Friday, 19 June 2020

इन दिनों

इन दिनों

इन दिनों
भीतर मरुधर
बाहर मधुरस
खेल रही हूँ..

मौन पथ पर
भावों की
थिरकन,
अंकुरण की
तड़पन
देख रही हूँ..

वक्त की
राख में
आग और
अंगार,
'फीनिक्स' हुए
ख़्वाब
ढूंढ रही हूँ..

फटेहाल
जेब सी
'मंदी' के
इस दौर में,
सुकून के
चंद खनकते
सिक्के
टटोल रही हूँ..

कोरे पन्नों पर
शब्दों की
चहलकदमी
विचारों की
गहमागहमी
सुन रही हूँ..


घने कोहरे के
बीचोंबीच
नजर भर धूप की
अंगीठी लिए
चंद ख़्वाब
मकई के दानों सा
भुन रही हूँ

हाँ,सहमे से हैं
नए पत्ते,
मगर
पतझड़ी आँधियों में
वसंत की फुनगियों की
आहट सुन रही हूँ..!

अल्पना नागर
#इन दिनों

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