में अगर कहें तो धापूड़ी यानि संतोषी स्वभाव की महिला।खैर! वो कितनी संतोषी थी ये आगे आगे पढ़ते जाएंगे।उस ज़माने में बहुत कम उम्र में शादी हो जाती थी,फिर बच्चे,उनके बच्चे,कुल मिलाकर वो नानी और दादी,और अब पड़दादी भी बन चुकी थी।उनके पति हृदयाघात से दस वर्ष पूर्व ही परलोक सिधार गए थे,तब से धापूड़ी देवी का पूरे घर पर एकछत्र राज था।धापूड़ी देवी के कुल तीन लड़के थे,लड़की एक भी नहीं।कभी कभी तो उन्हें अपनी किस्मत पर यक़ीन नहीं होता था,जरूर पिछले जन्म में मोती दान किये होंगे उसी के परिणामस्वरूप तीन पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई!
तीनों बेटे 'आज्ञाकारी' थे,कह सकते हैं कि आज के ज़माने के श्रवण कुमार! क्या मज़ाल तीनों में से कोई भी बेटा उनकी आज्ञा का उल्लंघन करे,बहुएं भी उनकी हुंकार दूर से ही सुनकर अलर्ट हो जाया करती थी,घर की हर चीज व्यवस्थित होना उनके लिए अनिवार्य था।धापूड़ी देवी नें बेटों की शादी में खूब छक कर दान दहेज़ लिया,पूरी प्रश्नोत्तरी के साथ ठोक बजाकर बहुओं को चुना।
"घर का काम करना पड़ेगा पूरा..बोल करेगी?"
"हां मांजी"।होने वाली बहू नें सिर झुकाकर कहा।
"सुबह जल्दी उठना पड़ेगा सबके उठने से पहले,बोल उठेगी?"
"जी मांजी"
"मैं जो कहूँ वो ही तेरे लिए पत्थर की लकीर होगी...हम्म?"
"जी मांजी"
"कोई भी बात की शिकायत मायके वालों को नहीं करेगी।"
"जी,नहीं करुँगी।"
इस तरह पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही धापूड़ी देवी नें बहुएं चुनी।ईश्वर की मेहर से दो बेटों से खूब दहेज़ घर आया,धापूड़ी देवी का पूरा घर भर गया।गाड़ी,पैसा,सोना,लग्ज़री सामान,क्या कुछ नहीं था अब घर में।लेकिन धापूड़ी देवी को हर चीज कम ही लगती,उन्हें हमेशा यही लगता कि इससे बेहतर चीज मेरे पास होनी चाहिए।एक और विशेष बात थी जो उनके व्यक्तित्व को सबसे अलग बनाती थी,सब कुछ होते हुए भी वो निहायती कृपण स्वभाव की थी,इतनी कृपण कि ख़राब रास्ता आने पर अपनी चप्पलें भी हाथ में उठा ले,इस डर से कि कहीं चप्पलें ख़राब न हो जाये,फिर चाहे पांव ही ख़राब हो जाये! घर में काजू बादाम की गिरियां विशेष ताले लगे डिब्बों में रखे जाते,और जब त्यौहारों पर जरुरत होती,वो सोने की तरह तोल कर,गिनकर काजू निकाल कर देती।घर के अहाते में एक आम का पेड़ था, जिसपर पचासों आम लगते,जो पूरी निगरानी में एहतियात के साथ तोड़े जाते,एक एक आम गिनकर।धापूड़ी देवी दिनभर बरामदे में बैठकर पेड़ पर लगे आम की गणना करती रहती।अगर गलती से भी कोई पड़ोसी या रिश्तेदार उनसे आम मांग लेते तो उनके चेहरे पर ऐसे भाव प्रकट होते जैसे कि सामने वाले नें आम नहीं बल्कि उनकी किडनी मांग ली हो!
इसी तरह रसोई घर में भी उनका पूरा हस्तक्षेप था,घी भी पीले सोने की तरह सात तालों के भीतर रखा जाता था,वो अक्सर बहुओं को हिदायत देती नजर आती कि सबसे अंत वाली रोटी मेरे बेटों को न खिलाये,उनके अनुसार सबसे अंत वाली रोटी खाने से 'पिछली' बुद्धि आती है।ये रोटी तो बस बहुएं ही खाएंगी,वैसे भी औरतों को क्या करना है 'अगली' बुद्धि लेकर!! इस पर तो सदियों से सिर्फ और सिर्फ आदमियों का विशेषाधिकार है! खैर उनकी ये हिदायत उनके रसोई से बाहर जाते ही कूड़ेदान में दाल दी जाती।मंझली बहू थोड़ी ज्यादा पढ़ी लिखी थी,वो अपनी 'अगली' बुद्धि का इस्तेमाल कर चुपके से जानबूझकर 'पिछली' रोटी अपनी सास यानि धापूड़ी देवी को ही खिलाती!
लेकिन ऐसी बात नहीं है कि धापूड़ी देवी हर बात में कंजूस हो।उन्हें एक चीज का बहुत शौक था,वो था सोने के गहने बनवाने का।किसी भी अवसर विशेष पर वो ऊपर से लेकर नीचे तक सोने के गहनों में रहना पसंद करती,शादी ब्याह के अवसरों पर सोने के गहने पहनकर इठलाती हुई जब वो शान के साथ निकलती तो कइयों के दिलों से धुंआ निकलता दिखाई देता!और फिर दिखाई देती उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान।
अब उन्हें इंतज़ार था अपने सबसे छोटे नवाबजादे की शादी का।छोटा बेटा ढलती उम्र में ',एक्सिडेंटली' हुआ था,तो कहानी कुछ यूँ है कि धापूड़ी देवी उस दिन अपनी नई नवेली बड़की बहु के साथ करवाचौथ का उत्सव मना रही थी,तो बड़की बहू नें अपनी सास यानि धापूड़ी देवी का शौक शौक में नखशिख श्रृंगार कर दिया।हमेशा सादी बेरंग सी रहने वाली धापूड़ी देवी उस रोज किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी! और बस यहीं फिसल गए उनके प्राणनाथ मोहिनी रूप पर और नवें महीने ही घर में पोते के साथ साथ छोटे नवाब भी आ गए,इधर बड़की बहू को पुत्र रत्न मिला और उधर धापूड़ी देवी को तियालीस वर्ष की उम्र में एक और रत्न की प्राप्ति हुई ! खैर,कुछ दिन शर्म महसूस हुई लेकिन था तो वो पुत्र ही..इसलिए मन ही मन लड्डू भी बन रहे थे। सबसे छोटा बेटा उन्हें सबसे प्रिय था,छोटे बेटे की शक्ल हूबहू अपने पिता से मिलती थी,शायद ये कारण भी हो उनके विशेष लाड दुलार का।छोटे नवाब की हर ख्वाहिश ,हर फरमाइश पूरी की जाती।लाड प्यार नें नवाब को बहुत जिद्दी बना दिया था।
सबसे बड़े वाले बेटे का बेटा यानि धापूड़ी देवी का पड़पोता भी इक्कीस साल का होते होते परिणय सूत्र में बाँध दिया गया, और फिर बाइस वर्ष की उम्र में 'खुशखबरी' भी सुना दी।लेकिन हाय री किस्मत! हमेशा लड़का पैदा होने की परंपरा आख़िरकार टूट गई,इस बार पड़पोते की बहू को लड़की हुई।धापूड़ी देवी को मानो काटो तो खून नहीं!दुधमुंही बच्ची को अभी नजऱ भर देखा भी नहीं कि घोर चिंता में पड़ गई,अबकि बार तो दान दहेज़ देना पड़ेगा,यही सोच सोच कर धापूड़ी देवी का लगभग तीन -चार किलो वज़न कम हो गया!सारे घर में नन्ही की किलकारियां गूंजती रहती लेकिन धापूड़ी देवी को वो शोर शराबा सुनाई पड़ता,कभी गोद में उठाकर दुलार भी नहीं किया।
मंझली बहू को पिछले कई सालों से कोई संतान नहीं थी।महीने के पंद्रह दिन उपवास में जाते,उसपर झाड़फूंक,टोने टोटके न जाने क्या क्या..लेकिन मामला जैसे का तैसा! बस यही दुःख धापूड़ी देवी को खाये जा रहा था कि मंझले बेटे को कोई संतान नहीं..और बड़के बेटे के बेटे को संतान भी हुई तो वो भी लड़की !अब धापूड़ी देवी की सारी उम्मीदें अपने सबसे छोटे बेटे पर जा टिकी।
छोटा बेटा पढ़ने में कुशाग्र बुद्धि था,ये देख देखकर धापूड़ी देवी मन ही मन हर्षित होती।लेकिन वो इसके 'साइड इफेक्ट' यानि आने वाले खतरे से अंजान थी। छोटे नवाब को आगे की पढाई के लिए विलायत जाना था,हालांकि धापूड़ी देवी अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर भेजने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी,निश्चित रूप से उन्होंने इसका विरोध किया।लेकिन छोटे नवाब की जिद नें धापूड़ी देवी की एक नहीं चलने दी।एक यही बेटा था,जिसकी बात वो पूरे मनोयोग से सुनती थी और मानती भी थी,बाकि दोनों बेटों को जिद करना तो दूर सामने नजर मिलाकर बात करने में भी झुरझुरी पैदा हो जाती थी।
तो कहानी कुछ यूँ आगे बढ़ती है,छोटे नवाब विलायत में गए तो थे पढ़ाई करने लेकिन वहाँ कुछ और ही कर बैठे! वहीं की एक विलायती लड़की से शादी कर ली और अगले साल तक 'डैडी' भी बन गए।बेटा हुआ था,इसलिए एक बार घर जाकर प्यारी माँ का आशीर्वाद लेना तो बिल्कुल बनता था।
इधर धापूड़ी देवी नें छोटे बेटे की शादी के न जाने कितने अरमान संजो लिए थे,चूंकि ये आखिरी शादी थी इसलिए सभी में उत्साह भी जबरदस्त था।धापूड़ी देवी नें दौड़ भाग कर सुनार से पचास तोले तक सोने के गहने भी बनवा लिए थे।और हां,छोटे नवाब साहब के लिए एक सलोनी सी दुल्हन भी ढूंढ ली गई थी।साथ ही लेन देन, मोल भाव, दान दहेज़ सब कुछ सुनिश्चित कर लिया था।शहर के नामी सेठ की बेटी थी,सेठ विलायत पढ़े दामाद के लिए सेवन सीटर बड़ी वाली लग्ज़री कार,एक बंगला,जमीन जायदाद का हिस्सा,और अस्सी तोला सोना देने को तैयार था।धापूड़ी देवी रिश्तेदारों में एक बार फिर धमाके के साथ अपनी धाक ज़माने के सपने भी देख चुकी थी!सही है,धमाका तो होगा,जरूर होगा!
आज धापूड़ी देवी को पहली बार अपने छोटे नवाब की विलायत जाने की जिद पर फ़ख्र महसूस हुआ।एक बार फिर लक्ष्मी देवी छप्पर फाड़ कर बरसने वाली थी।
खैर,हम लौटते हैं छोटे नवाब और उनकी विलायती बहू की ओर।नवाब साहब और उनकी विलायती बहू भारत आ चुके थे।दरवाज़े पर उनका छोटा बेटा खड़ा था,साथ ही खड़ी थी एक गोरी चिट्टी विलायती मैम, जिसने जींस पर बड़े ही बेढंगे तरीके से साड़ी लपेटी हुई थी।गोरी मैम नें अपने सीने पर एक गोर चिट्टे बच्चे को बांधा हुआ था।छोटे नवाब नें विलायती मेम को धीरे से कोहनी मारी,और मेमसाहिब नें तुरंत खुद को सँभालते हुए सर पर पल्लू रखा।एक बार फिर छोटे नवाब की कोहनी चली और विलायती मैम नें 'ओह यस' कहते हुए धापूड़ी देवी के पाँव छुए।
"ये कौन है ,छोरा??" धापूड़ी देवी का खुला मुँह बंद होना भूल गया था।
"माँ,ये आपकी सबसे छोटी बहू,मेरी पत्नी।"छोटे नवाब नें मुस्कुराते हुए कहा।
धापूड़ी देवी को जैसे कोबरा साँप आकर सूंघ गया,उन्होंने बार बार अपनी आँखें मली, लेकिन ये कोई बुरा सपना नहीं हक़ीक़त थी।वो बस बेहोश होते होते बची।अस्सी तोला सोना,बड़ी गाड़ी,जमीन जायदाद,बंगला सब सपने एक एक कर उसके सामने उसकी देहरी पर चूर चूर होते नजर आ रहे थे!
छोटे नवाब नें बुत बनी माँ को थोड़ा साइड में किया और विलायती बहू के साथ अंदर प्रवेश किया।
बड़की और मंझली बहू कनखियों से विलायती बहू को देख रही थी।पड़पोते की बहू भी आँखे फाड़ कर सदी की इस चौंकाने वाली घटना का 'लाइव' शो देख रही थी।"ये क्या..बड़ी मम्मी जी की सल्तनत में ऐसा खुलेआम विद्रोह,अब यहाँ बिरादरी के बाहर ही नहीं,समंदर पार परदेस की बहू आएगी!!"
धापूड़ी देवी नें अपने सबसे प्रिय पुत्र से इस घोर अनर्थ की कल्पना भी नहीं की थी! अब रिश्तेदारों में क्या शान रह जायेगी,न तो ये समाज की,न बिरादरी की,न अपने देश की..ऊपर से कोई दान दहेज़ नहीं..मामला एकदम ठनठन गोपाल !
अब घर में अजीब सी जंग छिड़ गई,शीतयुद्ध जैसी।सबकुछ जैसे बर्फ हो चुका था,संवाद लागभग ख़त्म।
"छोटू नें मान मर्यादा सब कुछ ताक पर रख दिया,एक बार भी मेरा ख़्याल नहीं आया।"सर पकड़कर बैठी धापूड़ी देवी के मन ही मन रोज तूफान चलते रहते।
इधर विलायती बहू को देखने पड़ोसी और रिश्तेदारों का हुजूम सा लग गया।सब कोई न कोई बहाना बना उसे देखने आते।
विलायती बहू की टूटी फूटी हिंदी सुनकर घर की तीनों बहुएं मन ही मन खूब खुश होती।अपनी सास के सामने 'नंबर' बनाने का ये सुनहरा मौका था।
विलायती बहू से पैदा हुआ बेटा घर भर में किलकारियां मारता,धीरे धीरे अपने घुटनों के बल चलकर घूमता रहता।वो दिखने में इतना प्यारा था कि धापूड़ी देवी भी बहुत दिन तक खुद को रोक नहीं पाई।कहते हैं मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है,और फिर अगर 'सूद' लड़का हो तो फिर कहना ही क्या!! धापूड़ी देवी रोज अपने पोते को छुप छुप कर किसी न किसी बहाने से देखती रहती,मन ही मन उसकी बलैया लेती।एक रोज आँगन में खेलते हुए पोते नें यूँ ही धापूड़ी देवी का पल्ला पकड़ लिया,बस फिर क्या था,जमी हुई बर्फ़ अपने पोते पर आकर पिघल गई,धापूड़ी देवी नें आंव देखा न तांव..पोते को गोद में उठाया और बीसियों चुम्बन एकसाथ चिपका डाले उसके गोरे मुख पर।और फिर चुपचाप अपने पोते की नज़र उतारने लगी।
इस अद्भुत नज़ारे की साक्षी उनकी तीनों बहुएं थी,जो ये देखकर तुरंत जलकर ख़ाक हो गई, हालांकि मन तो उनका भी करता था बच्चे को खिलाने का,लेकिन मामला यहाँ 'नंबर' बनाने का भी था!
इधर विलायती बहू भी एड़ी चोटी का जोर लगाकर हिंदी बोलना सीख रही थी,भारतीय रसोई बनाने का प्रयास भी करती।नीली आँखों और सुनहरे बालों वाली लंबी चौड़ी अप्सरा जैसी बहू को देखकर धापूड़ी देवी का मन भी अब शांत होने लगा था।बाहर से कोई रिश्तेदार या सगा संबंधी धापूड़ी देवी के घर आता तो विलायती बहू दौड़कर उसके पाँव छूने आती।सारा सत्कार वैसे ही करती जैसा धापूड़ी देवी अपनी बहू से उम्मीद करती।किसी भी फंक्शन में विलायती बहू के संस्कार देखकर तारीफ़ ही सुनने को मिलती।
"अजी, आजकल बहुएं कहाँ इतनी संस्कारी होती हैं ! न सर पर पल्लू न मान सम्मान..और आपकी छोटी बहू विलायती होकर भी पूरे संस्कार निभा रही है,बहुत भाग्यशाली हैं आप धापूड़ी जी।"सुनकर धापूड़ी देवी का दिल बल्लियों उछलने लगता लेकिन वो कभी अपनी खुशी प्रदर्शित नहीं करती।
सारी दुर्भावनाएं अब गायब होने लगी थी।वैसे भी शरीर से हाथ कब तक अलग रह सकता है!
एक रोज रसोई घर में विलायती बहू जब चपातियां बनाने का प्रयास कर रही थी,धापूड़ी देवी आयीं और बड़े प्रेम से विलायती बहू का हाथ अपने हाथ में लेकर चपाती बेलना सिखाया।बाहर आंगन में खड़ी बहुएं एक दूसरे को कोहनी मारती रही!
"बहू, मैं सोच रही हूँ अभी पोते का नामकरण संस्कार और मुंडन कुछ नहीं हुआ,इस महीने की दस तारीख़ कैसी रहेगी?"थोड़ा नरम पड़ते हुए धापूड़ी देवी नें पूछा।
"मैनजी...मैं नहीं समझा..नामकर...मुंधन.."।अपनी टूटी फूटी हिंदी में विलायती बहू नें कहा।नामकरण और मुंडन जैसे भारतीय रीतीरिवाज अभी उसकी डिक्शनरी से बाहर ही थे।अचानक हुए इस परिवर्तन से वो हैरान जरूर थी।
"कुछ नहीं बहू, मैं छोटू से बात करती हूँ"।धापूड़ी देवी नें हँसते हुए कहा।
छोटे नवाब नें जो रसोई की खिड़की से सारा नज़ारा देख रहे थे,जमी हुई बर्फ को पिघलते हुए देख सुकून की साँस ली।! अब धापूड़ी
देवी की कमर के एक तरफ पड़पोती,और दूसरी तरफ विलायती पोता लटका नजर आता।वो दोनों बच्चों पर समान प्रेम लुटाने वाली देवी बन चुकी थी!और इस तरह धापूड़ी देवी सच्चे मायनों में 'धापूड़ी' यानी संतोषी स्वभाव वाली स्त्री बन गई!

अल्पना नागर

Saturday 6 January 2018

कहानी- कसूरवार कौन ?

कहानी
कसूरवार कौन?

"क्या बात है अवनि,सब ठीक तो है न?क्या ऑफिस में कुछ हुआ !"मुझे सोफ़े पर निढाल देख दिनेश नें पूछा।
"लगता है तुम्हारा पुराना माइग्रेन का दर्द लौट आया है,मैं चाय बना कर लाता हूँ..अरे,कुछ तो बोलो..मुझे तुम्हारी चुप्पी की आदत नहीं है।"दिनेश चाय बनाने रसोई घर की तरफ मुड़ा।
"मार दिया उसने...आख़िरकार..।"बेहद धीमी आवाज में मैंने कहा।
"क्या !! किसने किसको मार दिया?"
"राधा नें..अपने हैवान पति को.."
"ओह गॉड ! तभी वो इतने दिन से हमारे घर नहीं आयी,कहाँ है वो अभी..मुझे बड़ी चिंता हो रही है,उसके बच्चे कहाँ है.. कैसे हैं?"दिनेश के स्वर में चिंता साफ़ झलक रही थी।
"सविता नें बताया वो अभी थाने में है,पुलिस ले गई,मर्डर का चार्ज है उसपर..।शून्य आँखों से सामने दीवार को तकते हुए मैंने कहा।
"दिनेश हमें मिलकर आना होगा उससे,प्लीज मुझे ले चलो.. एक बार.."
"ऑफकोर्स हम जाएंगे..मैं गाड़ी के पेपर्स और कुछ पैसे लेकर आता हूँ तुम चलो..नीचे पार्किंग में पहुँचो।"
रास्ते भर मैं राधा के बारे में सोचती रही।
पिछले पांच वर्षों से राधा हमारे घर आ रही थी,सफाई और बर्तन साफ करने के लिए।मुझे आज भी याद है जब वो पहली बार हमारे घर आई थी,आते ही पूरे घर का काम चुटकियों में संभाल लिया था,मैं उसके दक्ष हाथों की कायल थी।करीने से एक एक चीज़ को झाड़ पोंछ कर रखना,और साथ में ढेर सारी बातें करना उसका रोज़ का काम था।लंबा कद,गठीला शरीर,गोरा रंग,सुगढ़ नैन नक्श,गहरे भूरे रंग की आँखें, आँखों के इर्द गिर्द काले घेरे!लेकिन फिर भी वो यक़ीनन सुन्दर थी।दिनभर घरों में काम करके भी उसकी खूबसूरती कम नहीं होती थी।हां,हाथ जरूर रूखे पड़ गए थे।
"तुम बहुत सुंदर हो राधा।"मैं अक्सर उससे कहा करती।
"जी दीदी,सब यही कहते हैं,अभी तो कुछ नहीं काफी झड़ गई हूँ..।"कहते हुए उसकी आँखों की चमक बढ़ जाती थी।" जब मेरी शादी हुई थी न दीदी जी,मैं बहुत सुंदर थी,ये मोटे मोटे हाथ,और फूले फूले गाल..और गोलमटोल आँखें..भरा पूरा सरीर...सब कहते थे श्रीदेवी लगती है देखने में.."शरमाते हुए राधा कहती।
"हम्म,देखने में तो एकदम फिट एंड फाइन हो तुम।हमें देखो !कैसे मोटापे की परत शरीर पर चढ़े जा रही है,पूरा अस्सी किलो वजन हो गया है अब। "खुद को निहारते हुए मैंने कहा।
"अरे दीदी,हम लोगों की तो यही कसरत है,आप लोग तो फिट रहने के लिए..वो का कहते हैं..हाँ,जिम भी जाते हो..हमार जिम तो यही है चौका बरतन..।"हँसते हुए राधा बोली।
"अच्छा तो ये बात है,तो चल ठीक है ..कल से तुम्हारी छुट्टी,अब मैं ही करुँगी घर का काम,वैसे भी मोटापा तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।"मैंने छेड़ने के अंदाज़ में कहा।
",नहीं नहीं दीदी जी,ऐसा जुलम ना करो..यही तो हमार रोजी रोटी है,आप ये सब करते अच्छे नहीं लगोगे।"जल्दी से बात को बदलते हुए राधा नें कहा।
"बच्चे हैं या नहीं अभी.."थोड़ा फ्रेंडली होते हुए मैंने पूछा।
"अरे दीदी जी,दो बच्चे हैं मेरे.. लड़की अभी अभी पंद्रह बरस की हुई है..और लड़का ग्यारह बरस का है।"राधा नें खिलखिलाते हुए कहा।
मैंने ध्यान से देखा,हँसते हुए उसके गालों में भँवर भी पड़ते थे,जो उसे और भी सुन्दर बना देते थे।
"क्या!! तुम्हारी पंद्रह साल की बेटी भी है??क्या बात कर रही हो ! तुम तो कहीं से भी पच्चीस वर्ष से ज्यादा की नहीं लगती।"मैंने आश्चर्य से कहा।
"हम्म,दीदी जी ,मेरी शादी तेरह बरस की उम्र में कर दी थी मेरे गरीब पिताजी नें..शादी के बखत तो मैं महीने से भी नहीं होती थी,पंद्रह बरस की होते होते लड़की हो गई मुझे..मेरी उमर अभी इकत्तीस साल है।मेरा मरद उस बखत सिलाई का काम सीख रहा था।"बीते दिनों को याद करते वक़्त राधा कहीं खो सी जाती थी।
राधा बहुत मिलनसार और हँसमुख स्वभाव की थी,कठिन से कठिन काम भी वो हंसकर कर जाती थी।हम लगभग हमउम्र थे,वो मुझसे कुछ ही साल बड़ी थी,इसलिए हमारे मध्य मैत्री भाव ज्यादा था।
"सुनो राधा,वो कुर्सी इधर ले आओ,साथ बैठकर चाय पीते हैं,इस बहाने तुमसे कुछ देर गपशप भी हो जायेगी..सर्दी बहुत है,काम कुछ देर बंद कर दो।"मैंने जोर देते हुए कहा।
वो कुछ देर ठिठककर कुर्सी को निहारती रही,मानो उसमें करंट लगने वाला हो।
"नहीं दीदी जी,हम कुर्सी पर नहीं बैठ सकते,आप मालिक हैं और हम नौकर आपके सामने कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं है।"
"ख़बरदार जो दुबारा खुद को नौकर कहा तो,मैं निकाल दूंगी तुम्हें,हज़ार बार कहा है,तुम मेरी सहायिका हो,नौकर नहीं..अब चुपचाप बैठो!"मैंने सख्ती दिखाते हुए बोला।
वो घबराई हुई हिरनी की तरह चुपचाप बैठ गई, थोड़ा सामान्य हुई तो अपने बारे में बताने लगी।
"दीदी जी,एक बात कहूँ! आप बहुत अच्छी हैं।"
"धत,इतनी डाँट खाने के बाद भी अच्छी बता रही हो,सच पगली हो तुम.."मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ,मुझे आपका डाँटना, आपका प्यार दुलार,अपनापन सब अच्छा लगता है,वरना आज के ज़माने में कौन हम जैसे कच्ची बस्ती वालों को इज्जत देता है!"
"तुम खुद अच्छी हो राधा,इसलिए सब अच्छा है,अच्छा एक बात बताओ.. तुम कहाँ तक पढ़ी लिखी हो,मैं तुम्हें छोटी मोटी नौकरी दिलाऊँ तो..."संडे के अखबार को किनारे रख मैंने पूछा।
"दीदी जी,मैंने कभी सकूल देखा भी नहीं,मेरे बाबूजी के बड़े बड़े खेत थे,बचपन बस वहीं काम करते बीता,और फिर ब्याह हो गया।मैं अच्छे परिवार से हूँ,मेरी सारी बहनें आज अच्छे घरों में हैं सिर्फ मैं ही घर घर जाकर चौका बर्तन करती हूँ,मज़बूरी है दीदी जी..,लेकिन मैंने जान लिया,पढाई लिखाई कितनी जरुरी है..इसीलिए अपनी बन्नू को पढ़ा रही हूँ।"अपनी बेटी की बात करते वक़्त राधा के चेहरे की चमक बढ़ जाती,अनायास ही उम्मीद और सुनहरे भविष्य के लाखों दीप उसकी गहरी भूरी आँखों में जगमगाने लगते।
"कौनसी कक्षा में पढ़ रही है तुम्हारी बन्नू"
"जी दीदी जी अभी अभी दसमीं पास की है,उसके मास्टर लोग कह रहे थे,बहुत होसियार है आपकी लड़की,एक दिन बहुत आगे जायेगी।दीदी जी मैंने सोच लिया,मैं उसे खूब पढ़ाऊंगी,चाहे जो कुछ भी हो,मैं खूब म्हणत करुँगी उसे आगे बढ़ाने के लिए,जो ठोकरें मैंने अपने जीबन में खाई गई है वो उसके साथ कतई नहीं होने दूंगी।"राधा कहती जा रही थी।"आपको मालूम है दीदी जी,मेरी बन्नू कनेक्टर बनना चाहवे है।"ख़ुशी से चहकते हुए राधा नें कहा।
"कनेक्टर ?"
"हाँ,वही जो सबसे ऊंचा होवे है,म्हारे गांव में जब आते थे ना तो उनकी गाडी में लाल बत्ती जलती थी,और सब लोग उन्हें सलाम करते थे,क्या ठाठ थे उनके !"
"ओहो राधा, तुम कलेक्टर की बात कर रही हो।"मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ दीदी जी वही।"
"अच्छा सुनो,एक बार बन्नू को मेरे पास भेजना,उससे कुछ बात करनी है आगे की पढाई और करियर के बारे में..और मेरे पास कुछ किताबें भी रखी हैं शायद उसके काम आ जाएं।"मैंने कहा।
"जी दीदी जी।"
राधा की बेटी बिल्कुल राधा जैसी बेहद खूबसूरत थी,मैंने बात की उससे,गणित विषय में उसका ज्यादा रुझान था,संयोग से मेरा विषय भी गणित ही था कॉलेज के दिनों में,बहुत सी किताबें थी मेरे पास जो मैंने उसके सुपुर्द कर दी,किताबें पाकर उसके चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी,वो बार बार किताबों को चूम रही थी।पढ़ने के प्रति उसकी इसी ललक नें दसवीं क्लास में उसे पिचानवे प्रतिशत अंक दिलाये थे।आगे की पढाई के लिए भी उसने गणित विषय ही लिया।मैं रोज शाम उसे कुछ देर पढ़ाती, तब तक राधा का घरेलू काम भी समाप्त हो जाता था।
समय बीतता गया।एक रोज सुबह राधा जब काम करने आयी, उसकी आँखें सूजी हुई थी,साथ ही सर पर पट्टी बंधी हुई थी।
"ये सब कैसे..कब हुआ राधा,गिर गई थी कहीं?मैंने पूछा।
वो बहुत देर तक कुछ नहीं बोली,फिर अचानक उसकी रुलाई फूट गई जैसे बहुत दिनों से उसने कुछ छुपा के रखा हो।
"दीदी जी ,वो राक्षस है..मेरा पति मेरा काल है,मैं मर क्यों नहीं जाती,अब और सहन नहीं होता दीदी..।"
मैं अवाक खड़ी उसकी सुनती गई,पिछले चार सालों में कभी उसने अपने पति का जिक्र नहीं किया था।
"वो बहुत पीता है दीदी, इतना कि उसने सिलाई का काम भी छोड़ दिया है,ज्यादा दारु पीने से उसकी रीढ़ की हड्डी तक टूट गई थी,जिसके इलाज के लिए मैंने अपने बाबूजी से पैसे उधार लिए थे..पूरे तीन लाख रूपये लगे थे,कहाँ कहाँ से कर्ज नहीं लिया था मैंने..सबकुछ गिरवी रख दिया था,मेरे बाबूजी के दिए गहने,घर,जमीन सब कुछ..तब जाकर इसका इलाज़ कराया,बिस्तर से उठकर चलने फिरने लायक हुआ,लेकिन मति फिर गई है,ये कमीना दारु छोड़ने को तैयार नहीं..कहता है,मैं दारु नहीं छोड़ सकता,चाहे तो दुनिया छोड़ दूँ..जब इसे दारु की तलब होती है ना ये दीवारों पे अपना सर पटकता है,बहुत बुरी हालत होती है उस बखत..हर महीने मेरे सारे कमाए पैसे छीन कर ले जाता है,दीदी जी मैंने पिछले कई सालों में खुद से खरीदकर एक साड़ी भी नहीं ली।और जब मैं पैसे नहीं देती इसको ये घर का सामान बेच आता है..नामर्द कहीं का.." गुस्से में लाल हुई राधा बोले जा रही थी।
"एक दिन तो हद कर दी उसने,सिलेंडर तक बेच आया!!.बच्चे भूखे बैठे..मैं अपना सर पीट के रह गई..बड़ी मुश्किल से पैसे देकर छुड़ाया।और दीदी आपने जो कूलर और बिस्तर दिया था इस्तेमाल के लिए..मुझे बताते हुए भोत दुःख हो रहा है..उसे भी ये बेच आया अपनी तलब बुझाने को।मैं कहती हूँ दीदी जी ये मेरा मरद दारू नहीं पी रहा बल्कि अब दारु इसको पी रही है!इसे होश ही नहीं रहता..घर में पी के पड़ा रहता है हमेसा..मैं इसकी फैलाई गदंगी साफ़ करते करते हार गई हूँ अब।बरोबर के बच्चे हो गए हैं वो क्या समझते नहीं !कल जब मैंने पैसे देने से मना कर दिया तो कुकर उठा के मारा मेरे सर पे..पूरी पीठ लाल हो गई है इतना पीटा उस कमीने नें.."राधा की आँखों से आंसू बहते जा रहे थे।
"हे भगवान,तुम इतना क्यों सहन कर रही हो,तलाक़ क्यूँ नहीं दे देती,वो किसी काम का नहीं है,तुम्हारे ऊपर बोझ ही है।और क्यूँ देती हो उसे अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे?मरने दो ना..।"मेरे अंदर का गुस्सा बाहर आ चुका था।
"नहीं दीदी जी,वो जिंदा है तब तक मैं सलामत हूँ,वरना बस्ती के गिद्ध मुझे नोंच डालेंगे।आते जाते किन नज़रों से मुझे घूरते हैं मैं बता नहीं सकती,वो है तो कम से कम एक आसरा है।"
"अभी कहाँ है वो,मैं बात करूँ उससे?"मैंने पूछा।मुझे लगा शायद समझाने से बात बन जाये।
"दीदी वो अभी थाणे में है,कल गुस्से में उसकी रपट लिखा दी।अब छुड़ाने जाना है उसे।एक मैं ही तो हूँ उसकी इस दुनिया में..वो कई बार मुझसे कहता है,राधा मुझे कभी छोड़कर मत जाना।"राधा की आँखों में एक अजीब सा शून्य भाव था।मैं समझ नहीं पाई आखिर स्त्री ऐसी क्यों होती है!
कुछ दिन सब सामान्य रहा।मैंने उसके पैसों का हिसाब किताब रखने के लिए बैंक में अकाउंट खुला दिया,उसे बैंक से पैसे निकलना,डालना सीखा दिया।इस बात से वो बेहद खुश थी,एक नई ऊर्जा के साथ उसने काम करना शुरू कर दिया।अब वो अपने पति को बस इतना बताती कि वो थोड़े बहुत घरों में ही काम करती है,लेकिन मैं जानती हूँ वो दिनरात घरों में काम करती थी।अब उसकी बचत होने लगी थी,जिसकी वजह से उसने अपनी बन्नू के लिए न जाने कितने सपने संजो लिए थे।
सब कुछ सही बीत रहा था कि अचानक इस खबर नें मन में असंख्य भूचाल ला दिए।
"आखिर क्या वज़ह होगी जो राधा को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा!"मन ही मन कई तरह के सवाल उफन रहे थे।
"अवनि,चलो..पुलिस स्टेशन आ गया।"दिनेश नें मुझे हिलाते हुए कहा।
मैं जैसे खुली आँखों से देखे किसी बुरे सपने से गुजर रही थी।अंदर जाते हुए कदम लड़खड़ा रहे थे।सारी औपचारिकतायें पूरी कर हम राधा से मिलने गए।राधा बेजान गठरी सी एक कोने में पड़ी हुई थी।हमारी आहट सुन उसमे थोड़ी हरकत हुई।मुझे देखते ही वो फूट फूट कर रोने लगी।मैंने उसे ध्यान से देखा,उसके चेहरे और शरीर पर कई चोट के ताजा निशान बने थे,बिखरे बाल,फटे हाल कपड़े..आँखें रो रो कर सूज गई थी।
"राधा ये सब क्या..."उसकी हालत देखकर मेरा गला रुंध सा गया था,आँखों के कोर गीले हो गए थे,मैं कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।
"दीदी जी..मार दिया मैंने उसे..जान से मार दिया..! इतने लट्ठ बरसाए कि उसके प्राण निकल गए.."इतना कहकर वो फिर से रोने लगी।उसके चीखने की आवाज़ पूरे स्टेशन में गूंज रही थी।
"चुप हो जाओ राधा, हिम्मत रखो..भगवान के लिए..अपने बच्चो की खातिर..मैं कोशिश करुँगी तुम्हे बाहर निकालने की।"
मैं जानती थी इस समय कोई रास्ता शेष नहीं था सिवाय झूठी सांत्वना के..।
"बन्नू और विन्नी कहाँ हैं"?अचानक मेरे दिमाग में राधा के दोनों बच्चों का ख़्याल कौंधा।
"बन्नू..मेरी बच्ची..कैसी फूल सी नाज़ुक और मासूम बेटी ! उस राक्षस की हिम्मत भी कैसे हुई मेरी बच्ची की ओर बुरी नजर डालने की..उसका अपना खून..उसकी अपनी बेटी के साथ ये हरकत!! सोच भी कैसे लिया उस हरामी नें..दारु उसका ईमान ,उसकी बुद्धि भी खा गई.".हिचकियां भरते हुए राधा के मुँह से भयंकर गुस्से की लपटें आ रही थी।
"कमीना उस रात बोले जा रहा था..मुझे 'चाहिए'..बस मुझे 'चाहिए'...मैंने धक्का देकर उसे अपने से अलग किया तो वो बन्नू पर ही..."
राधा दीवार पर अपना सर पीटने लगी।
मैं सुन्न खड़ी सब कुछ सुनती रही।बार बार बस यही सोच रही थी काश! ये सब झूठ हो,एक बुरा सपना हो,लेकिन ये सब सच था,कड़वी हक़ीक़त थी।
"दीदी जी मेरी बन्नू को बचा लो,उस नरक से उसे निकाल दो..उसका मेरे सिवा अब कोई नहीं है।मेरे लड़के को तो उसकी नानी रखने को तैयार है पर बन्नू..वो एक लड़की है..उसका खर्चा उठाने को सबने मना कर दिया।"राधा की आँखों में बेबसी दिखाई दे रही थी।
"बन्नू मेरी बेटी जैसी है,मैं उसे पढ़ाऊंगी,अपने साथ रखूंगी,तुम फ़िक्र मत करो,तुम्हारा मुद्दा मैं महिला अधिकार आयोग तक लेकर जाऊंगी।"पथराई आँखों से राधा को अलविदा कह मैं घर लौट आयी।मुझे समझ नहीं आया आखिर कसूरवार कौन!! राधा,उसका पति या फिर ये समाज,जहाँ शिक्षा से विहीन कर बेटियों को एक बोझ भरी जिम्मेदारी समझकर किसी के भी पल्लू बांध दिया जाता है!!

अल्पना नागर



Thursday 4 January 2018

लघु कहानी- खून के रिश्ते



लघु कहानी
खून के रिश्ते

59 वर्षीय मिश्रा जी आज बेहद खुश लग रहे थे ।बार बार दर्पण में अपने डाई किये हुऐ बाल देख देखकर मन ही मन हर्षित हुऐ जा रहे थे ।बड़े दिनों बाद अपने सफारी सूट की कड़क प्रेस की ।
"सरस्वती,आप आज भी वैसी ही खूबसूरत लगती हैं जैसी पहली बार लगी थी..शादी के बाद.."
"बस बस रहने दीजिये ,एक तो इस उम्र में सफेद बालों को काला करवा दिया...बेटे बहु क्या सोचेंगे ?"
"अरे सोचना क्या है !! देखकर खुश हों जायेंगे और क्या...वैसे भी अभी हमारी उम्र ही क्या है ..60 साल होने में अभी भी 2 दिन बाकी हैं ।"
सरस्वती सीधी व सरल स्वभाव महिला थी।परिवार के लिये समर्पित ,धीर गम्भीर सरस्वती अपने जीवन के 56 वसंत देख चुकी थी ।
"वैसे लग तो रही हूँ 25 साल की...."
सरस्वती अकेले में खुद को आईने में निहारते हुऐ बुदबुदाई ।
"उहु उहु...तो चलें...सरस्वती ?"
मिश्रा जी हँसते हुऐ बोले ।
"जी...वो...मैं...बस यूँ ही देख रही थी..."
सरस्वती बुरी तरह झेंप गई।
2 दिन बाद नारायण मिश्रा का 60 वां जन्मदिन था ।बेटा बहु महानगर में किसी बड़ी प्राइवेट कम्पनी में लाखों के पैकेज पर कार्यरत थे, पिता का जन्मदिवस मनाने के लिये गाँव से बुलाया गया।मिश्रा दम्पत्ति पहली बार महानगर अपने बेटे से मिलने जा रहे थे ,खुशी का कोई ठिकाना न था।
"सरस्वती वो नारियल के लड्डू और गुझिया रख ली ना आपने ?
" जी रख लिया था रात को ही..कैसे भूल सकती हूँ ?ओमू को कितनी पसंद हैं गुझिया..याद है आपको जब वो छोटा था तब 2 दिन के अंदर अंदर सारी मिठाइयाँ चट कर जाता था..।"
सरस्वती खिलखिलाते हुऐ बोली ।
घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों में दोनों को कभी बाहर घूमने का समय नहीं मिला ,आज कई वर्षों के बाद मिश्रा दम्पत्ति साथ निकले ।सरस्वती बस की खिड़की से बड़ी उत्सुकता से लगातार झाँक रही थी ,नारायण मिश्रा के चेहरे पर भी इस तरह रौनक बनी हुई थी जैसे पहली बार कोई दम्पत्ति हनीमून पर जा रहा हो।
"सरस्वती मैंने सोच लिया...अब जब दिल्ली जा ही रहे हैं तो कुछ दिन तसल्ली से ठहर कर आयेंगे ,लगभग 1 महीना तो मान कर ही चलो।"
मिश्रा जी पर्यटन की किताब को बैग में डालते हुऐ बोले ।
"हाँ जी इस बार मेरा भी मन है वहाँ रुकने का ,लक्ष्य 3 साल का हो गया होगा ना..? बड़ा मन कर रहा है उसे गोद में लेकर दुलारने का ,हॉस्पिटल में देखा था उसे पहली बार जब वो हुआ था...।"
सरस्वती भावुक हो उठी ।
यादों में खोये हुऐ कब दिल्ली आया ,कुछ पता न लगा।बस से उतरते ही मिश्रा जी नें अपने कदमों की रफ्तार तेज कर दी।
"अजी जानती हूँ आप कितना उत्सुक हैं अपने बेटे से मिलने को..पर ज़रा हमारा भी ख़याल रखिये ।भागे जा रहे हैं बस..इस उम्र में हमसे नहीं होगी ये मैराथन ।"
"ओहो सरस्वती आप अभी जवान हैं थोड़ा फुर्ती कीजिये ।"
मिश्रा जी नें चुटकी लेते हुऐ कहा।
पता पूछते हुऐ मिश्रा दम्पत्ति एक बड़ी सी बहुमंजिली इमारत तक पहुँच गये ।दोनों बड़े कौतूहल से इमारत की ऊँचाई को देख रहे थे ।लिफ्ट का प्रयोग न कर दोनों सीढियों से ही 5वीं मंज़िल पहुँचे ।
"मैं कहती हूँ आखिर ज़रूरत क्या थी यूँ बिना सूचना दिये 1 दिन पहले ही आने की ?ओमू को बता देते तो वो हमें लेने आ जाता इतनी परेशानी होती ही नहीं ।"सरस्वती हांफ़ते हुऐ बोली ।
"आप भी ना...कुछ समझती ही नहीं हो...अंग्रेजी में इसे सरप्राइज देना कहते हैं ,सोचो ज़रा वो दोनों हमें अचानक देखेंगे तो कितने खुश होंगे ।अब तुम चुप रहना ।ओमू का फ्लैट नम्बर यही है ।"
दरवाजे पर ओम मिश्रा लिखा देखकर नारायण मिश्रा नें अंदाजा लगाया ।दरवाजा हल्का सा खुला था ।अंदर से ओम और उसकी पत्नी के तीखे स्वर बाहर तक आ रहे थे ।
"रिलेक्स रिमि...बात को समझने की कोशिश करो.."
"क्या समझूं मैं..? यही कि जन्मदिन मनाने के बहाने तुम उन्हें हमेशा के लिये यहाँ रखने वाले हो..!"
"हमेशा के लिये कौन रख रहा है ,बात सिर्फ़ लक्ष्य की देखभाल की है ,माँ यहाँ होंगी तो हमें लक्ष्य की कोई चिंता नहीं रहेगी ।तुम भी ऑफिस निकल जाती हो..आया के भरोसे कब तक रखेंगे अपने बेटे को...? एक बार ये थोड़ा बड़ा हो जाये स्कूल जाने लग जाये तो मम्मी पापा को वापस गाँव भेज देंगे..।"
"तुम्हारे लिये आसान है ये सब कहना..मैं ही जानती हूँ कितनी मुसीबतें आने वाली हैं...तुम्हारी मम्मी को हर बात से दिक्कत होती है...सारी फ्रीडम ख़त्म होने वाली है और फ़िर मैं 4 लोगों का खाना रोज़ रोज़ नहीं बना सकती...साफ साफ कह रही हूँ...।"
मिश्रा दम्पत्ति अवाक खड़े सारी बातें चुपचाप सुन रहे थे ,उनके क़दम वहीं ठिठक कर रह गये ।
"अब चलो भी....यहीं पूरा दिन बिताने  का विचार है क्या ?"
नारायण मिश्रा नें कहा ।
"कहाँ जाना है...अंदर ?"सरस्वती अपने आँसू छिपाने का विफल प्रयास कर रही थी ।
"अरे नहीं.. वहीं...इंडिया गेट ,कुतुबमीनार ,अक्षरधाम ,लाल किला....और भी बहुत सारी जगह हैं...।"
नारायण मिश्रा बैग से पर्यटन की किताब निकालते हुऐ बोले ।

अल्पना नागर


Wednesday 3 January 2018

कहानी -समंदर पार का प्रेम

कहानी
समंदर पार का प्रेम

"हेनरी नॉर्थलैंड....कौन है ये? मेरे पास फ्रेंड रिक्वेस्ट क्यूं आयी है ? अरे!इसने तो  मेसेज भी किया हुआ है..."हैलो" !
चेक करती हूँ..आजकल फर्जी लोग बहुत हो गये हैं..
टाइमलाइन...फोटोज..उफ़्फ़.. सो हेंडसम एंड इंटेलिजेंट भी...!कमाल है साहित्यिक शौक भी रखता है वो भी इतने उच्च विचार...यार फेक तो नहीं लग रहा कहीं से भी...पर मुझे क्यूँ भेजी रिक्वेस्ट?"
"अंजू बेटा क्या कर रही है दिनभर लॅपटॉप के चिपकी रहती है कोई और काम नहीं है तुझे ?चल इधर आ..मलाई कॉफ्ता कैसे बनाते हैं देख ले..कम से कम पास आके खड़ी ही हो जाया कर।"
"वाउ मलाई कॉफ्ता...मुझे बहुत पसंद है..मम्मा अभी आयी बस 2 मिनट्स..।"
अंजना एक साधारण नैन नक्श ,सांवले रंग,मंझोले कद वाली बी.कॉम तृतीय वर्ष की छात्रा थी।पढाई में हमेशा अव्वल,सम्वेदनशील हंसमुख लड़की थी।अंतर्मुखी लेकिन व्यवहारकुशल।यात्रा करना और किताबें पढ़ना बेहद पसंद था,पढ़ते पढ़ते उसके मन के उद्यान में सृजन के बीज कब अंकुरित हुऐ वो खुद भी नहीं जानती।समय मिलते ही अपने अनुभवों को एक कुशल कारीगर की तरह शब्दों का आकार देने लगी थी।हिंदी व अँग्रेजी दोनों भाषाओं में उसकी पकड़ लाजवाब थी।समय के साथ सोच में भी परिपक्वता दृष्टिगत होने लगी।ज़माने के साथ क़दम मिलाते हुऐ उसने अपने विचारों को सोशल साइट्स पर डालना शुरू किया,उँगलियों पर थिरकती आभासी दुनिया में उसके विचार बहुत पसंद किये जाने लगे।वो अपनी इस छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थी।आभासी दुनिया में उसके बहुत से औपचारिक मित्र बन गये थे लेकिन आज पराये देश से किसी विदेशी लड़के की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर वो अपने मन की जिज्ञासा रोक नहीं पाई।
" शहर है...हवाई द्वीप...वाउ सो ब्युटिफुल प्लेस..नीला समंदर..नीला आकाश..बिल्कुल मेरे सपनों जैसा !" अंजना नें उसकी प्रोफाइल को खंगालते हुए सोचा।"लेकिन यार ये लड़का मुझे कैसे जानता है..और क्या सोचकर इसने मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी होगी..मैंनें तो इस शहर का नाम भी अब तक सिर्फ़ किताबों में पढ़ा है...!
लाइक्स एंड इंट्रेस्ट्स...ओह अब समझी ये भी वर्ल्ड लिटरेरि ग्रुप का मेम्बर है...अरे हाँ !इसने तो मेरी पोस्ट भी लाइक की हुई है !हाउ नाईस !"
"नमस्ते अंजना...आपकी बहुत धन्यवाद आप बहुत अच्छा लिखता है।"
"यू नो हिंदी लेंग्वेज़ ?? "
"हाँ मुझे हिन्दी और हिंदुस्तान दोनों से बहुत प्रेम है।इंडिया इज एन अमेजिंग कंट्री..सिम्पली इनक्रेडिबल !"
"वाह आप तो अच्छी खासी हिन्दी बोल लेते हैं बहुत खुशी हुई जानकर ।क्या कभी इंडिया आये हैं ?"
" थेंक यू...मैं कोशिश करता हूँ हिंदी बोलने की बट समटाइम्स ग्रामर में गलत हो जाता हूँ। टूटी फूटी लगभग दस भाषाएँ मैं बोल सकता हूँ। इंडिया लगभग सात महीने रहकर गया हूँ।उत्तराखंड में भारतीय उपनिषद वेद पुराण आदि से रिलेटेड पांडुलिपियों पर मैंने रिसर्च की है।
"देट्स रियली ग्रेट... आई स्टील कांट बिलीव देट आई एम टाकिन्ग टू ए फॉरेनर हू केन स्पीक हिंदी विद ए परफेक्ट फ्लो !!आप तो अद्भुत हैं हेनरी!"
"ह्म्म.. अद्भुत तो आप हैं आपकी पोस्ट पढ़ी मैंने.. आपकी विचार बहुत सुंदर है।"
"ओह शर्मिंदा न करें।मैं बस यूँ ही कभी कभी लिख लेती हूँ।अपने बारे में बताईये ...।"
"मेरा नाम तो आप जान चुका है। हवाई शहर बिल्कुल आपका पॉएम्स जैसा है..दूर तक खुला नीला आसमान..मिरर सा साफ समंदर..ब्युटिफुल नेचर अराउन्ड..मोडरेट टेम्परेचर...यू वुड लव दिस प्लेस.. डिफरेंट कंट्रीज़ की कल्चरल हेरिटेज पर रिसर्च मेरा हॉबी है।इसके अलावा मैं अस्ट्रोनोमर हूँ।एस्ट्रोनॉटिकल इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष है।नये नये ग्रह उपग्रह आकाशगंगा आदि सर्च करना मेरा पैशन है।"
"क्या बात है आप तो बहुत प्रतिभाशाली हैं ।आई एम वेरी मच इम्प्रेस्ड।"
बातों का सिलसिला यूँ ही चलता रहा।समय के साथ मित्रता और समान अभिरुचि नें अपना रंग दिखाना शुरू किया।हेनरी अंजना को अपनी नई नई खोज के बारे में बताता रहता,स्पेस से सम्बंधित फोटोज मेल करता रहता।अंजना को अंतरिक्ष से सम्बंधित खोजों के बारे में बहुत दिलचस्पी थी,जब भी हेनरी उसे किसी नए तारे या उल्का पिंड की खोज के बारे में बताता वो उस नई दुनिया में खो जाती थी।दूसरी ओर अंजना हेनरी को अपने लेखन का अनुवाद करके भेजती रहती,हेनरी भी पूरी रूचि के साथ अंजना के लिखे हुए को समझने की कोशिश करता,वो उसकी बुद्धिमता से काफी प्रभावित हो चुका था।अब हेनरी की हर ख़ुशी में अंजना की भागीदारी सुनिश्चित हो चुकी थी।
धीरे धीरे अंजना हेनरी के चुम्बकीय व्यक्तित्व से आकर्षित होने लगी।हेनरी के व्यवहार से उसे कभी विदेशी होने का आभास नहीं हुआ।हेनरी बहुत ही समझदार और ज़िंदगी के खूबसूरत रंगो से सजा एक गुलदस्ते जैसा था।अंजना और हेनरी एक दूसरे के लिये अलग ही किस्म का आकर्षण महसूस कर रहे थे जो दैहिक आकर्षण के समीकरण से कोसों दूर था।हमेशा एक दूसरे से बात करने की कोशिश, मेसेज का बेसब्री से इंतज़ार करना,एक दूसरे को खुश करने की होड़ में होना...एक अलग ही दुनिया में दोनों सिमटते जा रहे थे।हेनरी ढूँढ ढूँढ कर इंडियन तौर तरीके, बोलचाल आदि सीख रहा था।कोई भारतीय वीडियो अगर मिल जाता तो बड़ी खुशी के साथ अंजना से शेयर करता।हवाई द्वीप की खूबसूरत तस्वीरें वो अंजना को मेल करता रहता।उसकी हर खुशी में अब अंजना एक अभिन्न हिस्सेदार बन गई थी।अंजना की पसंद जानकर हेनरी नें बीफ खाना पूर्णतः बँद कर दिया था।प्रथम दृष्ट्या मामला प्रेम में होने का आभास करा रहा था लेकिन क्या सचमुच वो प्रेम ही था या सोशल मीडिया का छलावा मात्र!!
वक़्त बीतने के साथ दोनों महसूस करने लगे कि ये सिर्फ़आकर्षण मात्र नहीं..एक खूबसूरत अहसास है जिसमें एक दूसरे को पा लेने की कोई अभिलाषा नहीं..दूर दूर तक एक अनोखे अहसास का समंदर था जिसमें बारी बारी से दोनों खुशियों के खूबसूरत मोती चुनते जा रहे थे।अहसास की अजस्र धारा तमाम भौगोलिक सीमाओं को दरकिनार कर बहती ही जा रही थी।
"हैलो अंजना...ये देखो कैसा बना है ?
हेनरी नें एक ब्रेस्लेट की फोटो मेल की।ब्रेस्लेट बीड्स का था जिसमें अँग्रेजी के लेटर्स को जोड़कर अंजना और हेनरी नाम से ब्रेस्लेट तैयार किया गया था।ब्रेस्लेट बड़ी ही मेहनत से तैयार किया हुआ लग रहा था।अंजना फोटो देखकर कुछ समय तक तो कुछ भी बोल पानें में खुद को असमर्थ महसूस कर रही थी फ़िर खुद को सम्भालते हुऐ उसने हेनरी से कहा-
"इट्स ब्युटिफुल हेनरी..ये अब तक का सबसे कीमती तोहफ़ा है।"
"थेंक यू डियर..!यू नो ..कल एक कन्सर्ट था मेरे फेवरेट सिंगर का लाइव शो था..वही जिसका वीडियो मैंने तुम्हें भेजा था..।"
"हाँ याद आया हेनरी,तुमने बताया था।बहुत दिन से इंतज़ार था तुम्हें उसका.. !कैसा रहा कन्सर्ट ?"
"इट वज फेन्टेस्टिक..जब वो कन्सर्ट  अटेंड कर रहा था..आई वज फीलिंग समबडी वेरी क्लोज़ टू मी इन ईच सॉन्ग..।"
"ओह आई एम फीलिंग जेलस फॉर देट समबडी !"
"डोंट फील जेलस डियर... बीकॉज़ देट सम्बडी इज यू ओनली..।"
अंजना का चेहरा ये सुनते ही सुर्ख लाल हो गया।हेनरी नें इससे पहले कभी इस तरह खुल कर अपनी भावनायें प्रदर्शित नहीं की थी।एक लम्बी गहरी चुप्पी दोनों और छा गई।
"आर यू देयर अंजना ? यू नो कल देर रात तक जब मैं ये ब्रेस्लेट बना रहा था मेरे साथ मेरा एक फ्रेंड भी था..ही वज क्यूरियस टू नो अबाउट द नेम 'अंजना '।जब उसने पूछा तो मैं बस मुस्कुरा दिया।आई थिंक वो जान चुका.. देट आई एम फॉलिंग फॉर यू......"
"हेनरी इट्स टू लेट टुडे...वी विल टॉक टुमॉरो,बाई सी यू...।"
अंजना अचानक हुऐ इस परिवर्तन से हतप्रभ थी।उसके पास कोई उत्तर नहीं था।बहुत दिन तक अंजना नें लॅपटॉप व  इंटेरनेट का प्रयोग नहीं किया।कुछ दिन तक उसकी खुद से मौन जंग जारी रही।एक अजीब सा खालीपन उसने महसूस किया।वो हेनरी को 'मिस' कर रही थी...बहुत ज्यादा..।अंजना नें यकायक महसूस किया कि किसी अद्भुत अदृश्य शक्ति नें ज़िंदगी में पहली बार उसके मन पर दस्तक दी है और वो शक्ति कुछ और नहीं..प्रेम है.. हेनरी का प्रेम जिसमें वो आकंठ डूबी हुई है।अंजना के हाथ स्वतः लॅपटॉप पर चले गये।उसने हेनरी को इनबॉक्स किया।
"हेनरी...."
"अंजना...यू ओके डियर ?आई एम सो सॉरी...आई शुड्न्ट हेव बिहेव लाइक देट..।"
"हेनरी डोंट बी सॉरी..इन्फेक्ट आई एम सॉरी,मैंने बिना बताये 25 दिन तुमसे कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया।"
"प्लीज़ डू नॉट फील एम्बेरेस्ड..इट्स ओके।"
"हेनरी आई वोंट टू कंफेस समथिंग टुडे...।"
"कंफेस ?"
"मैंने बहुत सोचा और मैं जान चुकी हूँ कि मैं तुमसे..... प्रेम करने लगी हूँ,क्या तुम भी...?"
"ओह डियर आई वज डाइंग टु हियर दिस फ्रॉम यू...ओफ्कोर्स आई लव यू...लव यू ए लॉट..आई विश यू वर हियर...आई जस वान्ट यू स्कूप अप राइट हियर एट माई प्लेस...एट हवाई...।"
"हेनरी आई एम सॉरी टु से.. बट इट सीम्स इम्पॉसिबल...मैं हवाई द्वीप नहीं आ सकती।मेरे पेरेंट्स मुझसे कभी बात नहीं करेंगे।यू रिमेम्बर आई टोल्ड यू..हम अपना साथी खुद नहीं चुनते..बल्कि परिवार के बड़े लोग चुनते हैं ।"
"ओह नो....।" हेनरी को इस उत्तर की जरा भी उम्मीद नहीं थी।
अंजना के लिये ये बहुत मुश्किल समय था।पारम्परिक परिवार में जहाँ धर्म ही नहीं जाति,गोत्र,वर्ण,समुदाय आदि अच्छी तरह जाँच परख कर रिश्ता तय किया जाता है एक अंजान दूर देश के लड़के के साथ आजीवन रिश्ता स्वीकार करना अंजना के परिवार की सोच से परे था।बी.कॉम समाप्त होते ही अंजना के लिये सजातीय रिश्ते आना शुरू हो गये ।हर दिन के साथ अंजना की दुविधा बढ़ती ही जा रही थी वो हेनरी के अलावा किसी और को जीवनसाथी के रुप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी।उसने पढ़ाई के बहाने अपनी माँ से कुछ महीनों का समय माँगा।
"गुड इवनिंग अंजना..आई होप तुम अभी सोया नहीं..।"
मोबाइल पर हेनरी का मेसेज आया।
"हाहाहा.. ओह हेनरी! इतना टाइम हो गया हमें बात करते लेकिन तुम्हारी हिंदी ग्रामर अभी भी वैसी ही है..."अंजना नें छेड़ते हुए कहा।"यहाँ रात के 11.00 बजे हैं अभी...पर तुम इतनी जल्दी कैसे उठ गये ?तुम्हारी घड़ी में अभी तो सिर्फ़ 3.30 बजे होंगे ! "
"हाँ तुम सो जाता ना इसलिये मैं जल्दी उठ गया बात करनी थी तुमसे...।"
"प्लीज इतना मत सोचा करो मेरे लिये..कभी भी उठा सकते हो मैं थोड़ा देर से सो जाती,तुम मेरे लिये इतना जल्दी उठ सकते हो तो क्या मैं तुम्हारे लिये देर से नहीं सो सकती !!अब बोलो क्या बात है ?"
"अंजना..आई टोल्ड यू देट आई वांट टू बाय ए गुड क्वालिटी टेलिस्कोप विच विल कॉस्ट मी अराउन्ड 50000 डॉलर...एंड द गुड न्यूज इज....आई हेव अरेंज्ड द मनी ।"
"ओह माई गॉड...ये तो बहुत अच्छी ख़बर है..हेनरी ये सपना था न तुम्हारा..मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूँ ये जानकर.."
"मैं भी खुश है बट ...."
"बट क्या हेनरी...?"
"बट आई थिंक...उन पैसों से इंडिया आना ज्यादा फायदेमंद रहेगा..मैंने हवाई से इंडिया आने के टिकिट्स देखें हैं आज ही..।"
"आर यू सीरियस हेनरी..?तुम इंडिया आ रहे हो?"
"येस तुम्हारे पेरेंट्स से बात करने।"
"लेकिन यूँ अचानक...सब ठीक तो है ना ?"
"येस एवरीथिंग इज ओके..मैं थोड़ा परेशान हूँ ।तुम कब तक अपने पेरेंट्स को मना करती रहोगी..कहीं ऐसा न हो तुम हमेशा के लिये मुझसे दूर हो जाओ और मैं देखता रहूँ..!"
"और तुम्हारा टेलिस्कोप खरीदने का सपना..?उसका क्या होगा..मैं जानती हूँ तुमने रात दिन एक करके मनी का प्रबंध किया है और अब जब तुम अपने सपने के इतने करीब हो तुमने प्लान कैंसिल कर दिया...ये सब क्या है हेनरी ?"
"अंजना...लिसन..ये बात सच है कि अड्वान्स्ड टेलिस्कोप लेना मेरा सपना था और अभी भी है लेकिन मेरे सपनों का अंत तुम पर होता है डियर..मेरे लिये फिलहाल तुम इम्पोर्टेंट हो..टेलिस्कोप के लिये मेहनत तो फ़िर से कर सकता हूँ।"
"हेनरी तुम हमेशा मुझे स्पीचलेस कर देते हो..काश मेरे पेरेंट्स को मैं बता सकती कि तुम कितने अलग हो बाकी दुनिया से..।"
हेनरी नें अपना सपना छोड़कर भारत आना चुना।एक नया लक्ष्य और नई चुनौती उसके सामने थी।
हेनरी भारत आ चुका था।उसने बहुत बार अंजना के दिए हुए फोन नंबर पर संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन हर बार नंबर बंद की सूचना ही उसे मिल पाती।बुरी तरह हताश होकर भी उसे एक उम्मीद थी कि अंजना जल्द ही उससे संपर्क करेगी।प्रतीक्षा करते करते पांच महीने बीत चुके थे।हेनरी रोज अपना मेल चैक करता लेकिन वहाँ से भी उसे निराशा ही हाथ लगती।
"अंजू ठीक तो होगी ना!"बार बार किसी अनिष्ट की आशंका से हेनरी का मन घबरा जाता।
"ओह जीसस !अब तो मेरे वीजा की अवधि भी ख़त्म होने वाली है..सिर्फ तीन महीने बचे हैं।मैं अंजना के बिना हवाई नहीं लौटना चाहता।कहाँ हो तुम ..प्लीज एक बार आ जाओ..प्लीज!! आई एम ऑलमोस्ट डेड !"हर दिन के साथ हेनरी की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।उसे महसूस हो रहा था कि वो किसी लंबी अँधेरी गुफा में है जिसका कोई छोर नहीं..बस चलते जाना है...लगातार..सिर्फ अंजना की रोशनी ही उसे दूसरी ओर लेकर जा सकती है।
एक दिन अचानक हेनरी को अंजना का मेल मिला।बुझे हुए हेनरी को जैसे सांसे मिल गई।
"हेनरी आई कांट एक्सप्लेन यू एवरीथिंग राइट नाउ।बट आई हेव टू टेल यू समथिंग.. आई गोट इंगेज्ड !वो इंजिनियर है...मेरा लेपटॉप,मोबाईल सब मुझसे ले लिया गया था।बहुत मुश्किल से आज मेल करने का मौका मिला।"
अंजना नें अपनी एक तस्वीर भी हेनरी को मेल की।
इतने दिन बाद अंजना का ये मेल हेनरी के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था।
"ओह कॉंग्रेट्स अंजना!!आई एम हैप्पी फॉर यू! बट यू आर लुकिंग चेंज्ड।ये नाक में क्या पहना है तुमने!"रिप्लाई में हेनरी नें लिखा।अपने दर्द को छुपाने के प्रयास में वह बात को बदलने की कोशिश कर रहा था।
"इसे बाली कहते हैं..लड़के वालों की तरफ से तोहफा है।पहनना जरुरी होता है।"अंजना का रिप्लाई स्क्रीन पर चमका।
"लेकिन तुम पर अच्छी नहीं लग रही।इट्स लुकिंग लाइक एक्स्ट्रा बर्डन ऑन योर फेस।"हेनरी की बातों में गुस्सा और जलन साफ़ ज़ाहिर हो रहे थे।
"हाँ,अतिरिक्त भार ही तो है !"अंजना नें छोटा सा उत्तर भेजा।
"आर यू हैप्पी अंजू?"
उधर से कोई रिप्लाई नहीं आया।
हेनरी को मेल रिप्लाई करने के बाद अंजना अपनी माँ से लिपटकर बहुत रोई।वह अपनी माँ के ज्यादा करीब थी।हेनरी से जुड़ी ज्यादातर बातें वह अपनी माँ के संग ही साझा करती।संयुक्त पारम्परिक परिवार में जहाँ एक साथ नौ लोग रहते थे,अंजना के लिए खुलकर अपनी बात कहना बेहद कठिन था।अंजना के पिता और ताऊ जी का परिवार एक ही छत के नीचे रहते थे।अंजना की दो छोटी बहनें और थी,जबकि ताऊ जी के परिवार में ताऊ व ताई के अतिरिक्त एक बेटा था।
"माँ क्यूँ कर रहे हैं सब मेरे साथ ऐसा?आपको पता है हेनरी सिर्फ मेरे लिए भारत आया है,अपना सपना तक उसने दांव पे लगा दिया और मैंने ?मैंने क्या किया ?हार मान गई !"अंजना नें सुबकते हुए कहा।
"बेटी मैं समझती हूँ तेरी तकलीफ को,लेकिन समझने की कोशिश कर..तेरे बाद दो छोटी बहनों का ब्याह भी करना है।तेरे पिता अकेले ये सब नहीं कर पाएंगे।एक क्लर्क की तनख्वाह से घर भी नहीं चल पाता,शादी ब्याह तो कर्ज लेकर करना पड़ता...तेरे ताऊजी ऊँचे ओहदे पर हैं,शुक्र है उनकी वजह से आज तुम तीनों पढ़ लिख गई हो,और आज अच्छे परिवार में तेरी शादी तय हो गई है।"
"तो माँ ,आपने क्यूँ नहीं ज्वाइन की बैंक की नौकरी?अगर आज आपकी नौकरी होती तो इस तरह हमें समझौतों से भरी जिंदगी जीने को मजबूर नहीं होना पड़ता।"
"बेटी,ये बात न तो तेरे पिता को पसंद थी और न ही तेरे ताऊजी को।आज से बीस वर्ष पहले जब बैंक में मेरी नौकरी लगी तब ये बात तुम्हारे पिता को सबसे ज्यादा नागवार गुजरी कि औरत होकर मैं नौकरी करने जाऊंगी तो समाज में उनके परिवार की कोई इज्जत नहीं बचेगी।तू जानती है तेरे पिता उस वक्त बेरोजगार थे।
"माँ कभी कभी मुझे बहुत खिन्नता महसूस होती है समाज के दकियानूसी तौर तरीकों पर।एक स्त्री अगर ओहदे में पुरुष से ज्यादा कमाऊ या योग्य है तो वह समाज की आड़ में बहिष्कृत कर दी जाती है,किसी भी तरह से उसे पुरुष के पांव के नीचे रहने को मजबूर किया जाता है।ये कैसा समाज है माँ! "
"जैसा भी है बेटी, इसी में रहना होगा।समाज से बाहर कोई जिंदगी नहीं।मैं तेरे ताऊजी की जिंदगी भर अहसानमंद रहूंगी।"
"बस करो माँ मैं जानती हूँ ये ताऊजी का अहसान नहीं हम पर बल्कि मेरी शादी के जरिये वो अपने बेटे का भला कर रहे हैं।"
"चुप कर अंजू! किसी नें सुन लिया तो मुसीबत आ जायेगी।"परदे लगाते हुए माँ नें कहा।
"तो सुनने दो न आज,ये बात आप भी जानती हैं कि साकेत भैया का तलाक क्यूँ हुआ,कोई भी लड़की भला कब तक अपने पति के बदचलन तौर तरीकों और रोज की मारपीट को सहन करेगी!! तलाक के बाद भैया के लिए और कोई लड़की मिल नहीं रही थी। मैं ये भी जानती हूँ कि जिस लड़के से मेरी शादी तय की गई है उसकी बहन के साथ भैया का रिश्ता तय किया जायेगा...।"
"तुझे ये सब कैसे मालूम?"विस्मित होकर माँ नें पूछा।
"बस मालूम है"।अंजना नें कहा।"लड़के के पिता और ताऊजी एक ही महकमे में है।सांठ गांठ करके ताऊजी नें उन्हें तरक्की दिलाने का वचन भी दिया है,और पता है माँ ! अहसान के इस पवित्र यज्ञ में मुझे आहुति बनाया गया है।"
"माँ,मैं कभी आपको ये बात नहीं बताना चाह रही थी,लेकिन मुझे लगता है अगर आज मैं चुप रही तो जिंदगी भर मुझे आप की तरह बंद दरवाजों के पीछे अपनी जिंदगी बसर करनी होगी...मैं सबकुछ चुपचाप आप को खातिर सहन कर लेती लेकिन अर्जुन...."अंजना कहते कहते अचानक रुक गई।
"क्या बात है अंजू ? तू कुछ छुपा रही है मुझसे ! मेरी कसम है तुझे..सच सच बता..।"
"माँ दरअसल अर्जुन से मेरी बात हुई फोन पर..उसने कहा कि वो शादी मज़बूरी में सिर्फ अपने पिता के कहने पर कर रहा है,वो किसी और विजातीय लड़की के साथ पिछले पाँच सालों से सम्बन्ध में है और शादी के बाद भी रहेगा,ये बात उसने जोर डालकर मुझसे कही है.. अंजना कहती चली गई। "माँ,उसे मेरे सांवले रंग से सख्त एतराज है..उसने कहा कि शादी के बाद वो मुझे किसी भी फंक्शन में साथ लेकर नहीं जा पायेगा,ऐसा करने से उसकी सारी प्रतिष्ठा धूमिल हो जायेगी!"
"बेटी ये क्या कह रही है तू !!"
"हाँ, मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ।चाहो तो अभी आपको अर्जुन और मेरी बीच की बात रिकॉर्डर से सुना सकती हूँ।यहाँ तक कि उसे मेरे लिखने पढ़ने से भी सख्त परेशानी है,उसने साफ़ कहा है कि शादी के बाद ये सब नहीं चलेगा,हमारे घर की बहुएं इस तरह की तुच्छ चीजें नहीं करती।माँ,अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ?मैं जीते जी घुटन से मरना नहीं चाहती।"कहते कहते अंजना का गला भर आया।
अंजना की माँ बुत बन गई मानो किसी नें उसके पांवों के नीचे की ज़मीं को हिला दिया हो।रात के पहर करवटों में बीतते जा रहे थे और एक एक कर किसी फ़िल्म के फ्लैशबैक की तरह पुरानी घटनाएं उसकी आँखों के सामने आती जा रही थी।लेकिन ये सब कुछ हक़ीक़त था कोई फिल्म नहीं..उसकी अपनी बेटी के साथ वही सब पुनरावृति होने जा रही है।
"कितने अरमान संजोये थे मैंने अपनी शादी के लिए! एक एक कर सब बिखरते चले गए..मेरे अंदर की लेखिका को समाज की वेदी पर बलि दे दिया गया।कैसे भूल सकती हूँ वो शब्द जो मेरी प्रथम प्रकाशित रचनाओं पर मेरे जेठ और ससुर नें कहे थे!!"सुमन, ये सब पोथियां किसी रद्दी वाले को बेच दो और बच्चे संभालो..बहुत हो गई लिखाई पढ़ाई..और वैसे भी ये मान सम्मान,पद,प्रतिष्ठा औरतों को शोभा नहीं देती,इसके लिए तेरा पति ही काफी है।क्यूँ पैसों की बर्बादी में लगी हुई हो!अपने परिवार को समय दो।औरतें घर गृहस्थी संभालती हुई ही अच्छी लगती हैं,मर्दों की बराबरी करके मर्द तो नहीं बन जाओगी!!"
और जब मेरे लिए बैंक की नौकरी का प्रस्ताव आया..कितनी खुश थी मैं ये सोचकर कि अब सारी आर्थिक समस्याओं का निदान हो जायेगा,सब लोग कितने खुश होंगे मेरी नौकरी की खबर सुनकर लेकिन...घर में जैसे मौत सा सन्नाटा छा गया था! दिनेश को ये नौकरी का प्रस्ताव नहीं बल्कि समाज में खिल्ली उड़ने का प्रस्ताव पत्र नजर आ रहा था।
नहीं...मैं ये कभी नहीं होने दूंगी..बस बहुत हुआ जो कुछ भी अतीत में मेरे साथ हुआ वो मैं अपनी बच्ची के साथ हरगिज़ नहीं होने दूंगी,चाहे इसके लिए मुझे सारी दुनिया से लड़ना पड़े।आखिर कब तक बेबुनियाद रिश्तों और समाज के नाम पर औरत की बलि दी जायेगी..क्या हम स्त्रियां सिर्फ़ इसलिए पैदा होती हैं कि हमें जब चाहो तब एक मिट्टी की गुड़िया की भाँति तोड़ मरोड़ दिया जाए!
अगले दिन प्रातः अंजना की माँ नें पुराने संदूक से अपनी साहित्यिक किताबें निकाली..उनपर छाई सदियों की धूल को झाड़ा।एक डायरी भी निकली जिसमें सैंकड़ों कविताएं कहानियां लिखी थी,नीचे लिखा नाम 'सुमन सक्सेना' नीली स्याही में आज भी उतना ही चमकदार दिखाई दे रहा था।एक लंबी सी मुस्कान अनायास ही सुमन सक्सेना उर्फ़ अंजना की माँ के चेहरे पर छा गई।
पास ही खड़ी अंजू ये सब देख रही थी..उसकी आँखें आज ख़ुशी से नम थी।
अंजू मेरी बात ध्यान से सुन...कल हम दोनों शॉपिंग के बहाने से घर से बाहर निकलेंगे,मैं हेनरी से एक बार मिलना चाहती हूँ।माँ हूँ आखिर !तसल्ली हुए बिना अपने कलेजे की कौर को किसी को नहीं सौंपूंगी।
अंजू के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान छा गई।वह तुरंत अपनी माँ से लिपट गई।
ठीक है माँ,हेनरी से मेरी बात नहीं हो पा रही इन दिनों..लेकिन मैं इतना निश्चित हूँ कि वो अभी उत्तराखंड ही होगा।मैं अभी उसे एक मेल डालती हूँ।
नियत समय व स्थान पर तीनों मिले।हेनरी पहले ही आ चुका था और अंजू के आने की प्रतीक्षा कर रहा था।कई तरह के सवाल और बेचैनी उसके दिल दिमाग पर हावी हो रहे थे।
"आखिर अंजू नें यूँ अचानक इमरजेंसी बोलकर क्यूँ बुलाया..सब ठीक तो है न?पता नहीं उसके परिवार में उसके साथ कैसा बर्ताव किया जा रहा होगा,ये सब मेरी वजह से हुआ है..क्या करूँ मैं अंजू को परेशान भी नहीं देख सकता।"
'हेनरी'...
अंजू की आवाज नें जैसे हेनरी की तंद्रा को तोड़ दिया हो।
"हेनरी ...सरप्राइज फॉर यू..".अंजना नें चहकते हुए कहा।"इनसे मिलो ये मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी सबकुछ...मेरी माँ हैं।"
अंजना की माँ को देखकर एक बार के लिए हेनरी सकपका गया फिर खुद को संभालते हुए माँ के चरण स्पर्श करने लगा।
अंजना की माँ को इस अभिवादन की आशा नहीं थी,वो मन ही मन काफी खुश हुई लेकिन ये क्षणिक छलावा भी हो सकता है यह सोचकर अपने उत्साह को प्रदर्शित नहीं होने दिया।
हाँ तो हेनरी जी आप मेरी बेटी से विवाह करना चाहते हैं?सुमन सक्सेना नें सीधे सवाल दागा।
'यस...जी...मैं करना चाहता हूँ..।'हेनरी को शुरुआत में ही इस प्रश्न की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।वो काफी घबराया हुआ महसूस कर रहा था।
'लेकिन मेरी बेटी ही क्यों?आपको अपने देश की ही किसी सुयोग्य लड़की से शादी करनी चाहिए थी..!'माँ के इस सवाल पर अंजना नें हैरान परेशान नजरों से अपनी माँ को देखा,मानो वो अपनी माँ के मन की बात सीधे सीधे खोज निकाल लेना चाहती हो।
'जी,मैं आपको ओनेस्टली सब सच बताऊंगा, एक्चुअली मैं मैरिज जैसी किसी संस्था को मानता ही नहीं था...' दोनों ओर एक लंबी चुप्पी के बाद हेनरी नें बात जारी रखते हुए कहा..
लेकिन भारत को जानने के बाद,यहाँ की कल्चर से जुड़ने के बाद मैंने इसके मूल्य को समझा।फिर अंजना से मिलकर मुझे बिलीव हो गया कि मैरिज सिर्फ दो इंसानों के बीच का समझौता नहीं बल्कि दो विचारधाराओं का मिलना है,प्रेम का मिलना है।मैं जिस देश में रहता हूँ वहाँ विवाह करना जरुरी नहीं है,विवाह के बिना भी साथ रहकर आपसी सहमति से रहा जाता है,बच्चे भी पैदा किये जाते हैं और ये सब क़ानूनी तरीके से मान्य है।अंजना से पहले मेरी जिंदगी में कायली नाम की एक लड़की थी,हम कुछ वर्ष साथ भी रहे,लेकिन मैंने कभी प्रेम जैसा अनुभव नहीं किया।हम दोनों किसी समझौते के तहत समय बिताने वाले वो दो लोग थे जिन्हें एक मशीन की तरह एक दूसरे को भोगकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना था,वहाँ प्रेम के सिवाय सब कुछ था,कायली को कुछ समय बाद मुझसे अरुचि हो गई और वो चली गई।मैं किसी सूखे रेगिस्तान में पानी की तलाश में निकला वह मुसाफ़िर बन गया था जिसके सामने मृगतृष्णा रूपी असंख्य जरिये थे जहाँ आत्मा की प्यास बुझाना असंभव था...मुझे आत्म तृप्ति के लिए सुकून के किसी स्त्रोत की आवश्यकता थी।उसी सुकून की तलाश में मैं भारत के उत्तराखंड स्थित सांस्कृतिक संस्थान में कुछ समय के लिए ठहरा,सच कहूं तो वहीं से मेरी तलाश को एक ठहराव मिला।भारत से मैं एक अजीब सा जुड़ाव महसूस करता हूँ,मैं रिसर्च का एक विद्यार्थी हूँ और मन में यही इच्छा है कि बाकि जिंदगी भी भारत की गोद में ही बीते।अंजू से मिलकर मुझे यही लगा कि हम एकदूसरे के लिए ही बने हैं,इसके परिपक्व विचारों में पूरा भारत समाया हुआ है।मैं चाहता हूँ ये खूब लिखे,एक स्वतंत्र पक्षी की तरह विचारों के आसमां में अपने पर फैलाये।मुझे गर्व होता है कि अंजू मेरी जिंदगी में आयी और मुझे सही मायने में प्रेम का मतलब महसूस कराया।मैं नहीं जानता कि मैं अंजू के लिए सही व्यक्ति हूँ या नहीं लेकिन मैं....."
'आप बिल्कुल सही व्यक्ति हैं मेरी अंजू के लिए...'सुमन सक्सेना नें हेनरी की बात को बीच में ही रोककर कहा।
अंजू ,आज मुझे यकीं हो गया तू सचमुच सयानी हो गई रे..! मुझे तेरे चयन पर गर्व है।प्रेम शाश्वत है,यह देश,धर्म,भाषा और संस्कृति से ऊपर है..प्रेम इंसान को ऊपर उठाता है..गिराता नहीं।तू मेरी तरफ से स्वतंत्र है।मैं तेरी दोनों छोटी बहनों को भी खूब पढ़ाऊंगी,उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करुँगी।और अब अपने स्वाभिमान को ताक पे रखकर खोखले लोगों से जरा भी विचलित नहीं होउंगी।
सुमन और अंजना की आँखों में आज ख़ुशी के आंसू थे।पास ही खड़ा हेनरी धीमे धीमे मुस्कुरा रहा था।आज उसे अंजू के रूप में सुकून का स्त्रोत मिल चुका था।

अल्पना नागर©

















Monday 1 January 2018

यात्रा वृतांत


उत्तर पूर्वी भारत यात्रा वृतांत

पहला दिन- 16 दिसंबर 2017
भारत के उत्तर पूर्वी कोने में पहली बार क़दम रखे हैं,काफी रोमांचित हूँ।बाहर का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस है गुवाहाटी में आते ही सबसे पहले कामाख्या देवी के दर्शन को आये हैं।मंदिर के बाहर बहुत सी छोटी दुकानें हैं जहाँ पूजा की सामग्रियों के साथ बांस की बनी टोकरियां,हैंडबैग आदि बहुत सी आकर्षक चीजें बिक्री के लिए रखी हुई हैं।भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में बांस के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं।मंदिर के बाहर ही भगवा वस्त्रों में बहुत से नौजवान पुजारी जैसे लोग घूम रहे हैं।इन्हीं में से एक पुजारी हमारे साथ चलने लगे हैं एक गाइड की तरह वो हमें मंदिर से सम्बंधित जानकारियां दे रहे हैं। हर प्रसिद्ध मंदिर की भाँति यहाँ भी भक्तों की बहुत लंबी कतार है।यहाँ तक कि वीआईपी एंट्री में भी एक लंबी कतार! हालांकि ये वीआईपी संस्कृति मुझे कभी समझ नहीं आयी,दक्षिण भारत के मंदिरों में इसका असर सबसे ज्यादा है।मंदिर के अहाते में सफ़ेद कबूतरों की काफ़ी तादात है।मंदिर परिसर में हमारे बाईं ओर बलि घर है! जी हाँ! यहाँ आज भी बलि देकर प्राचीन परंपराओं को कायम रखा गया है।मन में अज़ीब से भाव आ रहे हैं।माफ़ी चाहती हूँ माँ ,लेकिन रंग लगे मासूम नन्हे बकरों को देखकर बार बार एक बात दिमाग में आ रही है ...क्या बलि लेना इतना आवश्यक है!
दर्शन के बाद दोपहर लगभग 3.15 पर तेजपुर के लिए रवाना हो रहे हैं।रास्ते भर गाड़ी की खिड़की से असम के ग्रामीण अंचल की झलक देखकर दिनभर की थकान जैसे छूमंतर हो गई।सादा लेकिन खूबसूरत मनोरम दृश्यों नें बचपन की चित्रकारी को पुनर्जीवित कर दिया,एक छोटा सा झोपड़ीनुमा घर,उसके सामने छोटा सा तालाब,आसपास ढेर सारे हरे भरे पेड़,विशेषतः सुपारी का पेड़,मिट्टी की बनी कच्ची पगडंडी.. ये सब कुछ आँखों के सामने है एक स्वप्न की तरह।देखते ही देखते शाम ढल चुकी है,लेकिन समय देखा तो यकीन नहीं हुआ घड़ी सिर्फ दिन के 4 बजा रही है! 5.15 तक अँधेरा पूरी तरह हावी हो चुका है।
दूसरा दिन
तेजपुर से हाथी की सवारी करने सुबह 3.30 पर काजीरंगा की ओर बढ़ रहे हैं।इतना कोहरा कि हाथ को हाथ नज़र न आये।पता नहीं ड्राइवर महोदय के पास कौनसी जादू की छड़ी है,इन्हें सब दिख रहा है हम लोग उल्लू की तरह लगातार नजर सड़क पर गड़ाए बैठे हैं फिर भी कुछ नज़र नहीं आ रहा।खैर,अपनी दक्ष नजरों से घने कोहरे को चीरते हुए ड्राइवर आगे बढ़ रहे हैं।हम ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर से गुजर रहे हैं,कोहरा अपनी चरम सीमा पर है।रास्ते भर भगवन का नाम जपते आये हैं कि हे भगवान पुराने पाप कर्मों का हिसाब आज ही मत करने बैठ जाना!ड्राइवर नें बंगाली भाषा में बहुत मधुर संगीत बजाया हुआ है,यहाँ बांग्ला भाषी लोगों की अधिकता है।अंततः हम आ पहुँचे हैं कांजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य।हाथी सफारी करने को पूरी तरह तैयार।अभी भी कोहरे के कारण काफी अँधेरा है।सुबह के 5.30 बजे हैं।जिस हाथी पर हम सवारी करने जा रहे हैं उसका नाम लकी पूर्णिमा है।हाथी पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं इसका अंदाजा सिर्फ ये देखकर लगाया जा सकता है कि सभी हाथी पर्यटकों को फोटो खींचने के लिए तरह तरह के पोज़ दे रहे हैं।काजीरंगा अभ्यारण्य में कुछ दूर बढ़ने पर घनी झाड़ियों में एक गेंडा दिखाई दे रहा है,महावत हाथी को आगे बढ़ने का निर्देश देता है,लकी पूर्णिमा गेंडे के बिल्कुल नज़दीक
आ चुकी है,लेकिन ख़तरा भाँपकर गेंडा वहाँ से रफूचक्कर हो चुका है।कोहरा अभी भी काफी है लेकिन दिन चढ़ने के साथ साथ नज़ारे स्पष्ट होते जा रहे हैं।हाथी की सवारी का अपना एक अलग आनंद है।कोहरे की चादर में ढका जंगल,और बेफ़िक्र घूमते जानवर..सचमुच प्रकृति कमाल की जादूगर है!लकी पूर्णिमा अपनी मस्ती में मगन जंगल की घनी झाड़ियों को पार कर आगे बढ़ती जा रही है।आगे बढ़ने पर जंगल में पानी की एक बड़ी दलदली झील दिखाई देती है,झील के आसपास का सफ़ेद कोहरा और लकड़ी के सूखे पेड़ एक तिलस्म सा रच रहे हैं।एक पल को मैं इस खूबसूरत नज़ारे में खो चुकी हूँ,दृश्य देखकर मुझे इस वक़्त सदाबहार सिने तारिका रेखा और नसीरुद्दीन शाह अभिनीत गाना 'कतरा कतरा बहती है' यूँ ही स्मरण हो आया है।काजीरंगा अभ्यारण्य उतना घना नहीं है जितना पर्यटक कल्पना करते हैं,इसलिए यहाँ हाथी, हिरण और गेंडे के अलावा कुछ नजर नहीं आएगा।स्थानीय ड्राइवर के अनुसार यहाँ घना जंगल भी है जो जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित है वहाँ पर्यटकों का प्रवेश निषिद्ध है।काजीरंगा में आगे बढ़ने पर गेंडों का पूरा झुण्ड नजर आ रहा है..हम सब की निगाहें खुली की खुली रह गई हैं,महावत हाथी को और नजदीक ले कर जा रहा है,सचमुच बेहद रोमांचक अनुभव है।महावत के अनुसार गेंडा बहुत ही शांतिप्रिय जीव है,बशर्ते इसे छेड़ा न जाए!जंगल सफ़ारी ख़त्म हो चुकी है,लगभग एक घंटे की यात्रा के बाद हम पुनः अपने स्थान पर आ चुके हैं।
आगे बढ़ते हुए सुबह लगभग 8.30 बजे हम नेशनल ऑर्किड एंड बायो डाइवर्सिटी पार्क पहुँचे हैं।सच बहुत खूबसूरत है।सुबह के समय यहाँ पर्यटकों की भीड़ बिल्कुल नहीं है।पार्क में प्रवेश करते ही हम फूलों के संग्रहालय में पहुंचे हैं जहाँ तरह तरह के चित्ताकर्षक फूलों की विविधता है,जिनमें डान्सिंग लेडी फूल जो देखने में हूबहू भरतनाट्यम करती महिला जैसा प्रतीत होता है,लेडी स्लीपर,ज्वैल प्लांट,ऑर्किड फूल और विभिन्न औषधीय पौधों नें मन मोह लिया है।एक स्थानीय गाइड हमें पौधों की विस्तार से जानकारी दे रहा है।पार्क में आगे बढ़ने पर एक फोटो गैलरी है जहाँ आसाम की मुख्य धरोहरों की तस्वीरें लगी है,साथ ही पुराने लकड़ी से बने बर्तन,आसाम की विरासत को बयां करते विभिन्न धातुओं के गहनें, पुराने सिक्के,नोट आदि सहेज कर रखे हुए हैं,पास ही कपड़े बुनने के करघे लगे हैं।विभिन्न प्रकार के चावल भी देखने को मिले।एक कैक्टस गार्डन है जहाँ कैक्टस की ढेरों प्रजातियां हैं।पार्क में एक खूबसूरत सा तालाब है जहाँ बोटिंग भी कराई जाती है,तरह तरह की मछलियां पास से देखने को मिल जाती हैं,यह बिल्कुल रोचक अनुभव है।पार्क में एक छोटा सा स्टॉल है जहाँ विभिन्न फलों का ताजा रस प्यारी सी मुस्कान के साथ पर्यटकों को दिया जाता है,अनन्नास,स्टार फल,नींबू,फालसा और भी कई तरह के फल रखे हुए है।स्थानीय लोग बहुत ही मिलनसार एंव विनम्र हैं, यहाँ आगंतुकों के स्वागत के लिए आसामी संस्कृति को दर्शाते हुए बेहद लुभावने नृत्य व गायन का प्रबंध भी है।आसाम के बिहू नृत्य में यहाँ के कलाकारों नें हमें भी नृत्य के लिए आमंत्रित किया है।संगीत इतना मधुर है कि पाँव स्वतः ही नृत्य के लिए थिरकने लगे हैं।कभी न विस्मृत होने वाला पल है।निपुण कलाकारों के साथ तस्वीरें लेकर हम पार्क में आगे बढ़ रहे हैं।आगे औषधीय पौधों की एक विशाल श्रृंखला है,जिसमें तुलसी,संजीवनी बूटी,रेशम बनाने वाले कीड़े,शंखपुष्पी,काली मिर्च,लेमन ग्रास,हर्बल लिपस्टिक का पौधा,एक किस्म का इत्र जो पौधे पर लगे कीड़े से उत्पन्न होता है ,प्रमुख है।एक स्थानीय गाइड हमें विस्तार से औषधीय गुणों का विवरण दे रही है।पार्क बहुत ही आकर्षक व दर्शनीय है।
तीसरा दिन - अरुणाचल प्रदेश
तेजपुर से सुबह 8.45 पर हम बोमडिला की तरफ बढ़ रहे हैं।बोमडिला अरुणाचल प्रदेश का प्रमुख शहर है।अरुणाचल यानि 'उगते हुए सूर्य का प्रदेश'।जी हां,बिल्कुल सत्य है,अरुणाचल प्रदेश में सूर्य देव बहुत जल्दी दर्शन देते हैं साथ ही अस्त भी जल्दी हो जाते हैं।यात्रा के दौरान रास्ते भर घरों के बाहर सुपारी के पेड़ों की प्रचुरता दिखाई दे रही है।आगे बढ़ते हुए हम नामेरी फॉरेस्ट से गुजर रहे हैं,पेड़ों की प्रचुरता मंत्रमुग्ध करने वाली है।सड़क के दोनों ओर बस घने पेड़,ताज़ी हवा,आँखों को सुकून देते ये पल एक यादगार सफर के गवाह हैं।
भालुकपोंग में प्रवेश के साथ ही अरुणाचल प्रदेश शुरू हो जाता है।साथ ही मोबाईल का नेटवर्क भी जा चुका है।रास्ते भर छोटे बड़े झरने और नदियों नें मन को जैसे बांध लिया है।सड़क किनारे छोटी छोटी दुकाने हैं जहाँ पारदर्शी डिब्बों में बांस के पौधे के छोटे टुकड़ों के काटकर भरा गया है जिसका प्रयोग स्थानीय लोग खाने में करते हैं।
सर्पिलाकार सड़कों से गुजरते हुए गाड़ी सावधानी से धीरे धीरे आगे बढ़ रही है।भूस्खलन की वजह से भारी मात्रा में पहाड़ियों से छोटे बड़े पत्थर निकले हुए हैं।यहाँ बांस के पेड़ों के प्रचुरता है।जैसे जैसे ऊँचाई पर बढ़ते जा रहे हैं,चीड़ के खूबसूरत पेड़ नजर आने लगते हैं,सीधे मुस्कुराते हुए आत्मविश्वास से लबरेज़ चीड़ मानों आकाश को निमंत्रण दे रहे हैं,लगता है आकाश के उस पार की दुनिया से इनका गहरा संबंध है,ये खूबसूरत पेड़ बारिश को बुलाते हैं और खिलखिलाती नदियां और भी हसीं हो उठती हैं।पहाड़ों पर प्रकृति नें अपने सारे रंग उड़ेल दिए हैं कभी सुर्ख़ लाल फूलों से सजी वादियां तो कभी बसंती रंग से घिरी पहाड़ियां अपलक निहारने को मजबूर कर रही हैं।
बोमडिला पहुँच चुके हैं।ठंडक का अहसास यहाँ चरम सीमा पर है।पानी हड्डियों को कँपा देने तक ठंडा है।पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ बिजली की बहुत कमी है।रात को लॉज की बालकनी से चाँद की प्राकृतिक रोशनी में शहर बहुत खूबसूरत नज़र आ रहा है,पास ही कहीं म्यूजिक कॉन्सर्ट हो रहा है,जहाँ से आ रहा हल्का हल्का संगीत रात के शांत वातावरण में खुशबू की तरह घुल रहा है।जहाँ हम ठहरे हैं वहाँ पास ही एक बौद्ध मठ है,अंदर जाने पर ठहरी हुई शांति का आभास हुआ।बौद्ध धर्म की एक विशेषता जो मुझे बहुत पसंद है वो ये कि यह धर्म बहुत लचीला है किसी तरह की कोई कठोर पाबंदी नहीं।हर धर्म के लोग यहाँ आते हैं।हिमाचल के धर्मशाला स्थित मठ से विपरीत यहाँ सादगी नज़र आयी।धर्मशाला मठ में बौद्ध संतों की तस्वीर के आगे आधुनिक जीवनशैली से सम्बंधित सभी खाद्य सामग्रियां रखी हुई थी,जो स्वयं में एक रोचक अनुभव था।खैर! हम लौटते हैं पुनः बोमडिला मठ की ओर।मठ के पास ही गुरुकुल जैसा स्थान है जहाँ शाम के समय बौद्ध वेशभूषा में कुछ बच्चे खेलते हुए दिखाई दिए।हमने आगे बढ़कर उनसे मित्रता करनी चाही लेकिन वो शायद अजनबी लोगों को देखकर घबरा गए।कुछ ही देर में बच्चे वहाँ से लगभग गायब हो चुके हैं।बोमडिला एक छोटा सा शहर है जिसे यहाँ का फैशन सिटी भी माना जाता है,यहाँ पहुंचकर शहरी संस्कृति का आभास हुआ,लड़के लड़कियां खूबसूरत आधुनिक परिधानों में दिखाई दे रहे हैं।
चौथा दिन(बोमडिला से तवांग)
अगले दिन सुबह 6 बजे हम बोमडिला से सेला पास जाने के लिए रवाना हो रहे हैं।बोमडिला से तवांग की यात्रा लगभग 8 घंटे है।लंबे सफर के लिए जरुरत का खाने पीने का सामना लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं।रास्ते में खूबसूरत दृश्यों नें मन को बाँध लिया।उत्तर पूर्व भारत प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है,लेकिन रास्ते में बड़े ट्रकों की आवाजाही और उनसे निकलने वाला डीज़ल युक्त काला धुंआ अरुणाचल की ख़ूबसूरती में काले धब्बे की तरह लग रहा है।सेला पास पहुँचने पर हमारी उम्मीद के विपरीत चटख धूप निकली हुई है।दिल्ली के प्रदूषण युक्त धुंधले आसमान की तुलना में यहाँ का आसमान बिल्कुल नीला और साफ़ है।सेला पास पर ही एक खूबसूरत झील है जो ठण्ड में पूरी तरह जम चुकी है।यहाँ आसपास पहाड़ियों पर नीचे तक हल्की बर्फ़ छाई हुई है।
सेला पास नाम के पीछे भी एक वास्तविक कहानी है।कहा जाता है कि 1962 में जब चीनी सैनिकों ने भारत पर आक्रमण कर दिया था तब एक भारतीय सैनिक जिनका नाम जसवंत सिंह रावत था, उन्होंने पूरी बहादुरी के साथ लगातार बहत्तर घंटे दुश्मन सेना का मुकाबला किया था, उसी दौरान सेला और नूरा नाम की दो स्थानीय युवतियों नें जसवंत सिंह की भरपूर मदद की,उनके खाने पीने से लेकर बंकर में बंदूक लाने तक में सहायता पहुंचाई।चीनी सैनिकों का एक बम सेला नाम की युवती के पास आकर फटा जिससे उसकी मृत्य हो गई थी,उसी शहादत के परिणामस्वरूप तवांग स्थित मार्ग का नाम सेला पास रखा गया है।
रास्ते में जसवंत मेमोरियल गढ़ आया है।जसवंत जी के बारे में काफी पढ़ा व सुना था आज उस स्थान पर पहुंचकर मन श्रद्धा से नतमस्तक हो गया है।1962 में भारत चीन के युद्ध के समय सैनिक जसवंत नें जिस बहादुरी के साथ 72 घंटों तक अकेले चीनी सेना का मुकाबला किया वह रोंगटे खड़े करने वाला है,यह हमारे बहादुर सैनिकों का ही योगदान है कि कोई भी पड़ोसी देश भारत की ओर आँख उठाकर देखने से पहले कई बार सोचते हैं। माना जाता है कि जसवंत गढ़ में आज भी एक कमरा शहीद जसवंत जी के लिए सुरक्षित है जहाँ हर रोज़ नाश्ता रखा जाता है,बिस्तर तैयार किया जाता है,जानकारों के मुताबिक प्रातः बिस्तर पर सिलवटें दिखाई देती हैं।हमारे साथ जो ड्राइवर हैं उनका कहना है कि चीन नें काफी तकनीक विकसित कर ली है,उनकी बनाई सड़कों पर किसी रसायन के प्रभाव की वजह से बर्फ़ बिल्कुल भी नहीं जमती जबकि भारतीय सैनिकों को दुश्मन से भिड़ने से पहले आंतरिक तौर पर कई समस्याओं से जूझना पड़ता है जैसे बर्फ की अधिकता, सड़क की कनेक्टिविटी का अभाव, रास्ते में प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप भूस्खलन आदि का होना।
आगे बढ़ने पर रास्ते में नूरानांग प्रपात के लिए रुके हैं।इसे बोंग बोंग या जंग झरना भी कहा जाता है।यह लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिरकर तवांग नदी में मिल जाता है।बोमडिला और तवांग को जोड़ने वाली सड़क से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है।इसकी खूबसूरती को शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है।इतनी ऊंचाई से गिरते दूधिया झरने को देखकर एक पल के लिए ख़ुशी से चीख निकल पड़ी।झरने पर गिरती सूर्य की किरणें न जाने एकसाथ कितने इंद्रधनुष बना रही हैं।उस पल को सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता है,मुझे समझ नहीं आया कि किस तरह मैं इस खूबसूरत क्षण को हमेशा के लिए सहेज कर रखूं,मैं जानती हूँ इस वक़्त मोबाईल को बीच में लाना एक तरह का दख़ल होगा लेकिन उंगलियाँ स्वतः मोबाईल की ओर बढ़ रही है।एक वीडियो के रूप में इस विशालकाय झरने को समेटने का प्रयास किया है।ये झरना गोवा के दूधसागर प्रपात से भी ज्यादा मनमोहक है।जिंदगी में एक बार सभी को अवश्य यहाँ आना चाहिए।
पांचवा दिन
तवांग में एक रात रूककर हम अगले दिन तवांग बौद्ध मठ के दर्शन की ओर जा रहे हैं,मठ विशालकाय और बहुत खूबसूरत है,लगभग 400 वर्ष पुराना मठ छठे दलाई लामा का जन्म स्थान है।यह मठ तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद एशिया का सबसे बड़ा मठ है।अंदर महात्मा बुद्ध की 8 फीट ऊँची स्वर्ण प्रतिमा दर्शकों को विस्मय में डालने के लिए काफी है।बौद्ध मठ में लाल पीले,नीले, हरे और सफ़ेद रंगों की अधिकता है,जो देखने में काफ़ी आकर्षक लगता है।मठ में ही एक संग्रहालय है जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बंधित वस्तुएं रखी हैं,यहाँ गैलरी में विभिन्न नेताओं व महत्वपूर्ण लोगों की तस्वीरें लगी हैं,जो तवांग बौद्ध मठ में आये थे,जिनमें राजीव गांधी,सोनिया गांधी,इंदिरा गांधी, भूतपूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी,पंडित नेहरू मुख्य है।लगभग 33 किलोमीटर आगे बूमला पास की ओर बढ़ रहे हैं,यहीं चाइना बॉर्डर है।रास्ते में बहुत सी खूबसूरत झीलें हैं जो ठंड के कारण जम चुकी हैं,इन्हीं में से एक नाकुला झील पर हम रुके हैं,यह बेइंतिहा खूबसूरत झील है।एक और झील है जो सिने तारिका माधुरी दीक्षित की कोयला फिल्म पर फिल्माए गाने की वजह से लोकप्रिय हो गई है।झील का वास्तविक नाम संगेत्सर झील है,लेकिन इसे माधुरी झील के नाम से जाना जाता है।झील के बीचोंबीच लगे चीड़ के पेड़ खुशनुमा दृश्य बना रहे हैं।आगे बढ़ते हुए हम भारत चीन सीमा पर पहुँच चुके हैं।हम लगभग 15200 फीट की ऊँचाई पर खड़े हैं।बर्फीली हवा है जिसकी रफ़्तार बहुत तेज है।सड़क के दोनों ओर छोटे बड़े कई पहाड़ हैं आसपास की जमीं बंजर और पथरीली है,जो एक पल को यक़ीनन किसी दूसरे ग्रह का भ्रम दिलाने के लिए काफी है।दूर बर्फ से ढके चीनी पहाड़ दिखाई दे रहे हैं।भारत चीन सीमा पर खड़े हैं।हमारे जैसे कई और पर्यटक हैं जो भारत चीन सीमा के दूसरी तरफ चीनी क्षेत्र में अपने पाँव रखकर रोमांचित महसूस कर रहे हैं,और विदेश यात्रा का 'फील' ले रहे हैं।सीमा क्षेत्र पर ही एक पत्थरों का ढेर लगा है जिसके एक तरफ भारत के ध्वज का निशान है और दूसरी तरफ चीनी ध्वज का निशान है।भारत चीन सीमा समझौते के अंतर्गत अभी सिर्फ लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल है,यही वजह है कि पड़ोसी देश चीन नें सैंकड़ों बार समझौते की अवहेलना कर भारत अधिकृत क्षेत्र को हथियाने की गुस्ताखी की।हालांकि हमारे यहाँ जब तक जसवंत सिंह जैसे देशभक्ति से लबरेज सैनिक हैं तब तक कोई भी देश भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकता।सच,इतनी ऊँचाई पर आकर भारत चीन सीमा के इतने नजदीक खड़े होने पर जो भावना मन में आ रही है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।यहाँ एक सैनिक गाइड की तरह विस्तार से भारत चीन सीमा के बारे में समझा रहा है,उन्हीं से बात करते हुए ज्ञात हुआ कि हमारे सैनिक ठंड की चरम सीमा को भी पार करते हुए लगभग माइनस पच्चीस डिग्री सेल्सियस तापमान में रहकर हमारी रक्षा करते हैं।भारत का ध्वज शान से हवा में लहरा रहा है।भारतीय सैनिकों को कोटिशः नमन,मुझे गर्व है कि मैं भारतीय हूँ।
दिनभर की थकान के बाद शाम 4 बजे हम तवांग स्थित युद्ध स्मारक पहुंचे।वहाँ पहुँचकर महसूस हुआ कि हम भारतीय किस वजह से अपने अपने घरों में आराम से बैठे हैं।स्मारक पर ही एक सैनिक विस्तार से हमें युद्ध का विवरण दे रहे हैं।यह स्मारक 1962 के भारत चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में स्थापित किया गया है,स्मारक को बौद्ध धर्म के साथ मिश्रित करके बनाया गया है ताकि स्थानीय लोग अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।युद्ध में 2420 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।अलग अलग रेजीमेंट्स के सैनिकों के नाम काले रंग की शिलालेखों पर अंकित किये गए हैं।स्मारक में जैसे जैसे आगे बढ़ती गई,एक अलग ही तरह का अनुभव हुआ,आँखों के कोरों में नमी महसूस कर रही हूँ।शहीद सैनिकों के इतने सारे नाम देखकर दिमाग एक बार के लिए सुन्न हो चुका है।अंदर एक छोटा कमरा है जहाँ 1962 के युद्ध से सम्बंधित हथियार,सैनिकों की गोलियों से छलनी हुए हेलमेट रखे हुए हैं।कुछ जापानी राइफल भी रखे हुए हैं।एक जगह मॉडल के रूप में अरुणाचल का नक्शा बनाया हुआ है जहाँ एक सैनिक गाइड युद्ध के समय की परिस्थितियों को विस्तार से समझा रहे हैं,उनके अनुसार चीनी सैनिक भारतीय सीमा को पार कर असम के भालुकपोंग तक आ पहुंचे थे।
छठा दिन
तवांग से दिरांग यात्रा के दौरान रास्ते में अचानक ही मौसम बदल गया है।आँखों को यकीन नहीं हो रहा कि चटख धूप वाला मौसम अचानक से घने बादलों वाला हो जायेगा।रुई जैसे बादल घुमावदार सड़कों पर आकर ठहर गए हैं और देखते ही देखते चारों ओर घना कोहरा छा गया है।स्वर्ग सा नजारा बेहद खूबसूरत और रोमांचित करने वाला है।दिरांग आ पहुंचे हैं।दिरांग घाटी समुद्र तल से लगभग 4910 की ऊंचाई पर स्थित है।नदियों से घिरे पहाड़ी क्षेत्र दिरांग की खूबसूरती देखते ही बनती है।यहाँ झूम कृषि मुख्य आजीविका का स्त्रोत है।नकदी फसलों में सेब,संतरा,अनन्नास की खेती प्रमुखता से होती है।लॉज काफी ऊंचाई पर स्थित है,यहाँ से पूरा दिरांग देख सकते हैं।दिरांग में ही एक गर्म पानी का स्त्रोत है जो कि दर्शनीय है।
सातवां दिन-
यह यात्रा का अंतिम पड़ाव है।तेजपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर नामेरी नेशनल पार्क है।अरुणाचल से गुवाहाटी वापसी के दौरान मार्ग में ब्रह्मपुत्र नदी की ही एक शाखा नदी जिसका नाम 'जिया भरेली' पड़ती है।इसे अरणाचल प्रदेश में कामिंग नदी के नाम से जाना जाता है।नदी बेहद खूबसूरत,सुरम्य है।आसाम घूमने आए पर्यटक इस नदी में राफ्टिंग का आनंद जरूर उठाते हैं।हम भी स्वयं को रोक नहीं पाए।राफ्टिंग के लिए लगभग 2-3 घंटे का समय और धैर्य होना चाहिए।नदी का बहाव फ़िलहाल शांत है।लाइफ जैकेट पहनकर हम राफ्टिंग बोट में सवार हो गए हैं।नदी का क्षेत्र काफी दूर तक फैला हुआ है।लगभग 18 किलोमीटर तक के दायरे में कुशल नाविकों की देखरेख में राफ्टिंग कराई जाती है।नदी यात्रा के बीच बीच में दर्जनों पक्षी दिखाई देते हैं,जिनके बारे में नाविक जानकारी देते रहते हैं,अगर आप एक पक्षी प्रेमी हैं तो निस्संदेह यह यात्रा आपके लिए अविस्मरणीय रहेगी।नदी का बहाव कुछ जगहों पर काफी तेज हो जाता है जिससे राफ्टिंग का आनंद दुगुना हो जाता है।
राफ्टिंग के तरोताजा करने वाले अनुभव के बाद हम तेजपुर शहर घूमने निकले हैं।यहाँ का मुख्य आकर्षण ब्रह्मपुत्र नदी है जो संपूर्ण आसाम की जीवन रेखा मानी जाती है।शिव भक्त यहाँ काफी हैं उसी के अनुसार यहाँ शिव मंदिरों की बहुतायत है,अत्यंत प्राचीन मंदिर यहाँ देखे जा सकते हैं।भैरवी मंदिर,नाग शंकर मंदिर,केटकेश्वर,महाभैरव मंदिर मुख्य हैं।शहर में अग्निगढ़ नामक दर्शनीय स्थल है जहाँ से पूरा तेजपुर देखा जा सकता है।शाम के समय सूर्यास्त का नजारा मन को सुकून देने वाला है।अग्निगढ़ में भगवन कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और बाणासुर की पुत्री के बीच का प्रेम भी दिखाया है।कहते हैं जब बाणासुर को इनके बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया।इससे क्रुद्ध होकर श्री कृष्ण नें आक्रमण कर दिया।काफी रक्तपात हुआ।उसी वजह से इस शहर का नाम तेजपुर पड़ा।हर शहर के नाम के पीछे कोई न कोई कहानी अवश्य होती है जो पूरे शहर के आत्मा या तासीर को,वहाँ की संस्कृति विशेष तक को बयां कर सकती है।
खैर हफ़्ते भर की अविस्मरणीय यात्रा के बाद घर भी लौटना है।भारी मन से आसाम की विविधता भरी संस्कृति और अरुणाचल की सुनहरी पहाड़ियों को अलविदा कह अंततः अपने घरौंदे लौटना है।फिर मिलेंगे....

अल्पना नागर