Saturday, 30 May 2020

चींटियां

चींटियां

बड़ी ही शांत होती हैं
चींटियां..
अनुशासनप्रिय,
दत्तचित्त,
श्रमजीवी
चींटियां..
उन्हें चलना होता है निरंतर,
अहर्निश,
बिना रुके
अनथक,
एक सीध में,
लक्ष्य को भेदते हुए
बस चलते जाना होता है..
न जाने कहाँ से लाती हैं
इतना बल
कि पहाड़ के पहाड़
नाप डालती हैं,
गर ठान लें तो
खोखला कर देती हैं
गजराज तक को,
उठा लेती हैं बोझा
स्वयं से बीस गुना!
क्योंकि
जन्म से होती हैं वो
श्रमिक!
श्रमिक जिसकी
नियति में
होते हैं
दुर्गम रास्ते,
एक के बाद एक
दूसरा लक्ष्य..
अरे,हाँ!उन्हीं श्रमिकों की
मेहनकश दुनिया में
होती है एक रानी चींटी भी!
जन्म से विशेषाधिकार युक्त
अपनी प्रजा को
निर्देश देने वाली
हुक्मरान
रानी!
वो लाती है
श्रमिकों को
अपनी दुनिया में
ताकि बेरोकटोक
आराम से
चलती रहे
उसकी दुनिया!
अभी देखा
कुछ रोज पहले
झुंड के झुंड
श्रमिक चींटियों को,
बदहवास सी
इधर से उधर
सुरक्षित ठौर को तलाशती
अपने अंडे उठाये,
किसी अंजान
खतरे को भाँपकर
भागती फिरती
चींटियां..
वक्त के
पहियों तले
घिसटती,
कुचलती
श्रमिक चींटियां..
न जाने क्यों
किसी को दिखाई नहीं देती!
अदृश्य तो नहीं हैं
मगर
फिर भी दिखाई नहीं देती!
आखिर चीटिंयां ही तो हैं!!
पर कभी कभार
आ जाती है नजर
अखबारों में,
कविताओं में
अक्षर अक्षर रेंगती,
नियति से लड़ती
मामूली चींटियां!
बेख़बर
हुक्मरान रानी चींटी
अभी व्यस्त है
अंडे सेने में!
उसके नाजुक कंधों पर भार है
सभ्यता को अक्षुण्ण रखने का,
उसे पैदा करनी है
कुछ और नई श्रमिक नस्लें!
वो जानती है बखूबी
नस्लें बनती नहीं हैं
बनाई जाती हैं...!

अल्पना





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