Sunday, 1 November 2020

लौट आना

 लौट आना


जाने से पहले

लौट आना 

जैसे लौटती है कविता

कवि के पास

दुनियाभर की घुमक्कड़ी के बाद


वैसे ही जैसे लौटती है

हर जाती हुई सांस

जिस्म के पिंजरे में हर बार

उड़ती हुई राख पे खिलते फूलों से होकर

नदियों की शिराओं तक/

शिराओं में प्रवाहित होते जीवन से लेकर

पुनः राख बन बहने तक

लौट आना..


जाने से पहले 

देखना एक बार मुड़कर

पहली बार स्कूल जाते बच्चे की तरह

कि लौटना हर बार/

बाहों में आकाश लिए

परिंदे की तरह उड़ान भरे


जाने से पहले 

सौंपते जाना अपना सर्वस्व

जैसे सौंप के जाता है दिन

अपनी उमंगे और ऊर्जा

रात की संदूकची को

चाँद तारों से भरकर..

पुनः पुनः लौट आने को !


-अल्पना नागर




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