कागज़ कलम और स्याही
💐💐💐
देखा है कभी ! !
मामूली सी दिखने वाली
कागज कलम और स्याही की ताकत!
जब लग जाती है स्याही
लोकतंत्र की ऊँगली पर
मायने बदल जाते हैं
सत्ता के..!
कई बार यूँ भी होता है
लोकतंत्र की ऊँगली से छिटक
स्याही जा पहुँचती है
किसी उन्मादी के
प्रभामण्डल तक..
आक्रोश के छींटे बिखरे होते हैं
बगुला भगत से भी सफ़ेद झक्क
किसी खादी वस्त्र पर..
और यकायक बदल जाते हैं
मायने लोकतंत्र के रंगों के...!
इन दिनों
देश काल और परिस्थितिवश
रुग्ण हो चुकी है कलम..
स्याही में पानी का समावेश ज्यादा है !
देखा गया है कि
कागज पर भी
हो जाते हैं अक्षर
पानी पानी..!
फल फूल रही है दिनों दिन
अमर बेल सी
रीढ़ विहीन
छद्म निरपेक्षता,
दबाव इतना कि
झुक गई है कलम की रीढ़
लेकिन टूटी नहीं..!
आज भी इतना तो दम है कि
खौफ खाते हैं इनसे
खूँखार नरभक्षी भी..!
कभी उड़ा देते हैं
कागज और कलम
बम धमाके से तो
कभी ठोक देते हैं
गोलियां मस्तिष्क के बीचों बीच,
कमाल है मगर
फिर भी
चीथड़े हुए
उन्हीं पन्नों की राख से
जन्म लेती हैं
बार बार
'फिनिक्स' की तरह
जाने कितनी
मलाला,गालिजिया और
गौरी लंकेश..!!
अल्पना नागर
#fetterfreewriting
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देखा है कभी ! !
मामूली सी दिखने वाली
कागज कलम और स्याही की ताकत!
जब लग जाती है स्याही
लोकतंत्र की ऊँगली पर
मायने बदल जाते हैं
सत्ता के..!
कई बार यूँ भी होता है
लोकतंत्र की ऊँगली से छिटक
स्याही जा पहुँचती है
किसी उन्मादी के
प्रभामण्डल तक..
आक्रोश के छींटे बिखरे होते हैं
बगुला भगत से भी सफ़ेद झक्क
किसी खादी वस्त्र पर..
और यकायक बदल जाते हैं
मायने लोकतंत्र के रंगों के...!
इन दिनों
देश काल और परिस्थितिवश
रुग्ण हो चुकी है कलम..
स्याही में पानी का समावेश ज्यादा है !
देखा गया है कि
कागज पर भी
हो जाते हैं अक्षर
पानी पानी..!
फल फूल रही है दिनों दिन
अमर बेल सी
रीढ़ विहीन
छद्म निरपेक्षता,
दबाव इतना कि
झुक गई है कलम की रीढ़
लेकिन टूटी नहीं..!
आज भी इतना तो दम है कि
खौफ खाते हैं इनसे
खूँखार नरभक्षी भी..!
कभी उड़ा देते हैं
कागज और कलम
बम धमाके से तो
कभी ठोक देते हैं
गोलियां मस्तिष्क के बीचों बीच,
कमाल है मगर
फिर भी
चीथड़े हुए
उन्हीं पन्नों की राख से
जन्म लेती हैं
बार बार
'फिनिक्स' की तरह
जाने कितनी
मलाला,गालिजिया और
गौरी लंकेश..!!
अल्पना नागर
#fetterfreewriting
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