Sunday, 14 June 2020

वमन

वमन

चिपचिपे मौसम का दौर है
हर एक के बादल नम हैं
अँधेरा घना है,
बढे हुए तापमान का
न दिखता कोई छोर है
घटाएं बोझिल हैं,
घनघोर हैं
बस बरसती नहीं...
कहीं किसी कोने में
चुपके से गर
बरस भी जाये
तो दिखती नहीं
आँखें हैं सभी के पास
बस नजर भर समय नहीं..!
इससे पहले कि
कोई बोझिल हुआ बादल
फट पड़े यकायक
और बहा ले जाए
समूचे दौर को,
बरसने दो खुद को
हौले हौले
मत डरो भीग जाने से !
इससे पहले कि
धड़कनों की टेढ़ी मेढ़ी लाइनें
बदल जाएँ
आईसीयू की
सीधी लाइन में..
बदल डालो
अपनी हथेलियों में
छिपी कर्म की लकीरों को..!
उड़ेल डालो खुद को
जिंदगी के पन्नों पर,
किसी अपने के काँधे पर
खाली कर दो खुद को,
इससे पहले कि
अंदर का खालीपन
खोखला कर दे वजूद को,
बदल जाये
विषाक्त संताप में,
मेरे मित्र
वमन कर दो
वमन कर दो..!

अल्पना नागर



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