सोचती हूँ
शब्द नें अब तक
हमें क्या दिया?
आकार दिया
निराकार भावों को!
एक तटस्थ पुल की भाँति
स्वयं चरमरा कर भी
जोड़े रखा
विपरीत ध्रुवों को,
एक युग यात्री बन
बदल डाली दुनिया
किन्तु हमनें क्या किया
शब्दों के साथ?
कभी छोड़ दिया
अकेले वाक् युद्ध में
लहूलुहान होने..
तो कभी सजा दिया उन्हें
भावविहीन भाषा की दुकान में
प्रतिस्पर्धा का
चमकीला आवरण पहना कर!
हम समझते रहे
हमनें शब्द गढ़ दिए!
किन्तु हकीकत में
शब्द हमें गढ़ रहे हैं
एक सुघड़ शिल्पी की भाँति
बड़ी ही सूक्ष्मता से
एक एक कर हमारे
जीवन के पृष्ठ गढ़ रहे हैं,
शब्द ब्रह्म हैं
शब्दों को सुनो..
शब्द नें अब तक
हमें क्या दिया?
आकार दिया
निराकार भावों को!
एक तटस्थ पुल की भाँति
स्वयं चरमरा कर भी
जोड़े रखा
विपरीत ध्रुवों को,
एक युग यात्री बन
बदल डाली दुनिया
किन्तु हमनें क्या किया
शब्दों के साथ?
कभी छोड़ दिया
अकेले वाक् युद्ध में
लहूलुहान होने..
तो कभी सजा दिया उन्हें
भावविहीन भाषा की दुकान में
प्रतिस्पर्धा का
चमकीला आवरण पहना कर!
हम समझते रहे
हमनें शब्द गढ़ दिए!
किन्तु हकीकत में
शब्द हमें गढ़ रहे हैं
एक सुघड़ शिल्पी की भाँति
बड़ी ही सूक्ष्मता से
एक एक कर हमारे
जीवन के पृष्ठ गढ़ रहे हैं,
शब्द ब्रह्म हैं
शब्दों को सुनो..
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