Monday, 1 June 2020

अन्वेषण


अन्वेषण

इन दिनों
तमाम शहर में
जारी है
उसकी तलाश..
बुद्धिजीवियों नें झोंक रखी है
अपनी संपूर्ण ताकत,
कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा!
फुटपाथ,सड़कें
रेल की पटरियां,
राशन की कतार में
सोम प्रेमियों की पंक्ति में,
धर्मालयों के अहाते से लेकर
बाजार की गली कूंचों तक..
रात दिन एक कर दिया
अन्वेषणकारियों नें
कि पता लगा सकें
उसका उद्गम,
आकार प्रकार,
रूप रंग,गंध या स्वाद!
कभी हुआ करते थे
उसके भी ठाठ,
जब एक फिरंगी
श्वेत चर्म प्रजाति नें
जमाई हुई थी
लंबी घुसपैठ,
उनकी छत्रछाया में
खूब धड़ल्ले से चल रही थी
उसकी दुकान..!
घुसपैठिये चले गए
या समझो
निकाल दिए गए!
मगर
पीछे रह गई
उनकी सौगात..
जिद्दी जात थी,
ऊपर से निकली
ठेठ देशभक्त!
उसे विशेष लगाव हो चला
श्वेत रंग से !
श्वेत चर्म न सही,
खादी श्वेत वस्त्र ही सही!
उसे पूरा यकीन था कि
अवश्य लौटेगा
उसका खोया हुआ सम्मान,
वो दिलाकर रहेंगे उसे
यथेष्ट समुचित स्थान!
श्वेत चर्म की गिरफ्त से
आजाद हो
वो अब खुलेआम
घूम रही थी
आजाद देश की
आजाद वासी..!!
खूब आड़े हाथों लिया
श्वेत वस्त्र धारियों नें,
पंचवर्षीय वायदों
अभियानों में,
हर जगह
परचम लहराती,
दिन दूनी रात गुनी
तरक्की करती हुई..
हाय !..न जाने किसकी
नजर लगी..!!
नजरबंद हुई या
कहीं चली गई !
बीते दिनों से
कोई खबर नहीं..!!
फिर किसी
भलमानुष
'अंतरजाल तंत्र' नें
चिल्ला चिल्ला कर
सूचना दी..
मिल ही गई !
आखिर मिल ही गई !!
ये देखिये
"क्वारनटीन सेंटर से सीधा प्रसारण..
कैसे एक दस साल की लड़की
गपागप खा गई
दस रोटियाँ और चावलों की ढेरी!!
देखिये कैसे
ये तेईस वर्षीय महिला
खा गई रिकॉर्डतोड़
चालीस रोटियाँ और
दस प्लेट चावल एक ही बार में !!"
तमाम देश देख रहा था
फटी आँखों से
'भूख' का वो
ताबड़तोड़ हाल..
कैसे दो निरीह प्राणी
एक युग से
भूख को
अंतस में छुपाए
अब तक
हवा और पानी
खाये जा रहे थे!!
उनकी आँखें
चमक रही थी
किसी बुझती हुई बाती में
अचानक गिरे तेल की भाँति..
महामारी दूर खड़ी
मुस्कुरा रही थी..
जैसे कोई मिशन पूरा हुआ हो,
न न ! इस बार मौत का मिशन नहीं
किसी को जिंदगी बख्शने का!!
और अंततः खोज संपूर्ण हुई
भई ! इसी की तो
तलाश थी..
'भूख' क्या होती है?
कैसी होती है?
क्या रंग होता है?
क्या आकार होता है?
सबके जवाब
आख़िरकार मिल ही गए..
जो काम कर न पाए
बुद्धिजीवी,
वैज्ञानिक,
अन्वेषणकर्ता
और
धर्मानुयायी...
वो कर दिखाया
एक अदनी सी
महामारी नें!!

अल्पना

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