Sunday 18 June 2017

समाजीकरण

समाजीकरण

सिमोन तुमने कहा
स्त्रियां पैदा नहीं होती,बनाई जाती हैं!
सच कहा..
समाज की ओखली में
सर रखकर
कूट कूट कर भरे जाते हैं
संस्कार
सिखाया जाता है
समर्पण का 'सुख'!
तैयार किया जाता है
तयशुदा रास्तों पर चलने को..
लगाये जाते हैं
समाजीकरण के नित नए
दर्दनाक 'इंजेक्शन'..
तय किये जाते हैं
'छूट' के आयाम..
उन्हें दी जाती है
खिड़की भर आसमान की
मनमर्जियाँ
जहाँ से शून्य आँखें
रोज निहारती हैं
असंतोष की एक लंबी रेस..
तुम चाहती हो दौड़ से अलग होना
और विचार मात्र से ही
हो जाती हो
पूर्णतः बहिष्कृत
अस्तित्वहीन!
फिर शुरू होती हैं
ब्रह्माण्ड जितनी अनंत बहसें..
टांग दिए जाते हैं
असंख्य क्षुद्र ग्रह और तारक गण
तुम्हारे चरित्र पर!
तुम लाख कोशिश करती हो
लेकिन ढूंढ नहीं पाती
'ए रूम ऑफ़ वन्स ओन'
जो वर्जीनिया नें बनाया था..
हर कोने में नजर आती हैं
बेतरतीब समाज की
चरमराती चारपाइयाँ!
जिसपर बैठने का तुम्हे कोई हक नहीं!
आखिर क्यों भूल जाती हो हर बार कि
पैदा नहीं होती तुम
'बनाई' जाती हो..!!

अल्पना नागर,नई दिल्ली









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