Tuesday, 16 June 2020

ब्लैक होल

ब्लैक होल

कई तरह के होते हैं
'ब्लैक होल'..
एक वो जो
अनंत प्रकाश वर्ष दूर
ब्रह्मांड में आसीन हैं
किसी वयोवृद्ध सितारे के
'सुपरनोवा' अवशेषों पर बने
कृष्ण विवर..
जिनकी उपस्थिति मात्र
निगल जाती है
संपूर्ण प्रकाश..!
एक ऐसा गर्त
जो लील जाता है
समय की रफ़्तार तक..!
जिसमें समाहित होकर
प्रकाश भी भूल जाता है
अपना अस्तित्व
और रंग जाता है उसी के रंग में..!
मौजूद हैं
हमारे इर्द गिर्द भी
अनेकों
बहुआयामी
अदृश्य गर्त..
मन की कंदराओं में छुपे
किसी गोपनीय राज से गहरे
कृष्ण विवर..!
रात की स्याही में डूबे
स्याह अपराधों से भी गहरे
काले गड्ढे..
इतने गहरे कि
अँधेरा भी गश खाके गिर जाए..!
चुपचाप दबे पांव
घात लगाए बैठे
किसी मेंढक की तरह
वो तलाश में रहते हैं
कि दबोच सकें
कोई नवोदित विचार,
लील सकें
कोई प्रदीप्त सितारा,
मिटा दें नामोनिशान
किसी घटना का..
घटना जो कभी ले सकती थी
किसी क्रांति का रूप,
लेकिन अब चढ़ चुकी है
इन 'ब्लैक होल' की भेंट..!
बेहद मुश्किल है
इन्हें पहचान पाना,
न दिन के प्रकाश में
न रात के अंधकार में..
प्रकाश ये टिकने नहीं देते,
और अँधेरा...?
अँधेरा इनका सुरक्षा कवच है..!
बेहतर है
बचाया जाए
अस्तित्व को
किसी भी
'गुरुत्व' आकर्षण से !
ताकि
जाने न पाए
गर्त में
फिर कोई
प्रदीप्त सितारा...!

अल्पना नागर
#RIPSUSHANT#

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3736
    में दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. मौजूद हैं
    हमारे इर्द गिर्द भी
    अनेकों
    बहुआयामी
    अदृश्य गर्त..
    बढ़िया रचना

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