धूप पुकार रही है
रात के बियाबान में
अक्सर ढूँढती हूँ वो आसमान
जो छूना चाहती थी कभी
पिता के कांधे पर बैठ,
कहानियों की घुड़सवारी कर
घूम आती थी
सारा संसार
पिता की आँखों से..!
वैसे ही जैसे
शिशिर में
आती है धूप
सूरज के कांधे पर बैठ,
हौले हौले
फिराती है
नरम शरारती उंगलियां
घने मेघों के बीच..!
पेड़ की फुनगियों पर
फुदकती
गिलहरी जैसी
एक टुकड़ा धूप कोई..!
कुछ अलग ही रंगत थी
उस आसमान की..
चटख रंगों से भरा,
टिमटिमाते
चाँद तारों से भरा
हीरों सजा थाल कोई..!
आसमान तो आज भी वही है,
मगर आह !
अब छूने का मन नहीं..!
शिशिर की
मुलायम धूप
बीत चुकी है..!
जेठ की तपती
दुपहरी ओढ़
खड़ी हूँ आज
ठीक उसी जगह पर,
महसूस कर रही हूँ कांधे पर
नन्हीं उंगलियों की छुअन
देख रही हूँ
उसी की आँखों में
शिशिर की धूप पुकार रही है...!
अल्पना नागर
#father's day
रात के बियाबान में
अक्सर ढूँढती हूँ वो आसमान
जो छूना चाहती थी कभी
पिता के कांधे पर बैठ,
कहानियों की घुड़सवारी कर
घूम आती थी
सारा संसार
पिता की आँखों से..!
वैसे ही जैसे
शिशिर में
आती है धूप
सूरज के कांधे पर बैठ,
हौले हौले
फिराती है
नरम शरारती उंगलियां
घने मेघों के बीच..!
पेड़ की फुनगियों पर
फुदकती
गिलहरी जैसी
एक टुकड़ा धूप कोई..!
कुछ अलग ही रंगत थी
उस आसमान की..
चटख रंगों से भरा,
टिमटिमाते
चाँद तारों से भरा
हीरों सजा थाल कोई..!
आसमान तो आज भी वही है,
मगर आह !
अब छूने का मन नहीं..!
शिशिर की
मुलायम धूप
बीत चुकी है..!
जेठ की तपती
दुपहरी ओढ़
खड़ी हूँ आज
ठीक उसी जगह पर,
महसूस कर रही हूँ कांधे पर
नन्हीं उंगलियों की छुअन
देख रही हूँ
उसी की आँखों में
शिशिर की धूप पुकार रही है...!
अल्पना नागर
#father's day
No comments:
Post a Comment