Sunday, 14 March 2021

पलाश

 ये पलाश के खिलने का समय है


साजिशन धरती की पीठ पर

उभर आये हैं नीले निशां

आदतन पेड़ों नें गिरा दिया है

जर्द पत्तों का पीला कम्बल..!


किसी नें खोल दिया है

सुराहियों में कैद हवा का ढक्कन

बौराई हवा मुक्त हो गई

मानो कुलांचे भरती 

दूर जंगल में हिरनी कोई..!


दूर कहीं सूनी पड़ी है शाख

ये गुलमोहर के आराम का समय है..!

उसी के नज़दीक

बस चंद पेड़ों की दूरी पर

कोई है जो टिका हुआ है शाख से अब भी/


मेरी हैरानगी को भांपते हुए

हौले से हवा बुदबुदाई..

"ये दहकते अंगार

रात की डाली पर

टिमटिमाते तारों का झुरमुट हैं

जो दिन के उजाले में

पलाश बन इठलाते हैं..!!"

जी हाँ, यही हैं वो

जो वक़्त की साजिशों को 

हर बार झुठलाते हैं..!


देखना,अभी और चटख होगी

धूप की हल्दी/

अभी और निखरेगा रंग धरा का

ये पलाश के खिलने का समय है..!!


-अल्पना नागर

12 मार्च 2021


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