Thursday 20 August 2020

फफूंद

 फफूंद


कहीं भी उग आती है

जिद्दी फफूंद,

इसे कहाँ जरूरत है

नियमित देखभाल की या

खाद पानी की !

ये बिल्कुल उन लड़कियों की तरह है

जो आ जाती हैं अनचाहे..

किसी कुलदीपक की चाह में/

फफूंद...

किसी रेड लाईट एरिया में

फटे निरोध से निकल

रेड लाईट सिग्नल तक

पहुँच जाती है/

ये तो स्वतः स्फूर्त है

जैसे बंद मुट्ठी और उससे उपजी

हस्त रेखाएं!

या फिर तमाम उम्र

फल और छाया देने के बाद

ठूँठ पड़े बुजुर्ग पेड़ के अवशेष पर

अचानक उग आए

कुकुरमुत्ते..

बारिश के बाद

बिलों से बाहर आते

पंख लगे कीट पतंगे..!

इन्हें बिल्कुल जरूरत नहीं

कि दिया जाए इन पर 

बेतहाशा ध्यान..

उलट पलट कर देखा जाए

किसी स्वादिष्ट अचार की तरह और

बिछाई जाए सुरक्षा की कोई

तैलीय परत/

कमाल की बात !

इनमें पनप रहा सक्रिय जीवन

तलाश करता है

निष्क्रियता की/

ये चाहें तो बना सकते हैं घर

धूल खाई किताबों

या हरकत रहित मस्तिष्क को

किसी निपुण धर्मगुरु या नेता की तरह/

तो बेहतर है

हरकत में रहा जाए..

देखा जाए स्वयं को हर रोज

उलट पलट कर/

ताकि पनप न पाए उदासीनता

और उससे उपजी

अनचाही कोई फफूंद..!


अल्पना नागर


Wednesday 12 August 2020

अज्ञात

 अज्ञात छायाकार


उसे ज्ञात है

रंगों का बेहतर संयोजन/

हर रंग का अपना रंगमंच..

किसकी आँखों में

कितना रंग/

श्यामल हिस्सा कितना श्याम/

श्वेत हिस्सा कितना श्वेत/

उसे ज्ञात है..


उसे ज्ञात है/

कितना प्रकाश 

कितने घनत्व में और

किस पहर डालना है/

ताकि आ सके सर्वश्रेष्ठ तस्वीर/

छाया का जादूगर है वो !


आप चाहें या न चाहें

वो बिठाता है

समीकरण

धूप छाँव के/

लेकर आता है

अपनी मनमर्जी के पात्र

अपनी सुविधा से/

कराता है किसी तरह

'एडजस्ट'

वक्त के फ्रेम में/


आप हो जाते हो पाबंद

अनायास ही

उसके निर्देशों के/

समस्त भावभंगिमाये

स्वतः करती है पालना/

उसके एक 'क्लिक' की !


वो रचता है

सम्मोहक नेपथ्य/

सबकी नजरें बचाकर !

कोई नहीं बच सकता

उसके लेंस की जद से..

वो अज्ञात है/

मगर ज्ञात है उसे 

समस्त तस्वीरें /

एक ज़खीरा है 

उसके पास

समस्त घटनाक्रम का/


भले ही रहो आप अंजान

ताउम्र उसकी उपस्थिति से/

अगर जान लेते तो

कर लेते शायद

थोड़ा अभिनय प्रेम का/

जैसे करते आये हो अब तक

किसी सिद्धहस्त 

फोटोग्राफर के सामने/

होठों के किनारे विस्तृत किये हुए !


अल्पना नागर