कहानी
कसूरवार कौन?
"क्या बात है अवनि,सब ठीक तो है न?क्या ऑफिस में कुछ हुआ !"मुझे सोफ़े पर निढाल देख दिनेश नें पूछा।
"लगता है तुम्हारा पुराना माइग्रेन का दर्द लौट आया है,मैं चाय बना कर लाता हूँ..अरे,कुछ तो बोलो..मुझे तुम्हारी चुप्पी की आदत नहीं है।"दिनेश चाय बनाने रसोई घर की तरफ मुड़ा।
"मार दिया उसने...आख़िरकार..।"बेहद धीमी आवाज में मैंने कहा।
"क्या !! किसने किसको मार दिया?"
"राधा नें..अपने हैवान पति को.."
"ओह गॉड ! तभी वो इतने दिन से हमारे घर नहीं आयी,कहाँ है वो अभी..मुझे बड़ी चिंता हो रही है,उसके बच्चे कहाँ है.. कैसे हैं?"दिनेश के स्वर में चिंता साफ़ झलक रही थी।
"सविता नें बताया वो अभी थाने में है,पुलिस ले गई,मर्डर का चार्ज है उसपर..।शून्य आँखों से सामने दीवार को तकते हुए मैंने कहा।
"दिनेश हमें मिलकर आना होगा उससे,प्लीज मुझे ले चलो.. एक बार.."
"ऑफकोर्स हम जाएंगे..मैं गाड़ी के पेपर्स और कुछ पैसे लेकर आता हूँ तुम चलो..नीचे पार्किंग में पहुँचो।"
रास्ते भर मैं राधा के बारे में सोचती रही।
पिछले पांच वर्षों से राधा हमारे घर आ रही थी,सफाई और बर्तन साफ करने के लिए।मुझे आज भी याद है जब वो पहली बार हमारे घर आई थी,आते ही पूरे घर का काम चुटकियों में संभाल लिया था,मैं उसके दक्ष हाथों की कायल थी।करीने से एक एक चीज़ को झाड़ पोंछ कर रखना,और साथ में ढेर सारी बातें करना उसका रोज़ का काम था।लंबा कद,गठीला शरीर,गोरा रंग,सुगढ़ नैन नक्श,गहरे भूरे रंग की आँखें, आँखों के इर्द गिर्द काले घेरे!लेकिन फिर भी वो यक़ीनन सुन्दर थी।दिनभर घरों में काम करके भी उसकी खूबसूरती कम नहीं होती थी।हां,हाथ जरूर रूखे पड़ गए थे।
"तुम बहुत सुंदर हो राधा।"मैं अक्सर उससे कहा करती।
"जी दीदी,सब यही कहते हैं,अभी तो कुछ नहीं काफी झड़ गई हूँ..।"कहते हुए उसकी आँखों की चमक बढ़ जाती थी।" जब मेरी शादी हुई थी न दीदी जी,मैं बहुत सुंदर थी,ये मोटे मोटे हाथ,और फूले फूले गाल..और गोलमटोल आँखें..भरा पूरा सरीर...सब कहते थे श्रीदेवी लगती है देखने में.."शरमाते हुए राधा कहती।
"हम्म,देखने में तो एकदम फिट एंड फाइन हो तुम।हमें देखो !कैसे मोटापे की परत शरीर पर चढ़े जा रही है,पूरा अस्सी किलो वजन हो गया है अब। "खुद को निहारते हुए मैंने कहा।
"अरे दीदी,हम लोगों की तो यही कसरत है,आप लोग तो फिट रहने के लिए..वो का कहते हैं..हाँ,जिम भी जाते हो..हमार जिम तो यही है चौका बरतन..।"हँसते हुए राधा बोली।
"अच्छा तो ये बात है,तो चल ठीक है ..कल से तुम्हारी छुट्टी,अब मैं ही करुँगी घर का काम,वैसे भी मोटापा तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।"मैंने छेड़ने के अंदाज़ में कहा।
",नहीं नहीं दीदी जी,ऐसा जुलम ना करो..यही तो हमार रोजी रोटी है,आप ये सब करते अच्छे नहीं लगोगे।"जल्दी से बात को बदलते हुए राधा नें कहा।
"बच्चे हैं या नहीं अभी.."थोड़ा फ्रेंडली होते हुए मैंने पूछा।
"अरे दीदी जी,दो बच्चे हैं मेरे.. लड़की अभी अभी पंद्रह बरस की हुई है..और लड़का ग्यारह बरस का है।"राधा नें खिलखिलाते हुए कहा।
मैंने ध्यान से देखा,हँसते हुए उसके गालों में भँवर भी पड़ते थे,जो उसे और भी सुन्दर बना देते थे।
"क्या!! तुम्हारी पंद्रह साल की बेटी भी है??क्या बात कर रही हो ! तुम तो कहीं से भी पच्चीस वर्ष से ज्यादा की नहीं लगती।"मैंने आश्चर्य से कहा।
"हम्म,दीदी जी ,मेरी शादी तेरह बरस की उम्र में कर दी थी मेरे गरीब पिताजी नें..शादी के बखत तो मैं महीने से भी नहीं होती थी,पंद्रह बरस की होते होते लड़की हो गई मुझे..मेरी उमर अभी इकत्तीस साल है।मेरा मरद उस बखत सिलाई का काम सीख रहा था।"बीते दिनों को याद करते वक़्त राधा कहीं खो सी जाती थी।
राधा बहुत मिलनसार और हँसमुख स्वभाव की थी,कठिन से कठिन काम भी वो हंसकर कर जाती थी।हम लगभग हमउम्र थे,वो मुझसे कुछ ही साल बड़ी थी,इसलिए हमारे मध्य मैत्री भाव ज्यादा था।
"सुनो राधा,वो कुर्सी इधर ले आओ,साथ बैठकर चाय पीते हैं,इस बहाने तुमसे कुछ देर गपशप भी हो जायेगी..सर्दी बहुत है,काम कुछ देर बंद कर दो।"मैंने जोर देते हुए कहा।
वो कुछ देर ठिठककर कुर्सी को निहारती रही,मानो उसमें करंट लगने वाला हो।
"नहीं दीदी जी,हम कुर्सी पर नहीं बैठ सकते,आप मालिक हैं और हम नौकर आपके सामने कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं है।"
"ख़बरदार जो दुबारा खुद को नौकर कहा तो,मैं निकाल दूंगी तुम्हें,हज़ार बार कहा है,तुम मेरी सहायिका हो,नौकर नहीं..अब चुपचाप बैठो!"मैंने सख्ती दिखाते हुए बोला।
वो घबराई हुई हिरनी की तरह चुपचाप बैठ गई, थोड़ा सामान्य हुई तो अपने बारे में बताने लगी।
"दीदी जी,एक बात कहूँ! आप बहुत अच्छी हैं।"
"धत,इतनी डाँट खाने के बाद भी अच्छी बता रही हो,सच पगली हो तुम.."मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ,मुझे आपका डाँटना, आपका प्यार दुलार,अपनापन सब अच्छा लगता है,वरना आज के ज़माने में कौन हम जैसे कच्ची बस्ती वालों को इज्जत देता है!"
"तुम खुद अच्छी हो राधा,इसलिए सब अच्छा है,अच्छा एक बात बताओ.. तुम कहाँ तक पढ़ी लिखी हो,मैं तुम्हें छोटी मोटी नौकरी दिलाऊँ तो..."संडे के अखबार को किनारे रख मैंने पूछा।
"दीदी जी,मैंने कभी सकूल देखा भी नहीं,मेरे बाबूजी के बड़े बड़े खेत थे,बचपन बस वहीं काम करते बीता,और फिर ब्याह हो गया।मैं अच्छे परिवार से हूँ,मेरी सारी बहनें आज अच्छे घरों में हैं सिर्फ मैं ही घर घर जाकर चौका बर्तन करती हूँ,मज़बूरी है दीदी जी..,लेकिन मैंने जान लिया,पढाई लिखाई कितनी जरुरी है..इसीलिए अपनी बन्नू को पढ़ा रही हूँ।"अपनी बेटी की बात करते वक़्त राधा के चेहरे की चमक बढ़ जाती,अनायास ही उम्मीद और सुनहरे भविष्य के लाखों दीप उसकी गहरी भूरी आँखों में जगमगाने लगते।
"कौनसी कक्षा में पढ़ रही है तुम्हारी बन्नू"
"जी दीदी जी अभी अभी दसमीं पास की है,उसके मास्टर लोग कह रहे थे,बहुत होसियार है आपकी लड़की,एक दिन बहुत आगे जायेगी।दीदी जी मैंने सोच लिया,मैं उसे खूब पढ़ाऊंगी,चाहे जो कुछ भी हो,मैं खूब म्हणत करुँगी उसे आगे बढ़ाने के लिए,जो ठोकरें मैंने अपने जीबन में खाई गई है वो उसके साथ कतई नहीं होने दूंगी।"राधा कहती जा रही थी।"आपको मालूम है दीदी जी,मेरी बन्नू कनेक्टर बनना चाहवे है।"ख़ुशी से चहकते हुए राधा नें कहा।
"कनेक्टर ?"
"हाँ,वही जो सबसे ऊंचा होवे है,म्हारे गांव में जब आते थे ना तो उनकी गाडी में लाल बत्ती जलती थी,और सब लोग उन्हें सलाम करते थे,क्या ठाठ थे उनके !"
"ओहो राधा, तुम कलेक्टर की बात कर रही हो।"मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ दीदी जी वही।"
"अच्छा सुनो,एक बार बन्नू को मेरे पास भेजना,उससे कुछ बात करनी है आगे की पढाई और करियर के बारे में..और मेरे पास कुछ किताबें भी रखी हैं शायद उसके काम आ जाएं।"मैंने कहा।
"जी दीदी जी।"
राधा की बेटी बिल्कुल राधा जैसी बेहद खूबसूरत थी,मैंने बात की उससे,गणित विषय में उसका ज्यादा रुझान था,संयोग से मेरा विषय भी गणित ही था कॉलेज के दिनों में,बहुत सी किताबें थी मेरे पास जो मैंने उसके सुपुर्द कर दी,किताबें पाकर उसके चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी,वो बार बार किताबों को चूम रही थी।पढ़ने के प्रति उसकी इसी ललक नें दसवीं क्लास में उसे पिचानवे प्रतिशत अंक दिलाये थे।आगे की पढाई के लिए भी उसने गणित विषय ही लिया।मैं रोज शाम उसे कुछ देर पढ़ाती, तब तक राधा का घरेलू काम भी समाप्त हो जाता था।
समय बीतता गया।एक रोज सुबह राधा जब काम करने आयी, उसकी आँखें सूजी हुई थी,साथ ही सर पर पट्टी बंधी हुई थी।
"ये सब कैसे..कब हुआ राधा,गिर गई थी कहीं?मैंने पूछा।
वो बहुत देर तक कुछ नहीं बोली,फिर अचानक उसकी रुलाई फूट गई जैसे बहुत दिनों से उसने कुछ छुपा के रखा हो।
"दीदी जी ,वो राक्षस है..मेरा पति मेरा काल है,मैं मर क्यों नहीं जाती,अब और सहन नहीं होता दीदी..।"
मैं अवाक खड़ी उसकी सुनती गई,पिछले चार सालों में कभी उसने अपने पति का जिक्र नहीं किया था।
"वो बहुत पीता है दीदी, इतना कि उसने सिलाई का काम भी छोड़ दिया है,ज्यादा दारु पीने से उसकी रीढ़ की हड्डी तक टूट गई थी,जिसके इलाज के लिए मैंने अपने बाबूजी से पैसे उधार लिए थे..पूरे तीन लाख रूपये लगे थे,कहाँ कहाँ से कर्ज नहीं लिया था मैंने..सबकुछ गिरवी रख दिया था,मेरे बाबूजी के दिए गहने,घर,जमीन सब कुछ..तब जाकर इसका इलाज़ कराया,बिस्तर से उठकर चलने फिरने लायक हुआ,लेकिन मति फिर गई है,ये कमीना दारु छोड़ने को तैयार नहीं..कहता है,मैं दारु नहीं छोड़ सकता,चाहे तो दुनिया छोड़ दूँ..जब इसे दारु की तलब होती है ना ये दीवारों पे अपना सर पटकता है,बहुत बुरी हालत होती है उस बखत..हर महीने मेरे सारे कमाए पैसे छीन कर ले जाता है,दीदी जी मैंने पिछले कई सालों में खुद से खरीदकर एक साड़ी भी नहीं ली।और जब मैं पैसे नहीं देती इसको ये घर का सामान बेच आता है..नामर्द कहीं का.." गुस्से में लाल हुई राधा बोले जा रही थी।
"एक दिन तो हद कर दी उसने,सिलेंडर तक बेच आया!!.बच्चे भूखे बैठे..मैं अपना सर पीट के रह गई..बड़ी मुश्किल से पैसे देकर छुड़ाया।और दीदी आपने जो कूलर और बिस्तर दिया था इस्तेमाल के लिए..मुझे बताते हुए भोत दुःख हो रहा है..उसे भी ये बेच आया अपनी तलब बुझाने को।मैं कहती हूँ दीदी जी ये मेरा मरद दारू नहीं पी रहा बल्कि अब दारु इसको पी रही है!इसे होश ही नहीं रहता..घर में पी के पड़ा रहता है हमेसा..मैं इसकी फैलाई गदंगी साफ़ करते करते हार गई हूँ अब।बरोबर के बच्चे हो गए हैं वो क्या समझते नहीं !कल जब मैंने पैसे देने से मना कर दिया तो कुकर उठा के मारा मेरे सर पे..पूरी पीठ लाल हो गई है इतना पीटा उस कमीने नें.."राधा की आँखों से आंसू बहते जा रहे थे।
"हे भगवान,तुम इतना क्यों सहन कर रही हो,तलाक़ क्यूँ नहीं दे देती,वो किसी काम का नहीं है,तुम्हारे ऊपर बोझ ही है।और क्यूँ देती हो उसे अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे?मरने दो ना..।"मेरे अंदर का गुस्सा बाहर आ चुका था।
"नहीं दीदी जी,वो जिंदा है तब तक मैं सलामत हूँ,वरना बस्ती के गिद्ध मुझे नोंच डालेंगे।आते जाते किन नज़रों से मुझे घूरते हैं मैं बता नहीं सकती,वो है तो कम से कम एक आसरा है।"
"अभी कहाँ है वो,मैं बात करूँ उससे?"मैंने पूछा।मुझे लगा शायद समझाने से बात बन जाये।
"दीदी वो अभी थाणे में है,कल गुस्से में उसकी रपट लिखा दी।अब छुड़ाने जाना है उसे।एक मैं ही तो हूँ उसकी इस दुनिया में..वो कई बार मुझसे कहता है,राधा मुझे कभी छोड़कर मत जाना।"राधा की आँखों में एक अजीब सा शून्य भाव था।मैं समझ नहीं पाई आखिर स्त्री ऐसी क्यों होती है!
कुछ दिन सब सामान्य रहा।मैंने उसके पैसों का हिसाब किताब रखने के लिए बैंक में अकाउंट खुला दिया,उसे बैंक से पैसे निकलना,डालना सीखा दिया।इस बात से वो बेहद खुश थी,एक नई ऊर्जा के साथ उसने काम करना शुरू कर दिया।अब वो अपने पति को बस इतना बताती कि वो थोड़े बहुत घरों में ही काम करती है,लेकिन मैं जानती हूँ वो दिनरात घरों में काम करती थी।अब उसकी बचत होने लगी थी,जिसकी वजह से उसने अपनी बन्नू के लिए न जाने कितने सपने संजो लिए थे।
सब कुछ सही बीत रहा था कि अचानक इस खबर नें मन में असंख्य भूचाल ला दिए।
"आखिर क्या वज़ह होगी जो राधा को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा!"मन ही मन कई तरह के सवाल उफन रहे थे।
"अवनि,चलो..पुलिस स्टेशन आ गया।"दिनेश नें मुझे हिलाते हुए कहा।
मैं जैसे खुली आँखों से देखे किसी बुरे सपने से गुजर रही थी।अंदर जाते हुए कदम लड़खड़ा रहे थे।सारी औपचारिकतायें पूरी कर हम राधा से मिलने गए।राधा बेजान गठरी सी एक कोने में पड़ी हुई थी।हमारी आहट सुन उसमे थोड़ी हरकत हुई।मुझे देखते ही वो फूट फूट कर रोने लगी।मैंने उसे ध्यान से देखा,उसके चेहरे और शरीर पर कई चोट के ताजा निशान बने थे,बिखरे बाल,फटे हाल कपड़े..आँखें रो रो कर सूज गई थी।
"राधा ये सब क्या..."उसकी हालत देखकर मेरा गला रुंध सा गया था,आँखों के कोर गीले हो गए थे,मैं कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।
"दीदी जी..मार दिया मैंने उसे..जान से मार दिया..! इतने लट्ठ बरसाए कि उसके प्राण निकल गए.."इतना कहकर वो फिर से रोने लगी।उसके चीखने की आवाज़ पूरे स्टेशन में गूंज रही थी।
"चुप हो जाओ राधा, हिम्मत रखो..भगवान के लिए..अपने बच्चो की खातिर..मैं कोशिश करुँगी तुम्हे बाहर निकालने की।"
मैं जानती थी इस समय कोई रास्ता शेष नहीं था सिवाय झूठी सांत्वना के..।
"बन्नू और विन्नी कहाँ हैं"?अचानक मेरे दिमाग में राधा के दोनों बच्चों का ख़्याल कौंधा।
"बन्नू..मेरी बच्ची..कैसी फूल सी नाज़ुक और मासूम बेटी ! उस राक्षस की हिम्मत भी कैसे हुई मेरी बच्ची की ओर बुरी नजर डालने की..उसका अपना खून..उसकी अपनी बेटी के साथ ये हरकत!! सोच भी कैसे लिया उस हरामी नें..दारु उसका ईमान ,उसकी बुद्धि भी खा गई.".हिचकियां भरते हुए राधा के मुँह से भयंकर गुस्से की लपटें आ रही थी।
"कमीना उस रात बोले जा रहा था..मुझे 'चाहिए'..बस मुझे 'चाहिए'...मैंने धक्का देकर उसे अपने से अलग किया तो वो बन्नू पर ही..."
राधा दीवार पर अपना सर पीटने लगी।
मैं सुन्न खड़ी सब कुछ सुनती रही।बार बार बस यही सोच रही थी काश! ये सब झूठ हो,एक बुरा सपना हो,लेकिन ये सब सच था,कड़वी हक़ीक़त थी।
"दीदी जी मेरी बन्नू को बचा लो,उस नरक से उसे निकाल दो..उसका मेरे सिवा अब कोई नहीं है।मेरे लड़के को तो उसकी नानी रखने को तैयार है पर बन्नू..वो एक लड़की है..उसका खर्चा उठाने को सबने मना कर दिया।"राधा की आँखों में बेबसी दिखाई दे रही थी।
"बन्नू मेरी बेटी जैसी है,मैं उसे पढ़ाऊंगी,अपने साथ रखूंगी,तुम फ़िक्र मत करो,तुम्हारा मुद्दा मैं महिला अधिकार आयोग तक लेकर जाऊंगी।"पथराई आँखों से राधा को अलविदा कह मैं घर लौट आयी।मुझे समझ नहीं आया आखिर कसूरवार कौन!! राधा,उसका पति या फिर ये समाज,जहाँ शिक्षा से विहीन कर बेटियों को एक बोझ भरी जिम्मेदारी समझकर किसी के भी पल्लू बांध दिया जाता है!!
अल्पना नागर
कसूरवार कौन?
"क्या बात है अवनि,सब ठीक तो है न?क्या ऑफिस में कुछ हुआ !"मुझे सोफ़े पर निढाल देख दिनेश नें पूछा।
"लगता है तुम्हारा पुराना माइग्रेन का दर्द लौट आया है,मैं चाय बना कर लाता हूँ..अरे,कुछ तो बोलो..मुझे तुम्हारी चुप्पी की आदत नहीं है।"दिनेश चाय बनाने रसोई घर की तरफ मुड़ा।
"मार दिया उसने...आख़िरकार..।"बेहद धीमी आवाज में मैंने कहा।
"क्या !! किसने किसको मार दिया?"
"राधा नें..अपने हैवान पति को.."
"ओह गॉड ! तभी वो इतने दिन से हमारे घर नहीं आयी,कहाँ है वो अभी..मुझे बड़ी चिंता हो रही है,उसके बच्चे कहाँ है.. कैसे हैं?"दिनेश के स्वर में चिंता साफ़ झलक रही थी।
"सविता नें बताया वो अभी थाने में है,पुलिस ले गई,मर्डर का चार्ज है उसपर..।शून्य आँखों से सामने दीवार को तकते हुए मैंने कहा।
"दिनेश हमें मिलकर आना होगा उससे,प्लीज मुझे ले चलो.. एक बार.."
"ऑफकोर्स हम जाएंगे..मैं गाड़ी के पेपर्स और कुछ पैसे लेकर आता हूँ तुम चलो..नीचे पार्किंग में पहुँचो।"
रास्ते भर मैं राधा के बारे में सोचती रही।
पिछले पांच वर्षों से राधा हमारे घर आ रही थी,सफाई और बर्तन साफ करने के लिए।मुझे आज भी याद है जब वो पहली बार हमारे घर आई थी,आते ही पूरे घर का काम चुटकियों में संभाल लिया था,मैं उसके दक्ष हाथों की कायल थी।करीने से एक एक चीज़ को झाड़ पोंछ कर रखना,और साथ में ढेर सारी बातें करना उसका रोज़ का काम था।लंबा कद,गठीला शरीर,गोरा रंग,सुगढ़ नैन नक्श,गहरे भूरे रंग की आँखें, आँखों के इर्द गिर्द काले घेरे!लेकिन फिर भी वो यक़ीनन सुन्दर थी।दिनभर घरों में काम करके भी उसकी खूबसूरती कम नहीं होती थी।हां,हाथ जरूर रूखे पड़ गए थे।
"तुम बहुत सुंदर हो राधा।"मैं अक्सर उससे कहा करती।
"जी दीदी,सब यही कहते हैं,अभी तो कुछ नहीं काफी झड़ गई हूँ..।"कहते हुए उसकी आँखों की चमक बढ़ जाती थी।" जब मेरी शादी हुई थी न दीदी जी,मैं बहुत सुंदर थी,ये मोटे मोटे हाथ,और फूले फूले गाल..और गोलमटोल आँखें..भरा पूरा सरीर...सब कहते थे श्रीदेवी लगती है देखने में.."शरमाते हुए राधा कहती।
"हम्म,देखने में तो एकदम फिट एंड फाइन हो तुम।हमें देखो !कैसे मोटापे की परत शरीर पर चढ़े जा रही है,पूरा अस्सी किलो वजन हो गया है अब। "खुद को निहारते हुए मैंने कहा।
"अरे दीदी,हम लोगों की तो यही कसरत है,आप लोग तो फिट रहने के लिए..वो का कहते हैं..हाँ,जिम भी जाते हो..हमार जिम तो यही है चौका बरतन..।"हँसते हुए राधा बोली।
"अच्छा तो ये बात है,तो चल ठीक है ..कल से तुम्हारी छुट्टी,अब मैं ही करुँगी घर का काम,वैसे भी मोटापा तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।"मैंने छेड़ने के अंदाज़ में कहा।
",नहीं नहीं दीदी जी,ऐसा जुलम ना करो..यही तो हमार रोजी रोटी है,आप ये सब करते अच्छे नहीं लगोगे।"जल्दी से बात को बदलते हुए राधा नें कहा।
"बच्चे हैं या नहीं अभी.."थोड़ा फ्रेंडली होते हुए मैंने पूछा।
"अरे दीदी जी,दो बच्चे हैं मेरे.. लड़की अभी अभी पंद्रह बरस की हुई है..और लड़का ग्यारह बरस का है।"राधा नें खिलखिलाते हुए कहा।
मैंने ध्यान से देखा,हँसते हुए उसके गालों में भँवर भी पड़ते थे,जो उसे और भी सुन्दर बना देते थे।
"क्या!! तुम्हारी पंद्रह साल की बेटी भी है??क्या बात कर रही हो ! तुम तो कहीं से भी पच्चीस वर्ष से ज्यादा की नहीं लगती।"मैंने आश्चर्य से कहा।
"हम्म,दीदी जी ,मेरी शादी तेरह बरस की उम्र में कर दी थी मेरे गरीब पिताजी नें..शादी के बखत तो मैं महीने से भी नहीं होती थी,पंद्रह बरस की होते होते लड़की हो गई मुझे..मेरी उमर अभी इकत्तीस साल है।मेरा मरद उस बखत सिलाई का काम सीख रहा था।"बीते दिनों को याद करते वक़्त राधा कहीं खो सी जाती थी।
राधा बहुत मिलनसार और हँसमुख स्वभाव की थी,कठिन से कठिन काम भी वो हंसकर कर जाती थी।हम लगभग हमउम्र थे,वो मुझसे कुछ ही साल बड़ी थी,इसलिए हमारे मध्य मैत्री भाव ज्यादा था।
"सुनो राधा,वो कुर्सी इधर ले आओ,साथ बैठकर चाय पीते हैं,इस बहाने तुमसे कुछ देर गपशप भी हो जायेगी..सर्दी बहुत है,काम कुछ देर बंद कर दो।"मैंने जोर देते हुए कहा।
वो कुछ देर ठिठककर कुर्सी को निहारती रही,मानो उसमें करंट लगने वाला हो।
"नहीं दीदी जी,हम कुर्सी पर नहीं बैठ सकते,आप मालिक हैं और हम नौकर आपके सामने कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं है।"
"ख़बरदार जो दुबारा खुद को नौकर कहा तो,मैं निकाल दूंगी तुम्हें,हज़ार बार कहा है,तुम मेरी सहायिका हो,नौकर नहीं..अब चुपचाप बैठो!"मैंने सख्ती दिखाते हुए बोला।
वो घबराई हुई हिरनी की तरह चुपचाप बैठ गई, थोड़ा सामान्य हुई तो अपने बारे में बताने लगी।
"दीदी जी,एक बात कहूँ! आप बहुत अच्छी हैं।"
"धत,इतनी डाँट खाने के बाद भी अच्छी बता रही हो,सच पगली हो तुम.."मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ,मुझे आपका डाँटना, आपका प्यार दुलार,अपनापन सब अच्छा लगता है,वरना आज के ज़माने में कौन हम जैसे कच्ची बस्ती वालों को इज्जत देता है!"
"तुम खुद अच्छी हो राधा,इसलिए सब अच्छा है,अच्छा एक बात बताओ.. तुम कहाँ तक पढ़ी लिखी हो,मैं तुम्हें छोटी मोटी नौकरी दिलाऊँ तो..."संडे के अखबार को किनारे रख मैंने पूछा।
"दीदी जी,मैंने कभी सकूल देखा भी नहीं,मेरे बाबूजी के बड़े बड़े खेत थे,बचपन बस वहीं काम करते बीता,और फिर ब्याह हो गया।मैं अच्छे परिवार से हूँ,मेरी सारी बहनें आज अच्छे घरों में हैं सिर्फ मैं ही घर घर जाकर चौका बर्तन करती हूँ,मज़बूरी है दीदी जी..,लेकिन मैंने जान लिया,पढाई लिखाई कितनी जरुरी है..इसीलिए अपनी बन्नू को पढ़ा रही हूँ।"अपनी बेटी की बात करते वक़्त राधा के चेहरे की चमक बढ़ जाती,अनायास ही उम्मीद और सुनहरे भविष्य के लाखों दीप उसकी गहरी भूरी आँखों में जगमगाने लगते।
"कौनसी कक्षा में पढ़ रही है तुम्हारी बन्नू"
"जी दीदी जी अभी अभी दसमीं पास की है,उसके मास्टर लोग कह रहे थे,बहुत होसियार है आपकी लड़की,एक दिन बहुत आगे जायेगी।दीदी जी मैंने सोच लिया,मैं उसे खूब पढ़ाऊंगी,चाहे जो कुछ भी हो,मैं खूब म्हणत करुँगी उसे आगे बढ़ाने के लिए,जो ठोकरें मैंने अपने जीबन में खाई गई है वो उसके साथ कतई नहीं होने दूंगी।"राधा कहती जा रही थी।"आपको मालूम है दीदी जी,मेरी बन्नू कनेक्टर बनना चाहवे है।"ख़ुशी से चहकते हुए राधा नें कहा।
"कनेक्टर ?"
"हाँ,वही जो सबसे ऊंचा होवे है,म्हारे गांव में जब आते थे ना तो उनकी गाडी में लाल बत्ती जलती थी,और सब लोग उन्हें सलाम करते थे,क्या ठाठ थे उनके !"
"ओहो राधा, तुम कलेक्टर की बात कर रही हो।"मैंने हँसते हुए कहा।
"हाँ दीदी जी वही।"
"अच्छा सुनो,एक बार बन्नू को मेरे पास भेजना,उससे कुछ बात करनी है आगे की पढाई और करियर के बारे में..और मेरे पास कुछ किताबें भी रखी हैं शायद उसके काम आ जाएं।"मैंने कहा।
"जी दीदी जी।"
राधा की बेटी बिल्कुल राधा जैसी बेहद खूबसूरत थी,मैंने बात की उससे,गणित विषय में उसका ज्यादा रुझान था,संयोग से मेरा विषय भी गणित ही था कॉलेज के दिनों में,बहुत सी किताबें थी मेरे पास जो मैंने उसके सुपुर्द कर दी,किताबें पाकर उसके चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी,वो बार बार किताबों को चूम रही थी।पढ़ने के प्रति उसकी इसी ललक नें दसवीं क्लास में उसे पिचानवे प्रतिशत अंक दिलाये थे।आगे की पढाई के लिए भी उसने गणित विषय ही लिया।मैं रोज शाम उसे कुछ देर पढ़ाती, तब तक राधा का घरेलू काम भी समाप्त हो जाता था।
समय बीतता गया।एक रोज सुबह राधा जब काम करने आयी, उसकी आँखें सूजी हुई थी,साथ ही सर पर पट्टी बंधी हुई थी।
"ये सब कैसे..कब हुआ राधा,गिर गई थी कहीं?मैंने पूछा।
वो बहुत देर तक कुछ नहीं बोली,फिर अचानक उसकी रुलाई फूट गई जैसे बहुत दिनों से उसने कुछ छुपा के रखा हो।
"दीदी जी ,वो राक्षस है..मेरा पति मेरा काल है,मैं मर क्यों नहीं जाती,अब और सहन नहीं होता दीदी..।"
मैं अवाक खड़ी उसकी सुनती गई,पिछले चार सालों में कभी उसने अपने पति का जिक्र नहीं किया था।
"वो बहुत पीता है दीदी, इतना कि उसने सिलाई का काम भी छोड़ दिया है,ज्यादा दारु पीने से उसकी रीढ़ की हड्डी तक टूट गई थी,जिसके इलाज के लिए मैंने अपने बाबूजी से पैसे उधार लिए थे..पूरे तीन लाख रूपये लगे थे,कहाँ कहाँ से कर्ज नहीं लिया था मैंने..सबकुछ गिरवी रख दिया था,मेरे बाबूजी के दिए गहने,घर,जमीन सब कुछ..तब जाकर इसका इलाज़ कराया,बिस्तर से उठकर चलने फिरने लायक हुआ,लेकिन मति फिर गई है,ये कमीना दारु छोड़ने को तैयार नहीं..कहता है,मैं दारु नहीं छोड़ सकता,चाहे तो दुनिया छोड़ दूँ..जब इसे दारु की तलब होती है ना ये दीवारों पे अपना सर पटकता है,बहुत बुरी हालत होती है उस बखत..हर महीने मेरे सारे कमाए पैसे छीन कर ले जाता है,दीदी जी मैंने पिछले कई सालों में खुद से खरीदकर एक साड़ी भी नहीं ली।और जब मैं पैसे नहीं देती इसको ये घर का सामान बेच आता है..नामर्द कहीं का.." गुस्से में लाल हुई राधा बोले जा रही थी।
"एक दिन तो हद कर दी उसने,सिलेंडर तक बेच आया!!.बच्चे भूखे बैठे..मैं अपना सर पीट के रह गई..बड़ी मुश्किल से पैसे देकर छुड़ाया।और दीदी आपने जो कूलर और बिस्तर दिया था इस्तेमाल के लिए..मुझे बताते हुए भोत दुःख हो रहा है..उसे भी ये बेच आया अपनी तलब बुझाने को।मैं कहती हूँ दीदी जी ये मेरा मरद दारू नहीं पी रहा बल्कि अब दारु इसको पी रही है!इसे होश ही नहीं रहता..घर में पी के पड़ा रहता है हमेसा..मैं इसकी फैलाई गदंगी साफ़ करते करते हार गई हूँ अब।बरोबर के बच्चे हो गए हैं वो क्या समझते नहीं !कल जब मैंने पैसे देने से मना कर दिया तो कुकर उठा के मारा मेरे सर पे..पूरी पीठ लाल हो गई है इतना पीटा उस कमीने नें.."राधा की आँखों से आंसू बहते जा रहे थे।
"हे भगवान,तुम इतना क्यों सहन कर रही हो,तलाक़ क्यूँ नहीं दे देती,वो किसी काम का नहीं है,तुम्हारे ऊपर बोझ ही है।और क्यूँ देती हो उसे अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे?मरने दो ना..।"मेरे अंदर का गुस्सा बाहर आ चुका था।
"नहीं दीदी जी,वो जिंदा है तब तक मैं सलामत हूँ,वरना बस्ती के गिद्ध मुझे नोंच डालेंगे।आते जाते किन नज़रों से मुझे घूरते हैं मैं बता नहीं सकती,वो है तो कम से कम एक आसरा है।"
"अभी कहाँ है वो,मैं बात करूँ उससे?"मैंने पूछा।मुझे लगा शायद समझाने से बात बन जाये।
"दीदी वो अभी थाणे में है,कल गुस्से में उसकी रपट लिखा दी।अब छुड़ाने जाना है उसे।एक मैं ही तो हूँ उसकी इस दुनिया में..वो कई बार मुझसे कहता है,राधा मुझे कभी छोड़कर मत जाना।"राधा की आँखों में एक अजीब सा शून्य भाव था।मैं समझ नहीं पाई आखिर स्त्री ऐसी क्यों होती है!
कुछ दिन सब सामान्य रहा।मैंने उसके पैसों का हिसाब किताब रखने के लिए बैंक में अकाउंट खुला दिया,उसे बैंक से पैसे निकलना,डालना सीखा दिया।इस बात से वो बेहद खुश थी,एक नई ऊर्जा के साथ उसने काम करना शुरू कर दिया।अब वो अपने पति को बस इतना बताती कि वो थोड़े बहुत घरों में ही काम करती है,लेकिन मैं जानती हूँ वो दिनरात घरों में काम करती थी।अब उसकी बचत होने लगी थी,जिसकी वजह से उसने अपनी बन्नू के लिए न जाने कितने सपने संजो लिए थे।
सब कुछ सही बीत रहा था कि अचानक इस खबर नें मन में असंख्य भूचाल ला दिए।
"आखिर क्या वज़ह होगी जो राधा को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा!"मन ही मन कई तरह के सवाल उफन रहे थे।
"अवनि,चलो..पुलिस स्टेशन आ गया।"दिनेश नें मुझे हिलाते हुए कहा।
मैं जैसे खुली आँखों से देखे किसी बुरे सपने से गुजर रही थी।अंदर जाते हुए कदम लड़खड़ा रहे थे।सारी औपचारिकतायें पूरी कर हम राधा से मिलने गए।राधा बेजान गठरी सी एक कोने में पड़ी हुई थी।हमारी आहट सुन उसमे थोड़ी हरकत हुई।मुझे देखते ही वो फूट फूट कर रोने लगी।मैंने उसे ध्यान से देखा,उसके चेहरे और शरीर पर कई चोट के ताजा निशान बने थे,बिखरे बाल,फटे हाल कपड़े..आँखें रो रो कर सूज गई थी।
"राधा ये सब क्या..."उसकी हालत देखकर मेरा गला रुंध सा गया था,आँखों के कोर गीले हो गए थे,मैं कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।
"दीदी जी..मार दिया मैंने उसे..जान से मार दिया..! इतने लट्ठ बरसाए कि उसके प्राण निकल गए.."इतना कहकर वो फिर से रोने लगी।उसके चीखने की आवाज़ पूरे स्टेशन में गूंज रही थी।
"चुप हो जाओ राधा, हिम्मत रखो..भगवान के लिए..अपने बच्चो की खातिर..मैं कोशिश करुँगी तुम्हे बाहर निकालने की।"
मैं जानती थी इस समय कोई रास्ता शेष नहीं था सिवाय झूठी सांत्वना के..।
"बन्नू और विन्नी कहाँ हैं"?अचानक मेरे दिमाग में राधा के दोनों बच्चों का ख़्याल कौंधा।
"बन्नू..मेरी बच्ची..कैसी फूल सी नाज़ुक और मासूम बेटी ! उस राक्षस की हिम्मत भी कैसे हुई मेरी बच्ची की ओर बुरी नजर डालने की..उसका अपना खून..उसकी अपनी बेटी के साथ ये हरकत!! सोच भी कैसे लिया उस हरामी नें..दारु उसका ईमान ,उसकी बुद्धि भी खा गई.".हिचकियां भरते हुए राधा के मुँह से भयंकर गुस्से की लपटें आ रही थी।
"कमीना उस रात बोले जा रहा था..मुझे 'चाहिए'..बस मुझे 'चाहिए'...मैंने धक्का देकर उसे अपने से अलग किया तो वो बन्नू पर ही..."
राधा दीवार पर अपना सर पीटने लगी।
मैं सुन्न खड़ी सब कुछ सुनती रही।बार बार बस यही सोच रही थी काश! ये सब झूठ हो,एक बुरा सपना हो,लेकिन ये सब सच था,कड़वी हक़ीक़त थी।
"दीदी जी मेरी बन्नू को बचा लो,उस नरक से उसे निकाल दो..उसका मेरे सिवा अब कोई नहीं है।मेरे लड़के को तो उसकी नानी रखने को तैयार है पर बन्नू..वो एक लड़की है..उसका खर्चा उठाने को सबने मना कर दिया।"राधा की आँखों में बेबसी दिखाई दे रही थी।
"बन्नू मेरी बेटी जैसी है,मैं उसे पढ़ाऊंगी,अपने साथ रखूंगी,तुम फ़िक्र मत करो,तुम्हारा मुद्दा मैं महिला अधिकार आयोग तक लेकर जाऊंगी।"पथराई आँखों से राधा को अलविदा कह मैं घर लौट आयी।मुझे समझ नहीं आया आखिर कसूरवार कौन!! राधा,उसका पति या फिर ये समाज,जहाँ शिक्षा से विहीन कर बेटियों को एक बोझ भरी जिम्मेदारी समझकर किसी के भी पल्लू बांध दिया जाता है!!
अल्पना नागर
Nishabda! Har tisre ghar mein aaj bhi yeh samasya hogi..tum toh khud teacher ho..bakhubi mahesoos karti hogi..
ReplyDeleteAdbhut lekhan...vastavikta ko youn saamne rakh diiya jaise aap biti ho!
You are blessed by Godess Sarswati..likhayi bandh mat karna..yehi samaj ki bahot badi seva hogi!