जिंदगी के मायने
ज़िन्दगी अपनी मौज में आगे बढ़ रही होती है..खुशनुमा..खिलंदड़..वाचाल कि तभी अचानक एक ब्रेक लगता है और धड़ाम से मुँह के बल जिंदगी और जिंदगी की पूँछ पकड़े आप..दोनों का सामना जमीनी हकीकत से ! ऐसा क्यों होता है कि आपके बनाये खूबसूरत हवाई किले जरा सी हवा से धराशाही हो जाते हैं..यहाँ गलती आपके द्वारा उस किले निर्माण में चुनी गई सामग्री को लेकर हुई या फिर उस हवा से जो गलती से बेखयाली में उधर से गुजर रही थी..!यहाँ गौर करने लायक बात ये है कि जिंदगी का जरा भी बाल बांका नहीं होना वो मस्त मौला फ़क़ीर सी अपनी मौज में फिर से आगे बढ़ती जाएगी उसे ब्रेक लगा है तो सिर्फ आपकी बेकाबू रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए ! जरा सोचिए जिंदगी की ये उठापटक किसलिए.. वो क्यों हमारा ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती है..!क्या हमें आत्मावलोकन की आवश्यकता है?जिस रफ्तार से मुखोटों का चलन बरकरार है उसे देखकर तो यही लगता है कि बिल्कुल आवश्यकता है।
कुछ बातें हैं जिनका खयाल नए वर्ष में रखना लाजिमी होगा।अभी हाल ही में एक चौंकाने वाला सर्वे हुआ जिसमें बताया गया कि आज हममें से अधिकांश स्वयं को धोखा देने वाली अजीब सी मानसिक बीमारी से गुजर रहे हैं।आपको मालूम है कि आपका बच्चा पढ़ाई में कैसा है लेकिन आपने ये धारणा पहले से अपने दिमाग में बनाई हुई है कि उसके जितना होशियार दुनिया में और कोई नहीं..आपकी बनी हुई धारणा को बच्चे का खराब रिजल्ट भी प्रभावित नहीं कर पाता क्योंकि वो आपकी बनी बनाई विचारधारा से मेल नहीं खाता।इसी तरह व्यक्तिगत संबंधों में भी बहुत बार हमें ज्ञात होता है कि जिनके साथ हमारी तथाकथिक गहरी दोस्ती है वो दरअसल हमारे छिपे हुए शत्रु हैं जिन्हें संवेदनशील पलों में आपका सबसे अच्छा शुभचिंतक बनने का दिखावा करना होता है और अंततः वही लोग पीठ पीछे आपकी खिल्ली उड़ाने का कार्य करते हैं,हमें दरअसल मालूम होता है कि कौन कितना शुभचिंतक है फिर भी आँखे मूंदे न जाने कौनसे चमत्कार की हम प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।चमत्कार का तो पता नहीं लेकिन ये स्वयं के साथ धोखा जरूर होता है।क्यों न नव वर्ष में आज से और अभी से उन सभी मित्रों से एक निश्चित दूरी बना ली जाए,साथ ही अपने मन की सुनने की भी आदत डाल ली जाए ताकि स्वयं को धोखा देने की किसी भी स्थिति से बचाव हो सके।
हम सभी जानते हैं कि वैश्विक महामारी का ये दौर इतनी आसानी से समाप्त नहीं होने वाला।इसके लिए शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर स्वयं को मजबूत करना होगा।जिंदगी को पुनः पटरी पर लाने के नए तरीके खोजने होंगे जो इस महामारी के चलते हुए भी जीवन के संग तालमेल बिठा सके।क्योंकि जमाना डिजिटल हो चला है अतः डिजिटल खरीददारी से लेकर भुगतान तक बहुत सी ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो नई पीढ़ी के लिए तो आसान है किंतु पुरानी पीढ़ी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं।अतः ऐसे में आप अपने घर के बुजुर्गों को जमाने संग कदमताल के उद्देश्य से बहुत सी डिजिटल चीजें सिखा सकते हैं इससे उनमें आत्मविश्वास की तो बढ़ोतरी होगी साथ ही आत्मनिर्भर होने का भी सुख मिलेगा।महामारी के इस दौर में घर से बाहर कदम रखना आत्मघाती हो सकता है अतः डिजिटल जानकारी अपनों के बीच हुई इस दूरी को कम करने में सहायक सिद्ध होगी।
इंटरनेट नें बहुत सी सुविधाएं दी हैं लेकिन ये भी सच है कि बहुत सी चुनौतियां भी इसने दी हैं।बहुत से लोगों नें पाया कि इंटरनेट पर ज्यादा समय व्यतीत करने के कारण उनमें मानसिक तौर पर कुंठा में इजाफा हुआ है साथ ही बहुमूल्य समय की भी अत्यधिक बर्बादी हुई है।ये बात तो निश्चित है कि जमाना अब डिजिटल हो चुका है और अब इसे अपनाना मजबूरी भी हो गया है।हम पूरी तरह से डिजिटल तौर तरीकों पर निर्भर होते जा रहे हैं।बहुत से ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म हैं जहाँ लोग अक्सर अपने जीवन से जुड़ी पल पल की तस्वीरें डालते रहते हैं,जहाँ भी नजर डालो लोग बस खुश हो रहे हैं..मित्रों संग अच्छा समय बिता रहे हैं..घूम रहे हैं।उन्हें खुशी के पलों में आनंदित होते देख नैसर्गिक तौर पर कई बार स्वयं के जीवन से तुलना आ जाती है और नतीजा चिड़चिड़ापन,कुंठा, ईर्ष्या..! यहाँ किसी और की नहीं बल्कि स्वयं को बदलने की आवश्यकता है।किसी और का आनंदित होना आखिर क्यों हमें तकलीफ देने लगा!और ये बात भी जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि जो कुछ भी हमारी आँखें देख रही हैं जरूरी नहीं कि दृश्य वास्तविक रूप में वही है।वर्तमान में दिखावे का चलन है और इसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।आपकी आँखें वही देखेंगी जो आप देखना चाहते हैं।तो क्यों न मन को तैयार किया जाए।हर एक के पास कोई न कोई रचनात्मक गुण अवश्य होता है जरूरत है तो बस पहचानने की..क्यों न अपनी ही एक रचनात्मक दुनिया बनाई जाए जहाँ आप और आपके आनंद के सिवा कोई और न आने पाए!
आपने एक बात गौर की होगी,सोशल मीडिया पर समय बिताते हुए आप पाएंगे कि जो भी आप सर्च कर रहे हैं उसी से संबंधित चीजें घूम फिरकर आपकी नजरों के सामने बार बार आ रही हैं।जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है ये घूम फिर कर उन्हीं चीजों से हमारा सामना कराती है जो पहले से हमारे मन मस्तिष्क में मौजूद होते हैं चाहे वो हमारी महत्वकांक्षा हो या फिर हमारे अंदर छुपा डर !
तकनीकी के इस दौर में तकनीक से जुड़ना हमारी सुविधा से अधिक मजबूरी या फिर कह सकते हैं आदत बन गया है।आपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कभी न कभी उपवास तो किया होगा।उपवास के दौरान आत्म नियंत्रण की जो प्रवृति विकसित होती है वो शरीर और मन दोनों के लिए हितकारी होती है।उपवास के दौरान शरीर और मन दोनों से विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन होता है।बस वही जरूरत आज हमें इंटरनेट उपवास की है।सप्ताह में एक दिन ऐसा सुनिश्चित करें जब मोबाइल या इंटरनेट से वास्ता बिल्कुल न रहे।इस दौरान आप वही सब कार्य करें जो बहुत समय से आपने टाल रखा था या यूं कहें इंटरनेट पर समय अधिक देने के कारण समय ही नहीं मिल पा रहा था!किसी बहुत ही करीबी मित्र को या प्रिय को पत्र लिखें, कोई पुस्तक जो आप लंबे समय से पढ़ना चाह रहे थे उसे पढ़ें..घर की बगिया को सँवारे एक दिन के लिए माली बन जायें..अपने हाथों से कोई पसंदीदा व्यंजन तैयार करें..मौसम से दोस्ती करें..खिड़की से बाहर झांकें धूप बारिश जो भी आपकी प्रतीक्षा में बाहर बैठी है उससे नजरें चार कर आएं।बच्चों की खिलखिलाहट में खुद को शामिल कर आएं..खुद को सँवारे आईने में झांकें,खुद की पीठ थपथपाएं तारीफ कर आएं..कोई भी रचनात्मक कार्य करें जिसे करके आपको सुकून की अनुभूति हो..फिर देखिए जिंदगी के सिरे किस तरह आपसे जुड़ते चले जायेंगे,बरसों से कोने में धूल फांकती मन की वीणा का एक एक तार झंकृत हो उठेगा।तकनीकी रूप से खुद को डिटॉक्सिफाई करने का ये विचार आपके जीवन को निश्चित रूप से नई दिशा देगा..आजमा कर देखें।
क्या आपने कभी महसूस किया है कि चीजों को हर बार आगे के लिए टालने की प्रवृति किस कदर आपके जीवन में घुसपैठ कर गई है..! "कल कर लेंगे यार..क्या फर्क पड़ता है..कौनसी ट्रेन छूटीजा रही है..कल करता हूँ पक्का..! ऐसे कई जुमले निजी जीवन में परिचितों से सुने भी होंगे और आपने कहे भी होंगे।देखा जाए तो कल कभी नहीं आता।जो भी है आज है अभी है..भविष्य पर टाली गई चीजों का अस्तित्व भविष्य की ही भांति अधर झूल में लटका होता है।फिर एक दिन ऐसा आता है कि पेंडिग चीजों का ढेर आपके सामने लगा होता है आप कुछ नहीं कर पाते और उसी ढेर में धीरे धीरे स्वयं भी विलीन हो जाते हैं।आप जानते हैं संसार में घटित होने वाली हर घटना एक क्षण में घटित होती है।एक छोटे से विचार में बड़ी बड़ी भामाशाह योजनाएं छिपी हो सकती हैं,एक अदने से बीज में भरा पूरा जंगल और एक छोटे से निश्चय में संपूर्ण इतिहास और भविष्य की तिथियां..!क्षण महत्वपूर्ण हैं ये टालने के लिए अस्तित्व में नहीं आते।
आपने कभी सुना होगा असफलता की कोख में सफलता पल रही होती है बस वो थोड़ी देर का विलम्ब होता है लेकिन उसे आना जरूर होता है।कुछ भी स्थाई नहीं है यहाँ तक कि सफलता का जश्न भी..! और न हीं असफलता का दुःख मनाना..!दिन ढलने पर ही अगले दिन की तैयारी होती है।सूर्य का ढलना उसके अगले दिन के प्रगटीकरण का ही संकेत है।जरूरी है तो हमारी चेतना का बने रहना उसकी उपस्थिति के बिना स्वयं के अस्तित्व का भान भी असंभव है।हम सभी को जन्म से स्वयं के लिए और स्वयं से जुड़े संसार के प्रति एक जिम्मेदारी दी गई है,सर्वप्रथम इसे पहचानना और तत्पश्चात पूरे मनोयोग से उसे निभाना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है।
-अल्पना नागर
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