Saturday, 27 June 2020

दो ध्रुवीय जिंदगी

दो ध्रुवीय जिंदगी

अतीत की गलियों में गुम
एक परछाई
आजकल ढूंढ़ रही है
अपना अस्तित्व..!
हाथ पैर सही सलामत
मगर धड़ का कुछ पता नहीं..
सीने में धड़क रहा है कुछ
धौंकनी जैसा..
अभी कुछ सालों तक
पारदर्शी था सब
दिखती थी धौंकनी की नीली नसें तक
मगर अब मोटी परत छा चुकी है..
किस चीज की !
उसे पता नहीं..!!
गोया कि सब पहुँचता है उसके कानों तक
मगर बोलने के वक्त
अटक जाता है हलक में कुछ ..!
बस भारी लगता है सब
जैसे पत्थर रख दिया हो
दस किलो का..!
उसकी कलाइयों में घड़ी है
मगर समय क्या हुआ,
उसे पता नहीं..!
किसी नें छींटाकशी की और
भीग गई वो सर से पाँव तक..!
कैंटीन में सुलगती सिगरेट का
आखिरी कश था या
टेढ़ी टिप्पणी का टुकड़ा कोई
वो चुपचाप जूतों तले दबा गई
तब तक जब तक
कचूमर नहीं निकल गया..!
ठीक पाँच बजकर तीस मिनट पर
ऑफिस की घड़ी उसकी
बेसुध चेतना पर छींटे डालती है..
वो निकलती है पर्स उठाकर..
सब कुछ ले लिया है उसने
बस अपना धड़ छोड़ आयी है
टेबल की दराज में..!
रास्ते भर आसमान का
गहरा धुँआ भीतर तक सोखकर
वो रेंगती हुई
आती है वहीं जिसे दुनिया
'घर' कहती है..!
जूतों के तलवे में ऑफिस से ही
चिपका हुआ है
च्यूइंगम जैसा कुछ..
बाहर पायदान पर छोड़ने थे जूते
मगर वो अंदर ले आयी है..!
खिड़कियों पर लगे परदों पर
मकड़ियां कर रही हैं
कानाफूसी..
सोफ़े के कोने अटे पड़े हैं
माजी की धूल से..!
आईने में खड़ा अक्स कौन है,
दिख नहीं पा रहा,
धुँआ धुँआ उड़ रही है
पहचान किसी की..!
कालीन के नीचे अटकी पड़ी है
पिछले हफ्ते वाली
बेहिसाब हँसी की गूँज..!
आज थकी हुई है वो
शायद नींद आ जाये..
बिस्तर पर पड़ी है पेट के बल
आधे रीढ़ की हड्डी शायद
चुरा ले गया कोई..!
रात के गहराने के साथ ही
गहराता जा रहा है
बिस्तर पर पड़ा काला विवर..
वो धँसती चली जा रही है भीतर तक
बिल्कुल उसकी आँखों के
काले घेरे जितनी..!
दो ध्रुवों में बँटी जिंदगी
नीरव अंधियारे में तलाश रही हैं
एक टुकड़ा नींद..!
नींद टंगी हुई है
वोन गॉग की तस्वीर के हुक में..!
तस्वीर जिसकी धूल झाड़ना
भूल जाती है वो रोज..!
वो जानती है
हुक कमजोर है
ज्यादा दिन झेल नहीं पायेगा
इकट्ठी नींद का वजन..!

अल्पना नागर
#bipolar disorder #itisokay



दो ध्रुवीय जिंदगी :भाग -2

जानती हो
तुम कितनी ख़ास हो..!
जिंदगी के बेहद करीब हो
फिर भी न जाने क्यूँ
हर वक्त उदास हो..!
बंद करो
खुद को दोष देना
आईने पर ऊँगली से
टेढ़ा मेढा कुछ भी लिखना..!
धूल तुम्हारे चेहरे पर नहीं
आईने पर है
जरा ध्यान देना..!
तुम्हारे रहते
क्यूँ करें मकड़ियां
कानाफूसी..!
परदों पर जमी गर्द उतारो
या बदल डालो इन्हें..!
घूम आओ बेशक सारा जहां
मगर लौटते वक्त
जूतों के तले चिपकी
कुंठा की गंद छोड़ आओ
बाहर पायदान पर ही..!
कालीन के नीचे जमा
हफ़्तों पहले की हँसी को
झाड़ दो आज
कर दो आज़ाद..!
नींद की गोलियों को
मार दो गोली
और कर लो थोड़ा
अपनों संग
हँसी ठिठोली..!
बिस्तर पर पड़ी
उनींदी सलवटों में
यूँ न जाया करो भविष्य को,
जिंदगी है तुम्हारी अपनी है..
धड़कने दो इसे धड़ल्ले से
उन चार लोगों की टिप्पणी से
खुद को न जलाया करो.!
ध्रूवों में विभाजित है आज
हर दूसरा शख्स..
ये जान लो
विकार तुममें नहीं,
तुम्हे महसूस कराने वालों में है..!

अल्पना नागर
#bipolar disorder #itisokay









No comments:

Post a Comment