ग़नीमत है
पेड़ समाए होते हैं
मिट्टी की आत्मा में
गहरे तक..!
और बने रहते हैं आजीवन
मिट्टी सम शून्य/
पेड़ जानते हैं
प्रेम का सही अर्थ..
हमने होना चाहा पेड़
सीखना चाहा प्रेम
मगर हो न सके
स्थिर..निःस्वार्थ और समर्पित !
हम कभी नहीं जान पाए
आखिर क्यों है
मिट्टी की संरचना में
रिक्त स्थान !
नहीं भेद पाए अब तक
घने पेड़ों से छनकर आती
धूप का रहस्य !
पत्तियों संग खिलखिलाती
हवा का रहस्य !!
अपनी देह पर लपेट लिया हमने
स्वार्थ का स्थाई उबटन/
प्रेम आता है
अंतरतम गहरे रमने
किन्तु सतह से लौट जाता है
वो भेद नहीं पाता
कंक्रीट की मोटी दीवार/
हम कभी भी कहीं भी
कुछ भी बन सकते हैं !
बन सकते हैं
गाड़ी-मोटर,मकान-दुकान
ऐसी-कूलर,रोड़े-पत्थर और दीवार!!
मगर हाँ, ये सत्य है
हम पेड़ नहीं बन सकते..
गनीमत है
हम पेड़ नहीं बन सकते..!!
-अल्पना नागर
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