कहानी
अधेड़ उम्र के सदानंद शर्मा जी हमेशा की तरह आज भी मंद क़दमों से छड़ी के सहारे पार्क की दिशा में बढ़ रहे थे।उनके पीछे कुछ नन्हें शैतानों की टोली लगी हुई थी।सदानंद जी मन ही मन बड़बड़ाते हुए बीच बीच में बच्चों को छड़ी दिखाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
ये रोज का दृश्य था।बच्चे भी कहाँ आसानी से मानने वाले थे,उन्हें न छड़ी का भय और न ही सदानंद जी की गुस्सैल आँखों का।वो बस उन्हें चिढ़ाते हुए पूर्ण संतुष्टि पाकर रफ्फूचक्कर हो जाते।इस दौरान सदानंद जी की भी सुबह सुबह अच्छी खासी कसरत हो जाती थी।
सदानंद शर्मा जी एक रिटायर्ड अध्यापक थे।ऊँचा कद, रोबदार मूंछे,और चांदी से दमकते बाल और उनके बीचोंबीच शान से बलखाती,हवा में लहराती सवर्ण व्यवस्था की प्रतिनिधि शिखा !हाथ में सहारे के लिए एक छड़ी,प्रेस किया हुआ सफ़ेद कुर्ता शर्मा जी के व्यक्तित्व को एक अलग ही पहचान देते।उम्र के सड़सठ वसंत देख चुके शर्मा जी नें संपूर्ण जीवन कड़े नियमों का पालन कर गुजारा।वे आज की जीवन शैली और नई पीढ़ी के तौर तरीकों से नाखुश थे।उन्हें लगता था कि सांस्कृतिक धरोहर नई पीढ़ी के हाथों में आकर तहस नहस होती जा रही है।वर्ण व्यवस्था लुप्त होती जा रही है।इस तरह तो समाज गर्त में चला जायेगा,पुरखों की बनाई चतुर्वर्णीय व्यवस्था को आज की युवा पीढ़ी ने गड्डमड्ड कर दिया।
संस्कृति के रक्षक शर्मा जी की एक और विशेषता थी।उनमें एक अजीब सी सनक थी वर्ण व्यवस्था को लेकर,अध्यापक होकर भी शर्मा जी नें ताउम्र छुआछूत की परंपरा को कायम रखा।वो जाति से बाह्मण थे अतः अन्य जातियों से एक दूरी बनाकर रहते थे।सजातीय बंधुओं के साथ उनका मेलजोल अच्छा था,लेकिन शुद्र वर्ण के साथ उनका व्यवहार देखने लायक था।निम्न जाति का कोई व्यक्ति गलती से उनके संपर्क में आ जाता था तो वे सर्वप्रथम स्वयं को गंगाजल के छींटे से शुद्ध करते,घर भर में जल का छिड़काव करते।उनके सूती थैले में गंगाजल की एक शीशी हमेशा साथ रहती थी।मोहल्ले के सभी लोग शर्मा जी की इस विचित्र आदत से परिचित थे इसलिए वो खासतौर पर इस बात का ध्यान रखते थे।किसी भी सामजिक आयोजन में उनके लिए अलग से व्यवस्था की जाती।
आज के समय में इस तरह की बातों पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन दूर दराज के गाँवों और कस्बों में आज भी इस तरह के सामाजिक भेद अभेद देखने को मिल जायेंगे।हालांकि शिक्षा की पकड़ मजबूत होने के साथ ही जातिगत बंधन ढीले हुए हैं,लोगों में चेतना जागृत हुई है लेकिन आज भी यदा कदा सदानंद शर्मा जैसे सवर्ण लोग देखने को मिल जायेंगे।सदानंद जी के इस रवैये के पीछे उनका पारिवारिक माहौल रहा है,उनकी माँ बहुत सख्त और जातिगत भेदभाव वाली महिला थी।उन्होंने अपने तीन पुत्रों को सिर्फ इसलिए विद्यालय नहीं भेजा क्योंकि वहाँ अन्य जातियों के लोग भी आते थे,उनके संपर्क में आकर धर्म भ्रष्ट करने का खतरा वो कतई नहीं ले सकती थी।सदानंद जी का भाग्य अच्छा था,पिताजी के समर्थन से किसी तरह शिक्षा पूर्ण की और शिक्षक बन गए।लेकिन माँ के दिए संस्कार उम्रभर उनके संगी बने रहे।वो चाहकर भी स्वयं को उनसे मुक्त नहीं कर पाए।
सदानंद शर्मा जी के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा एक पुत्र और एक पुत्री थे।पत्नी धार्मिक विचारों की महिला थी,लेकिन सुलझी हुई,जातिगत बंधनों से दूर विनम्र महिला थी।पुत्री का विवाह कर दिया था,वो एक महानगर में सुखी दाम्पत्य जीवन का निर्वाह कर रही थी।पुत्र नें इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की थी,आगे की पढाई के लिए विदेश जाने का इच्छुक था।शर्मा जी के लाख मना के बावजूद पत्नी के आग्रह पर आखिरकार पुत्र को विदेश जाने का मौका मिला।अब घर में सिर्फ पति पत्नी रह गए।शर्मा जी रिटायर होने के बाद का खाली समय कभी पार्क में जाकर तो कभी भगवान की भक्ति में व्यतीत हो रहा था।कभी कभार किसी मौके पर अपनी पुत्री के यहाँ भी मिलने चले जाते थे। वहाँ के 'सोसायटी' वाले तौर तरीके उन्हें हजम नहीं होते थे।
ऐसे ही एक मौके पर बेटी दामाद की शादी की वर्षगाँठ पर शर्मा जी मिलने गए।पहुंचे तो दरवाजे पर ताला लगा था।बेटी को फोन किया।बेटी और दामाद दोनों पास ही एक मार्किट में जरुरी सामान लेने गए हुए थे।बेटी नें पिता को आश्वस्त किया कि वो बहुत शीघ्र ही लौट आएंगे,थोड़ी देर नीचे गेस्ट रूम में इंतज़ार करें।शर्मा जी दरवाजे केे सामने खड़े होकर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में सोच ही रहे थे कि तभी पड़ोस में रहने वाली बेटी की हमउम्र महिला वहाँ से गुजरी।उसने बहुत ही विनम्रता के साथ अपना परिचय दिया और अपने घर आने का आग्रह किया।शर्मा जी के दिमाग में जातिगत घंटियां बज तो रही थी लेकिन महिला की विनम्रता से प्रभावित होकर धीमी पड़ गई थी।मिसेज शर्मा नें भी तुरंत हरी झंडी दिखा दी।अंदर आते ही पड़ोसी महिला नें बहुत ही आत्मीयता व गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया।उन्हें जलपान कराया।पड़ोसी महिला का घर बहुत ही साफ़ सुथरा और करीने से साजसज्जा युक्त था।महिला स्वयं एक ऊँचे ओहदे पर कार्यरत थी।बच्चे भी बहुत शालीनता के साथ शर्मा दंपत्ति के साथ पेश आ रहे थे।एक घंटा कब व्यतीत हुआ कुछ पता नहीं चल पाया।इतने में ही बेटी का फोन आया और इत्तला दी कि वो घर आ चुके हैं,वो भी अब ऊपर आ जाएं।
शर्मा दंपत्ति नें पड़ोसी परिवार का हृदय से शुक्रिया अदा किया और विदा ली।लंबे अरसे बाद बेटी से मिलने की बेताबी भी थी।
"सॉरी पापा,हमें लगा हम फटाफट जाकर आ जायेंगे,सजावट का सामान और केक आदि लेना था,पर रास्ते के ट्रैफिक नें सब गड़बड़ कर दी।"बेटी नें रुआँसे स्वर में कहा।
"आपको नाहक ही परेशानी हुई।मैं भी माफ़ी चाहता हूँ पापा जी।" दामाद नें कहा।
"अरे,कोई बात नहीं बेटा,हमें कोई परेशानी नहीं हुई।वो क्या नाम है तुम्हारी पड़ोसी मित्र का..सुधा..हाँ यही नाम बताया था..बहुत आवाभगत की उसने,बड़ी ही प्यारी है।हमें तो बहुत ख़ुशी हुई बेटा कि तुम शहर में रहकर भी इतने अच्छे माहौल में रह रही हो।जरूर ब्राह्मण ही होगी..क्यूँ!सही कह रहा हूँ न रश्मि?"शर्मा जी नें एक सांस में ही सारी बात कह डाली।
"पापा बैठो न आप आराम से।मुझे भी तो कुछ करने का मौका दीजिये।"
"तुम बस पास आकर बैठो,आराम से बातें करेंगे,बड़े दिनों बाद मिले हैं बेटा..कुछ मत करो।हमने जलपान ले लिया था बहुत अच्छे से।"मिसेज शर्मा नें कहा।
"रश्मि तुमने बताया नहीं,तुम्हारे पड़ोसी जिनसे हम अभी मिलकर आये हैं, वो ब्राह्मण ही हैं न!"शर्मा जी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"पापा...मैं सच कहूं तो यहाँ कोई किसी की जाति नहीं पूछता।सभी पढ़े लिखे समझदार और सभ्य लोग हैं।एक ही ऑफिस में काम करते हैं,अच्छे पद पर हैं..क्या इतना काफी नहीं है!"
"बेटा कैसी बात कर रही हो!लगता है शहर का रंग तुमपर भी चढ़ता जा रहा है..तुम हमारी संस्कृति का अपमान कर रही हो।"शर्मा जी नें नाराजगी दिखाते हुए कहा।
"पापा, सुनिये..हम लोग एक सोसायटी में रहते हैं।सभी उत्सव,सभी त्यौहार मिलकर मनाते हैं।जमाना बदल चुका है,अब वो पुराने जातिगत बंधन नहीं रहे पापा।सभी बहुत अच्छे से,साफ़ सुथरी जीवन शैली के साथ जीते हैं।जाति पूछकर अपमान समझा जाता है।आप इस बात को समझिये।आपके दोनों नाती सोसायटी के सभी बच्चों के साथ खेलते हैं,इसमें कोई बुराई नहीं है।"
"रश्मि तुम्हें हवा लग गई है यहाँ की।वही हुआ जिसका मुझे डर था"
"नहीं पापा, ऐसा नहीं है।अच्छा एक बात बताइये..आपको क्यूँ लगा कि मेरी पड़ोसी दोस्त जाति से ब्राह्मण ही है!"
"भई, इसमें लगने वाली क्या बात है,इतनी शुद्धता और स्वच्छता से ब्राह्मण ही रह सकते हैं,उसके बात करने का ढंग..उसके बच्चों के संस्कार..वाह..ये सब सवर्णों की ही विशेषता है बेटा।मेरा अब तक का तजुर्बा यही कहता है कि वो हमारी ही जाति से है।"शर्मा जी नें पूरे आत्मविश्वास के साथ दावा किया।
"और पापा अगर मैं कहूँ कि आपके तजुर्बे नें इस बार आपको धोखा दिया है तो!"
"क्या बोले जा रही हो..!!"
"हाँ,ये सच है,जिनके यहाँ आज आप जलपान ग्रहण करके आये हैं वो लोग जाति से शुद्र हैं।उनके पूर्वज स्वीपर का काम करते थे।"रश्मि नें झिझकते हुए बात ख़त्म की।
एक पल के लिए चुप्पी छा गई।शर्मा जी अवाक थे,उनका पीला पड़ चुका मुँह देखने लायक था।
"हे मेरे राम!!!! ये कैसा अनर्थ हो गया मुझसे।अछूत के घर जलपान तक कर आये!!..छी छी..
नहीं ये सब झूठ है,कोरी बकवास है..मेरे जीवन भर के सारे सत्कर्म एक क्षण में कैसे नष्ट हो सकते हैं!ये मुझसे क्या हो गया!!"शर्मा जी क्रोध की अग्नि में जलकर कुछ न कुछ बड़बड़ाये जा रहे थे।
"पापा ..आप शांत हो जाइये।कुछ नहीं हुआ है,आपके सत्कर्म हमेशा आपके साथ रहेंगे,और वैसे भी आज का समाज कर्म प्रधान है,कर्म अगर श्रेष्ट हैं तो जाति से अछूत भी ब्राह्मण,वणिक या क्षत्रिय हो सकता है।"रश्मि लगातार अपने उद्विग्न पिता को समझाने का प्रयास कर रही थी।
"रश्मि!!!..."शर्मा जी के गुस्से से घर की दीवारें गूंजने लगी।"तो क्या तू मुझे वर्ण व्यवस्था का पाठ पढ़ाएगी! पीढ़ियों से जो चला आ रहा है,उसे अपने चार दिन के किताबी ज्ञान से चुनौती देगी!!"
"पापा, मुझे माफ़ कर दीजिए।मेरा इरादा आपको आहत करना बिल्कुल नहीं था।सब मेरी ही गलती है,आज न तो मैं हड़बड़ी में गलत समय पर बाजार जाती और न ही आपको मेरी दोस्त के यहाँ रुकना पड़ता।आप मेरे इस अक्षम्य अपराध के लिए जो भी सजा देंगे मुझे मंजूर होगा।पर आप प्लीज शांत हो जाइये,आपको पता है आप रक्तचाप के मरीज हैं।माँ, समझाइये न पापा को!"रश्मि रुआँसी हो उठी।
सदानंद जी बेटी की बात सुन थोड़ा नरम पड़े।लेकिन अभी भी उन्हें उनके साथ घटित 'अनर्थ' पर यकीन नहीं हो रहा था।वो बार बार किसी विक्षिप्त की भाँति खुद पर गंगाजल के छींटे दिए जा रहे थे।
"अजी,क्यों गरम हुए जा रहे हैं! ये तो सोचिये आज आपकी बेटी की वैवाहिकी वर्षगाँठ है।उसे आशीर्वाद दीजिये और जो हुआ उसे भूल जाइए।देखो तो कैसे बिचारी का मुँह लटक गया है!"मिसेज शर्मा माहौल को सुधारने का प्रयास कर रही थी।
"हम्म..भागवान अब तुम भी इनकी पार्टी में शामिल हो गई हो..!अच्छी बात है।अब मैं अकेला ही गंगा जी जाकर अपने सारे पाप धोकर आऊँगा।"शर्मा जी अब ठंडे पड़ चुके थे।
"अच्छा जी,ठीक है..जैसी आपकी मर्जी।हम तो कुछ नहीं बोलेंगे आगे से..।
तभी शर्मा जी के मोबाइल की घंटी बजी।स्क्रीन पर बेटे केशव की कॉल आ रही थी।केशव महीना भर पहले ही विदेश से लौटा था।लेकिन तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए बहन के घर आ नहीं पाया।शर्मा दंपत्ति बेटे को छोड़कर आना नहीं चाहते थे लेकिन केशव के काफी आग्रह करने पर आ गए।अचानक उसका कॉल देखकर एक बारगी दोनों के मन में आशंका हुई।
"पापा, कैसे हैं आप सब वहाँ, दीदी जीजाजी सब ठीक हैं न ?मुझे कहते हुए बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा,ख़ुशी के मौके पर बेकार ही आप सब को चिंता नहीं देना चाहता था लेकिन..."।कहते कहते बीच में ही केशव को खाँसी का दौरा आया।
"केशव बेटा.. क्या हुआ तुझे..सब ठीक तो है न?ये खाँसी इतनी तेज कैसे?"शर्मा दंपत्ति के सम्मिलित स्वर में चिंता झलक रही थी।
"कुछ नहीं पापा, मुझे साँस लेने में तकलीफ हो रही है।मेरे ख़याल से अब मुझे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा।आपको बताना जरूरी लगा इसलिए फोन किया,आप व्यर्थ चिंता न करें..आराम से आ जाइये..मुझे लगता है मामूली सर्दी बुखार है,दवाई लूंगा ठीक हो जाऊंगा।"
"बेटा, कहीं ये वही तो नहीं..जो आजकल फ़ैल रहा है हर जगह..."?मिसेज शर्मा नें चिंतित होकर कहा।
"क्यूँ व्यर्थ धड़कनें बढ़ा रही हो..शुभ शुभ बोलो..उस बीमारी का तो नाम ही बुरा..सर्दी हो गई होगी।तुम्हारे जादुई काढ़े से देखना सब छूमंतर हो जायेगा।"शर्मा जी नें बीच में टोकते हुए कहा।
"हाँ ,माँ..पापा सही कह रहे हैं,केशव बिल्कुल ठीक है,डॉक्टर के पास जा रहा है न..ठीक हो जायेगा।"बेटी नें आश्वस्त किया।
"सही कह रही हो,पर माँ का मन है न..बुरी आशंकाएं पहले आती हैं,पता नहीं क्यूँ बेटा, बहुत जी घबरा रहा है।मुझे लगता है हमें जल्द ही वहाँ होना चाहिए, इस वक्त केशव को जरूरत है हमारी।"
"ओह माँ !चली जाना बस आज आज रुक जाओ।मुझे भी बहुत फ़िक्र है केशव की, पर इस वक्त कहाँ जायेंगे आप दोनों और कब पहुंचेंगे?हमनें तो अभी तक दो घड़ी बैठ के बात भी नहीं करी।इतने समय बाद आये हैं आप दोनों।"
"ठीक है बेटा,पर कल सुबह पांच बजे ही हम निकल लेंगे ताकि जल्द से जल्द पहुँच सकें।"
शर्मा जी नें घोषणा की।
सुबह पौं फटते ही शर्मा दंपत्ति वहाँ से चले गए।
घर पहुँचने पर दरवाजा खोलते ही केशव का मास्क लगा चेहरा देखकर घबरा गए।केशव थोड़ा पीछे हटकर खड़ा था।
"बेटा ये सब क्या है,हटाओ इसे! क्या हुआ तुम्हें?"
"माँ, आप अंदर बैठो आराम से।दरवाजे पर ही सब पूछ डालोगी क्या!"
"डॉक्टर को दिखाया था न कल।लक्षण देखकर डॉक्टर नें ही कहा है मास्क लगाने को।एहतियात बरतने की सलाह दी है।उन्हें आशंका है कि कहीं...."
"कहीं...?कोरोना तो नहीं...!!"शर्मा जी नें बीच में ही पूछा।
"हाँ पापा, उन्हें ऐसा लग रहा है।"
"ये डॉक्टर लोग तो कुछ भी बोलते हैं,कुछ नहीं हुआ तुझे,मस्त रह।तेरी माँ अभी काढ़ा बना देगी।"
"पापा, टेस्ट हुआ है...रिपोर्ट कल तक आ जायेगी।"केशव नें रुंआसा होकर कहा।
टेस्ट का नाम सुनते ही मिसेज शर्मा का चेहरा पीला पड़ गया।अजीब अजीब से खयाल उन्हें आ रहे थे।सारी रात बेचैनी भरी करवटों में बिताई।अगली सुबह की प्रतीक्षा थी।घड़ी भी मानो बहुत इत्मीनान के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।समय काटने को दौड़ रहा था।
क्या होगा।कहीं हमारे केशव को भी सचमुच? नहीं नहीं..ऐसा नहीं हो सकता।ईश्वर इतना कठोर नहीं हो सकता।
सुबह हुई।मिसेज शर्मा घर के बने मंदिर में बैठी रही।मन में बेचैनी थी।वो लगातार किसी अनिष्ट को टालने का मंत्र जाप करती रही।
केशव टेस्ट की रिपोर्ट लेने गया।काँपते हाथों से रिपोर्ट देखी।आँखों पर यकीन नहीं हुआ।चारों ओर अँधेरा छाने लगा।रिपोर्ट पॉजिटिव थी।
केशव को वहीं रोक लिया गया।
जंगल में आग की तरह ये खबर हर जगह फ़ैल गई।शर्मा दंपत्ति की हालात तो मानो.. काटो तो खून नहीं।
कुछ ही देर में सायरन बजाती एम्बुलेंस आयी। सिर से पैर तक पूरी तरह ढके स्वास्थ्य कर्मियों नें शर्मा दंपत्ति को एम्बुलेंस में बिठा लिया।सारा मोहल्ला आँखें फाड़ फाड़ इस नज़ारे को देख रहा था।ज्यादातर लोग वीडियो बनाने में लगे हुए थे।
शर्मा दंपत्ति का भी टेस्ट किया गया।दुर्भाग्य से दोनों पॉजिटिव निकले।शर्मा परिवार के तीनों सदस्य क्वारनटीन किये गए।साथ ही उन लोगों को भी छानबीन कर क्वारनटीन किया गया जो बीते कुछ दिनों से इनके संपर्क में आये।शर्मा जी की बेटी और दामाद साथ ही उन पड़ोसियों को भी नियमानुसार होम क्वारंटीन किया गया।
केशव चूँकि स्वस्थ नौजवान था इसलिए ठीक होने में उसे ज्यादा समय नहीं लगा।लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर शर्मा दंपत्ति को बहुत सी बीमारियों नें घेरा हुआ था।स्वास्थ्य कर्मियों के अथक प्रयत्नों से आखिरकार एक महीने में दोनों स्वस्थ घोषित किये गए।
शर्मा परिवार घर लौट आया।लेकिन अब लोगों का उनको देखने का नजरिया बदल चुका था।मोहल्ले के सभी लोग उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे।उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाने लगा।उनके निकट पड़ोसियों नें उनसे पूर्णतः संपर्क तोड़ लिया।दूधवाले से लेकर अखबार वाले तक को उन्हें दूध और अखबार देने से मना किया।शर्मा परिवार के लिए ये बहुत विकट घड़ी थी।कोई भी उनसे न बात करता और न ही उनसे कोई मेल मिलाप रखता यद्यपि वो पूरी तरह उस बीमारी से उबर चुके थे फिर भी समाज तो समाज है! बहुत सी चीजें अंदर तक पैठ जमा लेती हैं फिर उन्हें निकालना या दूर करना बेहद दुष्कर कार्य होता है।बिल्कुल उस वर्ण व्यवस्था की तरह जिसका अक्षरशः पालन शर्मा जी करते आये हैं।ये वही समाज था जिसके साथ शर्मा जी नें एक उम्र छूत अछूत का सामाजिक खेल खेला।और अब वही समाज उनसे पूरी तरह अछूत की भाँति व्यवहार कर रहा था।ईश्वर के खेल सबसे निराले हैं।जो भी हम समाज को देते हैं वो एक दिन लौटकर हमारे पास जरूर आता है फिर चाहे वो सम्मान हो,प्रेम हो या तिरस्कार !
समाज से एक तरह बहिष्कृत शर्मा जी को जीवन भर का लेखा जोखा स्मरण हो आया।उन्हें पहली बार अपने किये हुए आचरण पर शर्मिंदगी महसूस हुई।पर अफ़सोस प्रकृति को ये सबक सिखाने के लिए महामारी का सहारा लेना पड़ा।
अल्पना
अधेड़ उम्र के सदानंद शर्मा जी हमेशा की तरह आज भी मंद क़दमों से छड़ी के सहारे पार्क की दिशा में बढ़ रहे थे।उनके पीछे कुछ नन्हें शैतानों की टोली लगी हुई थी।सदानंद जी मन ही मन बड़बड़ाते हुए बीच बीच में बच्चों को छड़ी दिखाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
ये रोज का दृश्य था।बच्चे भी कहाँ आसानी से मानने वाले थे,उन्हें न छड़ी का भय और न ही सदानंद जी की गुस्सैल आँखों का।वो बस उन्हें चिढ़ाते हुए पूर्ण संतुष्टि पाकर रफ्फूचक्कर हो जाते।इस दौरान सदानंद जी की भी सुबह सुबह अच्छी खासी कसरत हो जाती थी।
सदानंद शर्मा जी एक रिटायर्ड अध्यापक थे।ऊँचा कद, रोबदार मूंछे,और चांदी से दमकते बाल और उनके बीचोंबीच शान से बलखाती,हवा में लहराती सवर्ण व्यवस्था की प्रतिनिधि शिखा !हाथ में सहारे के लिए एक छड़ी,प्रेस किया हुआ सफ़ेद कुर्ता शर्मा जी के व्यक्तित्व को एक अलग ही पहचान देते।उम्र के सड़सठ वसंत देख चुके शर्मा जी नें संपूर्ण जीवन कड़े नियमों का पालन कर गुजारा।वे आज की जीवन शैली और नई पीढ़ी के तौर तरीकों से नाखुश थे।उन्हें लगता था कि सांस्कृतिक धरोहर नई पीढ़ी के हाथों में आकर तहस नहस होती जा रही है।वर्ण व्यवस्था लुप्त होती जा रही है।इस तरह तो समाज गर्त में चला जायेगा,पुरखों की बनाई चतुर्वर्णीय व्यवस्था को आज की युवा पीढ़ी ने गड्डमड्ड कर दिया।
संस्कृति के रक्षक शर्मा जी की एक और विशेषता थी।उनमें एक अजीब सी सनक थी वर्ण व्यवस्था को लेकर,अध्यापक होकर भी शर्मा जी नें ताउम्र छुआछूत की परंपरा को कायम रखा।वो जाति से बाह्मण थे अतः अन्य जातियों से एक दूरी बनाकर रहते थे।सजातीय बंधुओं के साथ उनका मेलजोल अच्छा था,लेकिन शुद्र वर्ण के साथ उनका व्यवहार देखने लायक था।निम्न जाति का कोई व्यक्ति गलती से उनके संपर्क में आ जाता था तो वे सर्वप्रथम स्वयं को गंगाजल के छींटे से शुद्ध करते,घर भर में जल का छिड़काव करते।उनके सूती थैले में गंगाजल की एक शीशी हमेशा साथ रहती थी।मोहल्ले के सभी लोग शर्मा जी की इस विचित्र आदत से परिचित थे इसलिए वो खासतौर पर इस बात का ध्यान रखते थे।किसी भी सामजिक आयोजन में उनके लिए अलग से व्यवस्था की जाती।
आज के समय में इस तरह की बातों पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन दूर दराज के गाँवों और कस्बों में आज भी इस तरह के सामाजिक भेद अभेद देखने को मिल जायेंगे।हालांकि शिक्षा की पकड़ मजबूत होने के साथ ही जातिगत बंधन ढीले हुए हैं,लोगों में चेतना जागृत हुई है लेकिन आज भी यदा कदा सदानंद शर्मा जैसे सवर्ण लोग देखने को मिल जायेंगे।सदानंद जी के इस रवैये के पीछे उनका पारिवारिक माहौल रहा है,उनकी माँ बहुत सख्त और जातिगत भेदभाव वाली महिला थी।उन्होंने अपने तीन पुत्रों को सिर्फ इसलिए विद्यालय नहीं भेजा क्योंकि वहाँ अन्य जातियों के लोग भी आते थे,उनके संपर्क में आकर धर्म भ्रष्ट करने का खतरा वो कतई नहीं ले सकती थी।सदानंद जी का भाग्य अच्छा था,पिताजी के समर्थन से किसी तरह शिक्षा पूर्ण की और शिक्षक बन गए।लेकिन माँ के दिए संस्कार उम्रभर उनके संगी बने रहे।वो चाहकर भी स्वयं को उनसे मुक्त नहीं कर पाए।
सदानंद शर्मा जी के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा एक पुत्र और एक पुत्री थे।पत्नी धार्मिक विचारों की महिला थी,लेकिन सुलझी हुई,जातिगत बंधनों से दूर विनम्र महिला थी।पुत्री का विवाह कर दिया था,वो एक महानगर में सुखी दाम्पत्य जीवन का निर्वाह कर रही थी।पुत्र नें इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की थी,आगे की पढाई के लिए विदेश जाने का इच्छुक था।शर्मा जी के लाख मना के बावजूद पत्नी के आग्रह पर आखिरकार पुत्र को विदेश जाने का मौका मिला।अब घर में सिर्फ पति पत्नी रह गए।शर्मा जी रिटायर होने के बाद का खाली समय कभी पार्क में जाकर तो कभी भगवान की भक्ति में व्यतीत हो रहा था।कभी कभार किसी मौके पर अपनी पुत्री के यहाँ भी मिलने चले जाते थे। वहाँ के 'सोसायटी' वाले तौर तरीके उन्हें हजम नहीं होते थे।
ऐसे ही एक मौके पर बेटी दामाद की शादी की वर्षगाँठ पर शर्मा जी मिलने गए।पहुंचे तो दरवाजे पर ताला लगा था।बेटी को फोन किया।बेटी और दामाद दोनों पास ही एक मार्किट में जरुरी सामान लेने गए हुए थे।बेटी नें पिता को आश्वस्त किया कि वो बहुत शीघ्र ही लौट आएंगे,थोड़ी देर नीचे गेस्ट रूम में इंतज़ार करें।शर्मा जी दरवाजे केे सामने खड़े होकर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में सोच ही रहे थे कि तभी पड़ोस में रहने वाली बेटी की हमउम्र महिला वहाँ से गुजरी।उसने बहुत ही विनम्रता के साथ अपना परिचय दिया और अपने घर आने का आग्रह किया।शर्मा जी के दिमाग में जातिगत घंटियां बज तो रही थी लेकिन महिला की विनम्रता से प्रभावित होकर धीमी पड़ गई थी।मिसेज शर्मा नें भी तुरंत हरी झंडी दिखा दी।अंदर आते ही पड़ोसी महिला नें बहुत ही आत्मीयता व गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया।उन्हें जलपान कराया।पड़ोसी महिला का घर बहुत ही साफ़ सुथरा और करीने से साजसज्जा युक्त था।महिला स्वयं एक ऊँचे ओहदे पर कार्यरत थी।बच्चे भी बहुत शालीनता के साथ शर्मा दंपत्ति के साथ पेश आ रहे थे।एक घंटा कब व्यतीत हुआ कुछ पता नहीं चल पाया।इतने में ही बेटी का फोन आया और इत्तला दी कि वो घर आ चुके हैं,वो भी अब ऊपर आ जाएं।
शर्मा दंपत्ति नें पड़ोसी परिवार का हृदय से शुक्रिया अदा किया और विदा ली।लंबे अरसे बाद बेटी से मिलने की बेताबी भी थी।
"सॉरी पापा,हमें लगा हम फटाफट जाकर आ जायेंगे,सजावट का सामान और केक आदि लेना था,पर रास्ते के ट्रैफिक नें सब गड़बड़ कर दी।"बेटी नें रुआँसे स्वर में कहा।
"आपको नाहक ही परेशानी हुई।मैं भी माफ़ी चाहता हूँ पापा जी।" दामाद नें कहा।
"अरे,कोई बात नहीं बेटा,हमें कोई परेशानी नहीं हुई।वो क्या नाम है तुम्हारी पड़ोसी मित्र का..सुधा..हाँ यही नाम बताया था..बहुत आवाभगत की उसने,बड़ी ही प्यारी है।हमें तो बहुत ख़ुशी हुई बेटा कि तुम शहर में रहकर भी इतने अच्छे माहौल में रह रही हो।जरूर ब्राह्मण ही होगी..क्यूँ!सही कह रहा हूँ न रश्मि?"शर्मा जी नें एक सांस में ही सारी बात कह डाली।
"पापा बैठो न आप आराम से।मुझे भी तो कुछ करने का मौका दीजिये।"
"तुम बस पास आकर बैठो,आराम से बातें करेंगे,बड़े दिनों बाद मिले हैं बेटा..कुछ मत करो।हमने जलपान ले लिया था बहुत अच्छे से।"मिसेज शर्मा नें कहा।
"रश्मि तुमने बताया नहीं,तुम्हारे पड़ोसी जिनसे हम अभी मिलकर आये हैं, वो ब्राह्मण ही हैं न!"शर्मा जी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"पापा...मैं सच कहूं तो यहाँ कोई किसी की जाति नहीं पूछता।सभी पढ़े लिखे समझदार और सभ्य लोग हैं।एक ही ऑफिस में काम करते हैं,अच्छे पद पर हैं..क्या इतना काफी नहीं है!"
"बेटा कैसी बात कर रही हो!लगता है शहर का रंग तुमपर भी चढ़ता जा रहा है..तुम हमारी संस्कृति का अपमान कर रही हो।"शर्मा जी नें नाराजगी दिखाते हुए कहा।
"पापा, सुनिये..हम लोग एक सोसायटी में रहते हैं।सभी उत्सव,सभी त्यौहार मिलकर मनाते हैं।जमाना बदल चुका है,अब वो पुराने जातिगत बंधन नहीं रहे पापा।सभी बहुत अच्छे से,साफ़ सुथरी जीवन शैली के साथ जीते हैं।जाति पूछकर अपमान समझा जाता है।आप इस बात को समझिये।आपके दोनों नाती सोसायटी के सभी बच्चों के साथ खेलते हैं,इसमें कोई बुराई नहीं है।"
"रश्मि तुम्हें हवा लग गई है यहाँ की।वही हुआ जिसका मुझे डर था"
"नहीं पापा, ऐसा नहीं है।अच्छा एक बात बताइये..आपको क्यूँ लगा कि मेरी पड़ोसी दोस्त जाति से ब्राह्मण ही है!"
"भई, इसमें लगने वाली क्या बात है,इतनी शुद्धता और स्वच्छता से ब्राह्मण ही रह सकते हैं,उसके बात करने का ढंग..उसके बच्चों के संस्कार..वाह..ये सब सवर्णों की ही विशेषता है बेटा।मेरा अब तक का तजुर्बा यही कहता है कि वो हमारी ही जाति से है।"शर्मा जी नें पूरे आत्मविश्वास के साथ दावा किया।
"और पापा अगर मैं कहूँ कि आपके तजुर्बे नें इस बार आपको धोखा दिया है तो!"
"क्या बोले जा रही हो..!!"
"हाँ,ये सच है,जिनके यहाँ आज आप जलपान ग्रहण करके आये हैं वो लोग जाति से शुद्र हैं।उनके पूर्वज स्वीपर का काम करते थे।"रश्मि नें झिझकते हुए बात ख़त्म की।
एक पल के लिए चुप्पी छा गई।शर्मा जी अवाक थे,उनका पीला पड़ चुका मुँह देखने लायक था।
"हे मेरे राम!!!! ये कैसा अनर्थ हो गया मुझसे।अछूत के घर जलपान तक कर आये!!..छी छी..
नहीं ये सब झूठ है,कोरी बकवास है..मेरे जीवन भर के सारे सत्कर्म एक क्षण में कैसे नष्ट हो सकते हैं!ये मुझसे क्या हो गया!!"शर्मा जी क्रोध की अग्नि में जलकर कुछ न कुछ बड़बड़ाये जा रहे थे।
"पापा ..आप शांत हो जाइये।कुछ नहीं हुआ है,आपके सत्कर्म हमेशा आपके साथ रहेंगे,और वैसे भी आज का समाज कर्म प्रधान है,कर्म अगर श्रेष्ट हैं तो जाति से अछूत भी ब्राह्मण,वणिक या क्षत्रिय हो सकता है।"रश्मि लगातार अपने उद्विग्न पिता को समझाने का प्रयास कर रही थी।
"रश्मि!!!..."शर्मा जी के गुस्से से घर की दीवारें गूंजने लगी।"तो क्या तू मुझे वर्ण व्यवस्था का पाठ पढ़ाएगी! पीढ़ियों से जो चला आ रहा है,उसे अपने चार दिन के किताबी ज्ञान से चुनौती देगी!!"
"पापा, मुझे माफ़ कर दीजिए।मेरा इरादा आपको आहत करना बिल्कुल नहीं था।सब मेरी ही गलती है,आज न तो मैं हड़बड़ी में गलत समय पर बाजार जाती और न ही आपको मेरी दोस्त के यहाँ रुकना पड़ता।आप मेरे इस अक्षम्य अपराध के लिए जो भी सजा देंगे मुझे मंजूर होगा।पर आप प्लीज शांत हो जाइये,आपको पता है आप रक्तचाप के मरीज हैं।माँ, समझाइये न पापा को!"रश्मि रुआँसी हो उठी।
सदानंद जी बेटी की बात सुन थोड़ा नरम पड़े।लेकिन अभी भी उन्हें उनके साथ घटित 'अनर्थ' पर यकीन नहीं हो रहा था।वो बार बार किसी विक्षिप्त की भाँति खुद पर गंगाजल के छींटे दिए जा रहे थे।
"अजी,क्यों गरम हुए जा रहे हैं! ये तो सोचिये आज आपकी बेटी की वैवाहिकी वर्षगाँठ है।उसे आशीर्वाद दीजिये और जो हुआ उसे भूल जाइए।देखो तो कैसे बिचारी का मुँह लटक गया है!"मिसेज शर्मा माहौल को सुधारने का प्रयास कर रही थी।
"हम्म..भागवान अब तुम भी इनकी पार्टी में शामिल हो गई हो..!अच्छी बात है।अब मैं अकेला ही गंगा जी जाकर अपने सारे पाप धोकर आऊँगा।"शर्मा जी अब ठंडे पड़ चुके थे।
"अच्छा जी,ठीक है..जैसी आपकी मर्जी।हम तो कुछ नहीं बोलेंगे आगे से..।
तभी शर्मा जी के मोबाइल की घंटी बजी।स्क्रीन पर बेटे केशव की कॉल आ रही थी।केशव महीना भर पहले ही विदेश से लौटा था।लेकिन तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए बहन के घर आ नहीं पाया।शर्मा दंपत्ति बेटे को छोड़कर आना नहीं चाहते थे लेकिन केशव के काफी आग्रह करने पर आ गए।अचानक उसका कॉल देखकर एक बारगी दोनों के मन में आशंका हुई।
"पापा, कैसे हैं आप सब वहाँ, दीदी जीजाजी सब ठीक हैं न ?मुझे कहते हुए बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा,ख़ुशी के मौके पर बेकार ही आप सब को चिंता नहीं देना चाहता था लेकिन..."।कहते कहते बीच में ही केशव को खाँसी का दौरा आया।
"केशव बेटा.. क्या हुआ तुझे..सब ठीक तो है न?ये खाँसी इतनी तेज कैसे?"शर्मा दंपत्ति के सम्मिलित स्वर में चिंता झलक रही थी।
"कुछ नहीं पापा, मुझे साँस लेने में तकलीफ हो रही है।मेरे ख़याल से अब मुझे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा।आपको बताना जरूरी लगा इसलिए फोन किया,आप व्यर्थ चिंता न करें..आराम से आ जाइये..मुझे लगता है मामूली सर्दी बुखार है,दवाई लूंगा ठीक हो जाऊंगा।"
"बेटा, कहीं ये वही तो नहीं..जो आजकल फ़ैल रहा है हर जगह..."?मिसेज शर्मा नें चिंतित होकर कहा।
"क्यूँ व्यर्थ धड़कनें बढ़ा रही हो..शुभ शुभ बोलो..उस बीमारी का तो नाम ही बुरा..सर्दी हो गई होगी।तुम्हारे जादुई काढ़े से देखना सब छूमंतर हो जायेगा।"शर्मा जी नें बीच में टोकते हुए कहा।
"हाँ ,माँ..पापा सही कह रहे हैं,केशव बिल्कुल ठीक है,डॉक्टर के पास जा रहा है न..ठीक हो जायेगा।"बेटी नें आश्वस्त किया।
"सही कह रही हो,पर माँ का मन है न..बुरी आशंकाएं पहले आती हैं,पता नहीं क्यूँ बेटा, बहुत जी घबरा रहा है।मुझे लगता है हमें जल्द ही वहाँ होना चाहिए, इस वक्त केशव को जरूरत है हमारी।"
"ओह माँ !चली जाना बस आज आज रुक जाओ।मुझे भी बहुत फ़िक्र है केशव की, पर इस वक्त कहाँ जायेंगे आप दोनों और कब पहुंचेंगे?हमनें तो अभी तक दो घड़ी बैठ के बात भी नहीं करी।इतने समय बाद आये हैं आप दोनों।"
"ठीक है बेटा,पर कल सुबह पांच बजे ही हम निकल लेंगे ताकि जल्द से जल्द पहुँच सकें।"
शर्मा जी नें घोषणा की।
सुबह पौं फटते ही शर्मा दंपत्ति वहाँ से चले गए।
घर पहुँचने पर दरवाजा खोलते ही केशव का मास्क लगा चेहरा देखकर घबरा गए।केशव थोड़ा पीछे हटकर खड़ा था।
"बेटा ये सब क्या है,हटाओ इसे! क्या हुआ तुम्हें?"
"माँ, आप अंदर बैठो आराम से।दरवाजे पर ही सब पूछ डालोगी क्या!"
"डॉक्टर को दिखाया था न कल।लक्षण देखकर डॉक्टर नें ही कहा है मास्क लगाने को।एहतियात बरतने की सलाह दी है।उन्हें आशंका है कि कहीं...."
"कहीं...?कोरोना तो नहीं...!!"शर्मा जी नें बीच में ही पूछा।
"हाँ पापा, उन्हें ऐसा लग रहा है।"
"ये डॉक्टर लोग तो कुछ भी बोलते हैं,कुछ नहीं हुआ तुझे,मस्त रह।तेरी माँ अभी काढ़ा बना देगी।"
"पापा, टेस्ट हुआ है...रिपोर्ट कल तक आ जायेगी।"केशव नें रुंआसा होकर कहा।
टेस्ट का नाम सुनते ही मिसेज शर्मा का चेहरा पीला पड़ गया।अजीब अजीब से खयाल उन्हें आ रहे थे।सारी रात बेचैनी भरी करवटों में बिताई।अगली सुबह की प्रतीक्षा थी।घड़ी भी मानो बहुत इत्मीनान के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।समय काटने को दौड़ रहा था।
क्या होगा।कहीं हमारे केशव को भी सचमुच? नहीं नहीं..ऐसा नहीं हो सकता।ईश्वर इतना कठोर नहीं हो सकता।
सुबह हुई।मिसेज शर्मा घर के बने मंदिर में बैठी रही।मन में बेचैनी थी।वो लगातार किसी अनिष्ट को टालने का मंत्र जाप करती रही।
केशव टेस्ट की रिपोर्ट लेने गया।काँपते हाथों से रिपोर्ट देखी।आँखों पर यकीन नहीं हुआ।चारों ओर अँधेरा छाने लगा।रिपोर्ट पॉजिटिव थी।
केशव को वहीं रोक लिया गया।
जंगल में आग की तरह ये खबर हर जगह फ़ैल गई।शर्मा दंपत्ति की हालात तो मानो.. काटो तो खून नहीं।
कुछ ही देर में सायरन बजाती एम्बुलेंस आयी। सिर से पैर तक पूरी तरह ढके स्वास्थ्य कर्मियों नें शर्मा दंपत्ति को एम्बुलेंस में बिठा लिया।सारा मोहल्ला आँखें फाड़ फाड़ इस नज़ारे को देख रहा था।ज्यादातर लोग वीडियो बनाने में लगे हुए थे।
शर्मा दंपत्ति का भी टेस्ट किया गया।दुर्भाग्य से दोनों पॉजिटिव निकले।शर्मा परिवार के तीनों सदस्य क्वारनटीन किये गए।साथ ही उन लोगों को भी छानबीन कर क्वारनटीन किया गया जो बीते कुछ दिनों से इनके संपर्क में आये।शर्मा जी की बेटी और दामाद साथ ही उन पड़ोसियों को भी नियमानुसार होम क्वारंटीन किया गया।
केशव चूँकि स्वस्थ नौजवान था इसलिए ठीक होने में उसे ज्यादा समय नहीं लगा।लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर शर्मा दंपत्ति को बहुत सी बीमारियों नें घेरा हुआ था।स्वास्थ्य कर्मियों के अथक प्रयत्नों से आखिरकार एक महीने में दोनों स्वस्थ घोषित किये गए।
शर्मा परिवार घर लौट आया।लेकिन अब लोगों का उनको देखने का नजरिया बदल चुका था।मोहल्ले के सभी लोग उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे।उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाने लगा।उनके निकट पड़ोसियों नें उनसे पूर्णतः संपर्क तोड़ लिया।दूधवाले से लेकर अखबार वाले तक को उन्हें दूध और अखबार देने से मना किया।शर्मा परिवार के लिए ये बहुत विकट घड़ी थी।कोई भी उनसे न बात करता और न ही उनसे कोई मेल मिलाप रखता यद्यपि वो पूरी तरह उस बीमारी से उबर चुके थे फिर भी समाज तो समाज है! बहुत सी चीजें अंदर तक पैठ जमा लेती हैं फिर उन्हें निकालना या दूर करना बेहद दुष्कर कार्य होता है।बिल्कुल उस वर्ण व्यवस्था की तरह जिसका अक्षरशः पालन शर्मा जी करते आये हैं।ये वही समाज था जिसके साथ शर्मा जी नें एक उम्र छूत अछूत का सामाजिक खेल खेला।और अब वही समाज उनसे पूरी तरह अछूत की भाँति व्यवहार कर रहा था।ईश्वर के खेल सबसे निराले हैं।जो भी हम समाज को देते हैं वो एक दिन लौटकर हमारे पास जरूर आता है फिर चाहे वो सम्मान हो,प्रेम हो या तिरस्कार !
समाज से एक तरह बहिष्कृत शर्मा जी को जीवन भर का लेखा जोखा स्मरण हो आया।उन्हें पहली बार अपने किये हुए आचरण पर शर्मिंदगी महसूस हुई।पर अफ़सोस प्रकृति को ये सबक सिखाने के लिए महामारी का सहारा लेना पड़ा।
अल्पना
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