अपडेटेड दशानन
हर एक की चाह
बस चाहिए थोड़ा और
'अतिरिक्त' उत्थान
कोई भला मुझसे पूछे
अतिरिक्त होने के नुकसान !
कितना कष्ट होता है
जब बीस आँखों से खंगालनी होती हैं
एकसाथ फेसबुक ट्विटर और इंस्टा की
नित नई अपडेट्स..
बीस हाथों को समझा बुझा
टाइप करनी होती है पोस्ट और टिप्पणियां/
उफ्फ!कितना दुष्कर होता है
जब भेड़ों के झुंड की भाँति
हाँककर लाना होता है
एक ही दिशा में
दसों दिशाओं की तरह विभाजित
दस मस्तिष्क को/
दुःख की तो पराकाष्ठा तब होती है जब
दस जुबान से निकली बात भी
कोई सुनता नहीं..
सिवाय कर्तव्यनिष्ठ स्वयं के
बीस कानों के..!
मुश्किल तो तब है जनाब
जब इतना कुछ अतिरिक्त होने के बावजूद भी
'मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ '
की एक जिद पड़ जाती है भारी
कहलाने लगता हूँ दुराचारी
फिर होता है सामना
अनगिनत कटु शब्द बाणों का/
और सूखता जाता है
अति आत्मविश्वास का
'सीक्रेट' नाभि अमृत..!
इसके बाद भी मैं दशानन
अमर था अमर रहूँगा !
मैनें चढ़ा लिया है अपनी देह पर
ढीठता का मुल्लमा
कानों में ठूँस लिए हैं
निंदा प्रूफ ईयरप्लग
अपनी जुबान को कर लिया है
प्रोफ़ाइल की तरह लॉक..
मैं जान चुका हूँ
मेरे दस के दस सिर हैं
निहायती निकम्मे चापलूस
और एकदम आउटडेटेड/
फिर भी नहीं करूँगा
मरते दम तक उनका परित्याग
आखिर उन्हीं से तो बनती है
मेरी हीरो वाली पहचान!
तो क्या समझे
दशानन का टाइम आउट..!!
न न बिल्कुल नहीं..!
मैं नई तकनीक का
एडवांस फायरप्रूफ रावण हूँ
बिल्कुल हैप्पी बर्थडे वाली
मैजिक मोमबत्ती जैसा..!
बस थोड़ा उकता गया हूँ
पुराने तौर तरीकों से
अब मेरा पसंदीदा कार्यक्षेत्र होगा
तुम्हारा मस्तिष्क!
न लंका जलने की चिंता
और न ही खतरा किसी भेदी विभीषण से/
जनाब मैं एक नहीं अनेक रूप में
पाया जाऊँगा..!
तुम लगाते रहो मेले
जलाते रहो प्रतिवर्ष मेरा पुतला
आखिर मनोरंजन भी तो
आवश्यक है !
लेकिन हाँ,अब भी अगर चाहते हो
अतिरिक्त होना
तो भूल मत जाना
कितना मुश्किल होता है
ज़माने के हिसाब से
अपडेटेड दशानन होना..!
-अल्पना नागर
14-10-2021
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