लौट आना
जाने से पहले
लौट आना
जैसे लौटती है कविता
कवि के पास
दुनियाभर की घुमक्कड़ी के बाद
वैसे ही जैसे लौटती है
हर जाती हुई सांस
जिस्म के पिंजरे में हर बार
उड़ती हुई राख पे खिलते फूलों से होकर
नदियों की शिराओं तक/
शिराओं में प्रवाहित होते जीवन से लेकर
पुनः राख बन बहने तक
लौट आना..
जाने से पहले
देखना एक बार मुड़कर
पहली बार स्कूल जाते बच्चे की तरह
कि लौटना हर बार/
बाहों में आकाश लिए
परिंदे की तरह उड़ान भरे
जाने से पहले
सौंपते जाना अपना सर्वस्व
जैसे सौंप के जाता है दिन
अपनी उमंगे और ऊर्जा
रात की संदूकची को
चाँद तारों से भरकर..
पुनः पुनः लौट आने को !
-अल्पना नागर
No comments:
Post a Comment