पिता के लिए
पिता वो जो
संतान की शिक्षा दीक्षा और
विकास के लिए
बन जाता है
कोरा पन्ना..
जिसपर अंकित होता रहता है
समय का महाजनी ब्याज/
पिता वो जो
दुनिया के मेले में कसकर थामता है
संतान की उँगली
भले ही देख न पाती हो
उसकी आँखें
मेले के रंग/
वो बिठाता है संतान को
अपने काँधे पर
महसूस करता है
मेले की रंगीनियां
संतान की उत्साही उँगलियों से/
पिता वो जो
सांझ ढले घर लौटने पर
बाहर पायदान पर ही छोड़ आता है
थकन और उदासी की धूल और
भरकर लाता है झोले में
खुशियों के मीठे फल/
पिता वो जो
रक्तिम आँखों से
पीठ मोड़ लेता है..
बिटिया की विदाई पर
ताकि कमजोर न होने पाए
रिवाजों की कड़ी/
पिता वो जो
जिंदगी भर धूल फांकता फिरता है
संघर्षों की सड़क पर..
उठाता है कंकड़ पत्थर रास्ते के
ताकि सुगम हो सके
संतान का जीवन परिपथ..!
-अल्पना नागर
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