Monday 2 January 2017

सड़क

सड़क

एक शहर है
चमकते सूरज सा
शहर में रोज़ उगती है
उम्मीदों की ओस में भीगी हुई
कुकुरमुत्ते सी सहर !
सहर के साथ ही
दूर तक जाती है
एक सड़क
बत्तीस दाँतों के बीच
बनी जिह्वा सी
सीधी सपाट
धूम्र धूरसित सड़क,
सड़क के किनारे हैं
कुछ हाशिए सी किनारे लगी
चलती फ़िरती जिंदगियां
आसपास ही
मक्खी की तरह भिनभिनाती
निराशा!
निराशा,तरस आती है तुझपर
कितनी दफा देखा
तुझे हाथ मलते हुऐ
बारम्बार प्रयास कर
पुनः लौटते हुऐ !!
जीवट जिंदगियों नें सजाई है
सड़क किनारे दुकान
और चेहरे पर मुस्कान
पास ही रखी है
मिट्टी की बनी
गुल्लक,
गुल्लक में शोर मचाते
चिल्लर सपने
"कब जाओगे घर
कब लौटोगे गाँव ?"
गुल्लक के पास है
एक टोकरी
टोकरी में एक एक कर जमा हुऐ
ढेरी लगे दिलासे !
ये सड़क कितनी लम्बी है,
कहाँ तक जायेगी ?
कोई नहीं जानता !!

अल्पना नागर ✏





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