अवसाद: कारण एंव उपाय
आज के इस तेज रफ़्तार दौर में जो शब्द सबसे अधिक सुर्खियों में रहा है वो है 'अवसाद'।
हम आये दिन अखबारों और समाचारों के माध्यम से जानते हैं कि फलां युवा नें आत्महत्या कर अपनी ईहलीला समाप्त कर ली या फिर चौरासी साल के बुजुर्ग अपने घर में सुसाइड नोट के साथ मृत मिले।ये सब घटनाएं पिछले कुछ समय से इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि अब इनके बारे में जानकर कोई आश्चर्य नहीं होता,इसे हमने सामान्य प्रक्रिया मानकर स्वीकार कर लिया है,लेकिन जब हम स्वयं इस तरह के दौर से गुजरते हैं तो घटनाओं की गंभीरता का पता लगता है।
सबसे पहले तो ये जान लें कि अवसाद आखिर है क्या..!कोई घटना या प्रतिकूल परिस्थितिजन्य अनुभव आपके जीवन को इतना अधिक प्रभावित करता है कि मृत्यु जीवन से अधिक सरल और सहज उपाय नजर आता है।पीड़ित व्यक्ति के मन मस्तिष्क का अनवरत शोर अंततः उसे स्थाई चुप्पी की ओर धकेल देता है।यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि चिंता और अवसाद में काफी अंतर है।कोई भी चिंता अवसाद नहीं होती,हर समस्या का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है,बशर्ते हम स्वयं उसका समाधान चाहें तो ! लेकिन वही चिंता शनै शनै अवसाद में परिवर्तित होकर कब चिंता को चिता में बदल देती है इसका आभास तक नहीं होता।वर्तमान में यही परिदृश्य चारों ओर नजर आता है।महज चौदह साल का बालक जब मोबाइल न दिलाने के कारण अपनी जिंदगी ख़त्म कर लेता है या कोरोना पीड़ित कोई महिला पड़ोसी के दुर्व्यवहार और तानों से परेशान होकर जीवन लीला समाप्त कर लेती है या फिर घरेलू झगड़ों से परेशान कोई बुजुर्ग बालकनी से कूद कर स्वयं को मानसिक परेशानियों से मुक्त कर लेता है तो इसे क्या कहेंगे..!निश्चित रूप से इन सभी घटनाओं में धैर्य की कमी और साथ ही जीवन के प्रति दिशाहीन दृष्टिकोण परिलक्षित होता है।आज के इस आलेख में हम इन्हीं बिंदुओं पर चिंतन करेंगे।
सबसे पहले अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को चिह्नित करना जरूरी है।इस कार्य में निकट परिजन या बेहतर दोस्त भी मदद कर सकते हैं।अवसाद ग्रस्त व्यक्ति धीरे धीरे स्वयं को समाज व हर व्यक्ति से दूर कर लेता है।कई बार विपरीत परिस्थितियों से उबरने के लिए स्वयं के साथ समय बिताना मददगार भी साबित होता है लेकिन स्थिति जब नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो आत्मीय जन का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है।अवसाद का कारण कोई भी हो सकता है।अधिकतर युवाओं की समस्या करियर,आर्थिक विपन्नता या प्रेम में विफलता के इर्द गिर्द ही घूमती है।दोनों ही स्थितियों में विफलता सिर्फ एक मानसिक स्थिति है।अगर हम ये मानकर चलें कि जिस क्षेत्र में हमें विफलता मिली वो इस ब्रह्मांड का एकमात्र विकल्प था तो अवसाद से कोई नहीं बचा सकता।जहाँ तक करियर की बात है इंसान के लिए कुछ भी असंभव नहीं।दृढ़ निश्चय अगर हो तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।एक राह बंद होने पर दूसरी राह अवश्य खुलती है।आर्थिक स्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं रहती।धैर्य के साथ स्वयं को संतुलित कर विकट परिस्थितियों से निपटा जा सकता है।इसके अतिरिक्त दूसरा महवपूर्ण बिंदु है प्रेम जो अधिकतर युवाओं के लिए अवसाद का मुख्य कारण है।हर वस्तु की तरह युवा प्रेम को भी अंततः पाने का प्रयास करते हैं,ये बात सच है कि प्रेम एक आंतरिक प्रेरणा का कार्य करता है और अगर किसी को सौभाग्य से जीवन में सचमुच हासिल होता है तो हर एक क्षण सही मायनों में दैवीय प्रतीत होता है लेकिन क्या सभी को मनचाहा प्रेम मिलता है!अगर हम आसपास नजर उठाकर देखें तो पाएंगे कि अधिकतर लोग जीवन में 'एडजस्टमेंट' करके चलते हैं।यहाँ इस मसले पर जोर इसलिये डाल रही हूँ कि अधिकांश युवाओं की समस्या बाहरी न होकर आंतरिक मनःस्थिति से सम्बद्ध होती है और धीरे धीरे समस्या इतना गंभीर रूप धारण कर लेती है कि उसका मूल्य प्राणों से हाथ धोकर चुकाना पड़ता है।क्या जीवन इतना अधिक तुच्छ है कि उसे यूँ ही गँवा दिया जाए!प्रेम में विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती।सिर्फ हासिल करने का नाम प्रेम नहीं है वो अनवरत एक नई कोशिका की तरह आपको नया जीवन और प्रेरणा देने का कार्य करता है,वो हर तरह के बाह्य बंधनो से मुक्ति का नाम है।यहाँ युवाओं को ध्यान देने की आवश्यकता है,प्रेम अगर आपके जीवन का अभिन्न हिस्सा है तो आप हर कार्य में उसकी सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करेंगे,यहाँ तक कि आपसे जुड़े हुए लोग आपकी आंतरिक चमक के कायल होंगे।आप जहाँ से भी गुजरेंगे खुशबू की भाँति अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ते हुए जाएंगे।जरूरत सिर्फ नजरिये को बदलने की है।हम ईश्वर को कितना ही स्मरण कर लें लेकिन उसे भौतिक तौर पर अपनी आँखों से नहीं देख सकते,हाँ उसके अस्तित्व को अपने दैनिक जीवन में ऊर्जा के प्रवाह की तरह अपनी चेतना में अनुभूत अवश्य कर सकते हैं। किसी वस्तु या व्यक्ति को पा लेने की अदम्य चाह में या तो सफलता मिलेगी या फिर एक नया जीवन ! असफलता जैसी कोई चीज अस्तित्व में नहीं होती ये मान लेना आवश्यक है।संसार जिसे असफलता की संज्ञा देता है वो दरअसल एक नए जीवन,एक नए मोड़ की शुरुआत भर होती है।कोई भी राह रुकती नहीं है अपितु दूसरे मार्ग खोल देती है जरूरत सिर्फ अपनी दृष्टि के विस्तार की है।किसी प्रसिद्ध कवि नें कहा है कि जब किसी पेड़ पर बिजली गिरती है तो वो जलकर काला हो जाता है।उस पेड़ पर न तो चिड़िया बैठती है और न ही वसंत उस पर आता है लेकिन वही पेड़ बैलगाड़ी के पहियों में जुतकर अपने अस्तित्व को एक नया आकार देता है।पेड़ हो या जीवन जब बिजली गिरती है तो या तो अस्तित्व राख हो जाता है या फिर उसे नया जीवन मिलता है।मिट्टी जब घड़े का आकार लेती है तो उसका अस्तित्व भी साकार होता है वरना वो मात्र धूल है,उसी तरह जब दीपक का आकार लेती है तो पल भर में ही अंधेरे को दूर भगाने की ताकत रखती है।अवसाद ग्रस्त व्यक्ति अवसाद के क्षणों में स्वयं को अनुपयोगी मिट्टी मान बैठता है,ऐसा अधिकतर परिस्थितियों वश होता है लेकिन जरूरी ये है कि उसे उसकी वास्तविक उपयोगिता स्मरण कराई जाए,उसे महत्व दिया जाए।
अवसाद अप्रत्यक्ष रूप से एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसकी चपेट में न केवल संबंधित व्यक्ति ही आता है अपितु उससे जुड़े हुए दूसरे लोग भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।ये एक श्रृंखला की तरह है जिसे जितना जल्दी हो सके तोड़ना आवश्यक है।ये एक गंभीर स्थिति है लेकिन हर समस्या की तरह इसका हल भी बेहद आसान है अगर सही दिशा में कार्य किया जाए।कहा जाता है कि अगर आप किसी समस्या में फंसे हैं तो उसका समाधान आपसे अधिक किसी और के पास नहीं है,दूसरे व्यक्ति आपको अच्छी बुरी सलाह अवश्य दे सकते हैं लेकिन उस पर चिंतन कर उस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता आपको स्वयं ही खोजना होगा।अवसाद की समस्या अधिकतर स्वभाव से भावुक लोगों के साथ होती है,लेकिन भावुक होना कोई कमजोरी नहीं है,अपितु विचारहीन समाज में ये आपकी अच्छाई और उजले पक्ष को दर्शाता है।अगर हम अपनी अच्छाई को अपनी ताकत बना लें तो शायद ही कोई अवसाद या मानसिक रोग हमारे हृदय पर दस्तक दे।बुद्धि कमोबेश सभी के पास होती है,लेकिन चिंतन का गुण बहुत कम लोगों के पास होता है।बुद्धि एक क्षमता है और चिंतन उस क्षमता का बेहतरीन प्रयोग करने की अवस्था है।चिंतन अभ्यास से और भी ज्यादा निखर सकता है।अगर सही दिशा में चिंतन हो तो व्यक्ति चाहे किसी भी समस्या में स्वयं को फंसा हुआ पाए वो अतिशीघ्र उससे उबरने के रास्ते भी खोज ही लेता है।ये बिल्कुल वैसा ही है कि आप अपने मार्ग पर अग्रसर हैं और भूलवश या भ्रांतिवश आप किसी सूखे कुँए में गिर जाते हैं,अंदर कंटीली झाड़ियां हैं और पीने को एक बूंद भी पानी नहीं,प्यास से आप अधमरे हुए जा रहे हैं और साथ ही चोटिल भी हैं ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे! निश्चित तौर पर हाथ पर हाथ रखकर मौत की प्रतीक्षा नहीं करेंगे अपितु कुँए से बाहर आने के मार्ग खोजेंगे,आपकी तीक्ष्ण दृष्टि कुँए की भीतरी दीवारों पर बने खड्डे या पत्थर खोजेगी ताकि किसी तरह बाहर निकला जा सके,या फिर पूरी क्षमता के साथ आवाज़ लगाएंगे ताकि राहगीर को आपकी आवाज़ सुने और आप बाहर निकल पाएं।आप देखेंगे कि जीवन को बचाने के उस दौर में आपके शरीर पर लगी बाहरी चोटें महत्वहीन हो गई हैं या फिर उनका अहसास तक नहीं हो पा रहा क्योंकि मानसिक रूप से आप अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में हैं।ये बात बिल्कुल सत्य है हमारी सोच का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर होता है।सोच ही हमें बाकी प्राणियों से भिन्न बनाती है।मनुष्य जीवन उसके मस्तिष्क की अनंत क्षमताओं के कारण बेहद अनमोल है,इसका प्रत्येक क्षण कीमती है।हमारे अंदर की जिजीविषा हमें हर क्षण एक नया जीवन देती है,कुछ सार्थक करने को प्रोत्साहित करती है।यही कारण है कि दुनिया में जितने भी चमत्कारी अविष्कार हुए हैं या असाधारण चीजें हुई हैं उसके पीछे साधारण से इंसान की असाधारण सोच ही है।निराशाओं के गर्भ में ही आशाओं के बीज छिपे होते हैं।अगर संसार आपको हताशा के गहरे कुँए में धकेल रहा है तो परेशान होने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है क्योंकि वो आपको कुछ नया और बेहतरीन करने का द्वार खोल रहा है,आपके अंदर छिपी विलक्षण प्रतिभा और क्षमताओं को अनावृत करने का कार्य कर रहा है।जिन लोगों और समाज के कारण आपने स्वयं को अवसाद के लिए चुना है सबसे पहले तो ये जान लें कि वो लोग क्या स्वयं किसी भी ग़लती या असफलता से विमुक्त हैं!अगर नहीं तो उनके सोचने से आपको इतना अधिक फ़र्क क्यों पड़ रहा है,ये जीवन आपका है,इसे संवारने का जिम्मा भी आपका ही है।अगर आप समाज के बने बनाये बरसों पुराने ढांचे से अलग होकर कुछ नया और सार्थक करने का प्रयास करते हैं तो एक क्षण में आप दूसरों की निगाह में अपराधी सिद्ध हो जाते हैं आपका महत्व हीरे से सीधे कोयले के बराबर हो जाता है।ऐसे में ये आप पर निर्भर करता है कि आप अपने अंदर ऊर्जा प्रज्वलित कर अंगार में परिवर्तित होते हैं या राख बनकर अस्तित्वहीन हो उड़ना पसंद करते हैं!
जीवन शीशे की तरह पारदर्शी है हम चाहें तो हर दिन स्वयं के अंदर झाँककर इसे सरल और स्पष्ट बना सकते हैं लेकिन हमें जटिलताएं आकर्षित करती हैं।हम सरलता को अनदेखा कर जटिल चीजों को पाने के लिए लालायित होते हैं।जीवन रूपी सरल पारदर्शी शीशे पर इतनी अधिक जटिलताओं की धुंधली परत छा जाती है कि कुछ भी स्पष्ट देख पाना असंभव प्रतीत होता है।अब यहाँ कमी हमारे चुनाव की है।अतः सरलता को चुनें,जीवन इतना भी कठिन नहीं जितना इसे बना दिया जाता है।
अवसाद की स्थिति में आप स्वयं को जितना हो सके व्यस्त रखें।अकर्मण्यता किसी भी परिस्थिति को और अधिक खराब कर सकती है।हमारे विचारों का हमारे शरीर पर गहरा असर होता है।अकर्मण्यता की स्थिति हमारी चेतना पर जंग जैसा आवरण ओढ़ाने का कार्य करती है।और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लोहा चाहे कितना ही मजबूत हो,जंग लगने पर धीरे धीरे क्षीण होकर अंततः नष्ट हो जाता है।आप जब स्वयं को विपरीत परिस्थितियों से घिरा हुआ पाएं तो सर्वप्रथम ऐसे कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखने का प्रयास करें जिनसे आपको सचमुच आंतरिक प्रसन्नता मिलती है। व्यवहारिक तौर पर उन परिस्थितियों में इन बातों को अमल कर पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं।आप परिजन या दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना पसंद नहीं कर रहे तो कोई बात नहीं खुद के साथ समय बिताएं,किसी पार्क में या घर के अहाते में लगे पेड़ पौधों को समय दें,प्रकृति के साथ स्वयं को जोड़ें,हर वस्तु को इस तरह देखें जैसे कि पहली बार देख रहे हैं चाहे वो पेड़ हो,चिड़िया हो,चाँद तारे, बादल हो या फिर बारिश की हल्की फुहार।यक़ीन मानिए आपको आश्चर्य होगा खुशियां आपके इर्द गिर्द हमेशा से मौजूद थी,बस उन्हें देखने और महसूसने का समय नहीं था।छोटे बच्चों के साथ समय बिताएं,उनका व्यवहार ध्यान से देखें आप बहुत सारी चीजें उनसे सीख सकते हैं।आपको गाना गाकर खुशी मिलती है तो गाइये खुलकर,क्यों परवाह करना कि चार लोग सुनेंगे तो क्या सोचेंगे! किसी के पास इतना समय नहीं है कि सिर्फ आप पर ध्यान केंद्रित करे और अगर कोई सचमुच बहुत फ्री है तो सुनने दीजिए क्या फर्क पड़ता है!अगर नृत्य करना पसंद है तो झूमकर नृत्य कीजिये बिल्कुल इस तरह कि कोई आपको नहीं देख रहा,क्या फर्क पड़ता है कि आप बारातियों वाला नृत्य कर रहे हैं!अगर प्रयास किया तो धीरे धीरे आत्मविश्वास की चमक आपकी अभिरुचियों में भी दिखाई देगी।अगर चित्र और रंगों से जुड़ाव है तो उठाइये तूलिका और उड़ेल दीजिए अपना सारा मन सफेद कैनवास पर!कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी बनाई कृति लियोनार्डो या वोन गोग जैसी नहीं बन पाई!बस इतना ध्यान रखें कि वो आपने बनाई है और आप स्वयं में विशेष हैं,इस पूरे ब्रह्मांड में सबसे अधिक ख़ुशगवार और अनोखे व्यक्ति हैं।
आपको घूमना पसंद है तो सोचने में या सही समय की प्रतीक्षा में समय बर्बाद न करें,उठाइये अपना बैगपैक और बाहरी यात्रा से आंतरिक यात्रा की खुशी को अपने अंदर महसूस कीजिये।ये बिल्कुल आवश्यक नहीं कि यात्रा में आपके साथ कोई संगी मौजूद हो,अगर कोई साथ होता है तो अच्छी बात लेकिन नहीं भी है तो कोई बात नहीं,इससे आपकी यात्रा पर विशेष फ़र्क नहीं पड़ने वाला,बल्कि और अधिक आनंद की अनुभूति आप कर सकते हैं,बशर्ते आपको अपने सानिध्य में जीवन जीने की कला आ गई हो।
किसी को आपकी वजह से खुशी हो कुछ ऐसा कार्य करें।मसलन आपके घर में बहुत सी ऐसी चीजें होंगी जिनका प्रयोग आप वर्तमान में नहीं कर पा रहे लेकिन वो किसी और के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है,आप उन सभी चीजों को एकत्रित कर निकल पड़ें यात्रा पर, कोई न कोई जरूरतमंद अवश्य होगा जिसके लिए आपकी चीजें बहुत मायने रखेंगी।यहाँ बात सिर्फ भौतिक चीजों की नहीं है,इसके अलावा भी हम दिन प्रतिदिन अनावश्यक बातों का ढेर अपने मस्तिष्क में इक्कट्ठा करते रहते हैं।अलमारी बुरी तरह ठसाठस भर जाती है,ऐसे में नई बातों के लिए जगह कैसे बनेगी!अनावश्यक चीजें हों या बातें, निकालते रहिए।जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बस थोड़ा सा बदलने की आवश्यकता है बाकी कार्य स्वयं प्रकृति आपके लिए करेगी।इस पूरे ब्रह्मांड में अगर कोई वस्तु स्थाई है तो वो सिर्फ आपकी आंतरिक खुशी है जिसे आपसे कोई नहीं छीन सकता।खुशी को पाने के लिए जबरन प्रयास न करें बल्कि अपने कार्यों से उसे अपनी ओर खींचें।बाहरी तौर पर दिखावटी हँसने का अभिनय सिर्फ आपके चेहरे की मांसपेशियों को थकाने का काम करेगा इसके विपरीत अगर खुशी आपकी आंतरिक चेतना से सम्बद्ध हो जाती है तो जीवन के मायने ही बदल देती है,और अवसाद जैसे शब्द बीते जमाने की बातें हो जाती हैं।
-अल्पना नागर
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