Sunday 6 September 2020

तीसमारखाँ

 बाल कहानी

तीसमारखाँ


पुराने समय की बात है।बहुत दूर एक छोटा सा गाँव था।गाँव का नाम खुशहालपुर था।गाँव के लोग बड़े ही सीधे और मेहनती थे।सभी मिल जुल कर खुश रहते थे।लेकिन एक समस्या थी।खुशहालपुर की खुशियों को नजर लग गई थी।एक डाकू नें गाँव में लंबे समय से घुसपैठ की हुई थी।डाकू देखने में लंबा चौड़ा,घनी मूँछों वाला रौबीला आदमी था।देखने में ही बड़ा खूँखार नजर आता था।एक शानदार घोड़ा भी था उसके पास जिसपर बैठकर वो पूरे गाँव का जायजा लिया करता था।गाँव के लोग सीधे सादे थे वो डाकू से किसी तरह का कोई पंगा नहीं चाहते थे अतः उसके आते ही सभी अपने अपने घरों में मुर्गियों की तरह दुबक कर बैठ जाते थे।जितने समय डाकू गाँव के चक्कर लगाता था उतने समय कोई भी बाहर नहीं निकलता था,उनकी सांस डर के मारे हलक में ही अटकी होती थी।घनघोर सन्नाटा छाया होता था।

डाकू के पास एक बड़ी सी बंदूक भी थी जिसे हमेशा वो शान के साथ अपने कंधे पर लटकाकर रखता था।गाँव के लोगों नें कभी बंदूक देखी तक नहीं थी वो बड़े ही शांतिप्रिय खुशमिजाज लोग थे अतः उनका बंदूक जैसे जानलेवा हथियार से डरना स्वाभाविक था।डाकू नें अपने बारे में बड़े ही शान से गांववासियों को बताया हुआ था कि किस तरह उसने अब तक तीस लोगों को यूँही खेल खेल में मारा हुआ है।किसी की जान लेना उसके बांए हाथ का खेल है अतः अगर किसी को अपनी और परिवार की जान प्यारी है तो वो जब भी गाँव का चक्कर लगाने आये, चुपचाप अपने घर के बाहर अनाज और धन रख दे,लेकिन ध्यान रहे इस बीच कोई नजर उठाकर उसकी आँखों में आंखें डालकर न देखे अन्यथा परिणाम घातक होगा।

गाँव वासी बहुत अधिक डरे हुए थे अतः बिना किसी विरोध के वो अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा नियत समय पर चुपचाप अपने घर के आगे रख देते थे।शुरुआत में डाकू महीने में दो बार आता था लेकिन अब वो जल्दी जल्दी आने लगा।कभी भी आ जाता था कोई नियत समय नहीं था।गाँव वालों के लिए भूखा मरने की नौबत आ गई।फिर भी वो जान बचाने के चक्कर में डाकू के आगे घुटने टेकने पर मजबूर थे।चूंकि डाकू नें अब तक तीस लोगों की जान ले ली थी अतः वो तीसमारखाँ के नाम से जाना जाने लगा।डाकू के दिन मजे से कट रहे थे।

उसी गाँव में कुछ युवा बच्चों का एक समूह था जो बुद्धिमान थे और डाकू के इस मनमाने रवैये से बहुत अधिक आक्रोश में थे।युवा बच्चे प्रतिभावान थे किंतु उनमें भी वही समस्या थी वो भी अन्य गाँव वासियों की तरह डरपोक किस्म के थे फिर भी वो तरह तरह की योजनाएं बनाते रहते थे कि किस तरह डाकू को गाँव से भगाया जाए।एक लड़का जिसका नाम धीरज था वो सभी को डाकू से सामना करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता।

एक बार धीरज नें अपने समूह के अन्य मित्रों से कहा कि अब बहुत हो गया।डाकू के आतंक की वजह से गाँव में जीना मुश्किल हो गया है।अतः समय आ गया है कि तीसमारखाँ को गाँव से भाग दिया जाए।

"लेकिन ये होगा कैसे..?देखते नहीं उसके पास बड़ी सी बंदूक है.."।एक मित्र नें समस्या की ओर इशारा किया।

" यही तो दिक्कत है..हमें योजना बनानी होगी मित्र..कैसा हो अगर हम उसकी बंदूक को ही उससे छीन लें..! वो एक है और हम पाँच..क्यों..!"धीरज नें उत्साह से कहा।" इस बार जैसे ही तीसमारखाँ गाँव का चक्कर लगाने आएगा हम लोग इक्कठे होकर उसके सामने खड़े हो जाएंगे..फिर उसका पैर खींचकर घोड़े से उतारेंगे और फिर.."

"और फिर उसी के घोड़े से उसका पैर बांधकर उसे गाँव के पीपल पर उल्टा लटका देंगे..।" अन्य मित्र नें बीच में ही टोककर कहा।

" विचार तो अच्छा है पर कर पाएंगे ऐसा..?"

"देखते हैं..इस बार पूरी हिम्मत से सामना करेंगे।कुछ तो समाधान अवश्य निकलेगा।" धीरज नें कहा।

जल्दी ही वो दिन भी आ गया।डाकू गाँव का चक्कर लगाने पहुंचा।धीरज और उसके मित्र भी इस बार हिम्मत करके डाकू के सामने पहुँच गए।वो ठीक उसके घोड़े के सामने घेरा बनाकर खड़े थे।तीसमारखाँ को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।उसने इशारे से कहा..

"ए लड़कों क्या बात है..रास्ता रोक कर क्यों खड़े हो..मरने से डर नहीं लगता..?" बंदूक को कंधे से उतरते हुए डाकू नें कहा।

उसकी रौबदार कड़क आवाज़ और घनी मूँछे देखकर ही धीरज और उसके मित्रों के पैर काँपने लगे ऊपर से उसने बंदूक भी कंधे से उतार ली थी।

"हु हुजूर..क.. कुछ नहीं..हम्म तो बस यूँही आ गए थे..।"समूह के सबसे डरपोक लड़के नें मुँह खोला।

"यूँही का क्या मतलब है..अब तैयार हो जाओ सब मरने के लिए.."।तीसमारखाँ नें बंदूक तानते हुए कहा।

"अरे हुजूर कैसी बात करते हो..हम तो आपके चेले बनने आये हैं ।हमें बस कुछ नहीं चाहिए।अपनी शरण में ले लो।" धीरज नें बिगड़ी बात संभालते हुए कहा।

"ठीक है..एक काम करो।मेरे पीछे पीछे आते जाओ।ये घरों के आगे जो भी धन और सामान रखा है उसे इक्कठा करते जाओ।ध्यान रहे एक पैसे की भी हेराफेरी की तो उड़ा दूंगा बंदूक से..समझे..!" कड़क आवाज में डाकू नें कहा।

"ज जी हुजूर..।" लड़खड़ाती आवाज में लड़कों नें कहा।

शर्म से उन लड़कों की निगाहें झुकी थी।वो क्या करने आये थे और क्या कर रहे हैं सोचकर उनका आक्रोश ज्वालामुखी की तरह अंदर ही अंदर भभक रहा था।अब उन्हें बुद्धिमता से काम लेना था।क्योंकि हिम्मत और ताकत जवाब दे चुकी थी।यह एक बेहतरीन अवसर था।तीसमारखाँ के समीप रहकर उसकी कमजोरियों को जानने का।

समय बीतता गया।तीसमारखाँ को अब उसके डाकूगिरी वाले काम में मदद के लिए युवा हाथ भी मिल गए थे।तीसमारखाँ की एक विशेषता थी वो अपनी बंदूक को किसी की हालत में अपने से अलग नहीं रखता था।रात को सोते समय भी बंदूक उसके हाथ के नीचे होती थी जिसे निकालना कोई आसान कार्य नहीं था।

धीरज और उसके मित्रों के लिए डाकू को पराजित करना एक सपना मात्र रह गया था।

एक दिन डाकू बहुत तेज बीमार पड़ा।बीमारी की हालत में भी वो अपनी बंदूक को अपने से अलग नहीं करता था।लेकिन एक रोज हालत बहुत खराब होने पर लड़कों को अवसर मिल गया।अब सिर्फ हिम्मत जुटाने की देर थी।मंजिल सामने खड़ी थी।गाँव वालों की सारी मुश्किलें हल होने का सुनहरा अवसर उनके सामने था।

धीरज नें अपने मित्रों से कहा कि उसकी बंदूक लेने का काम मैं करूँगा तुम लोग बस दरवाजे पर खड़े हो जाना ताकि वो कहीं जा न पाए।और क्योंकि वो बीमार है इसलिए हम उसे घोड़े से पैर बांधकर खींचने या पीपल पर लटकाने जैसा कोई काम नहीं करेंगे।ये गलत होगा।

योजना के अनुसार धीरज नें डाकू के करीब जाकर उसकी बंदूक उससे छीन ली।चूंकि डाकू की शारीरिक क्षमता लगभग खत्म हो गई थी अतः बंदूक लेने का वो विरोध नहीं कर पाया।

धीरज नें पहली बार अपने हाथ में लेकर बंदूक को देखा।" तो क्या यही वो चीज है जिसने इतने समय से हम गाँव वालों की नींद उड़ा रखी है.."।धीरज नें मन ही मन सोचते हुए कहा।

धीरज नें बंदूक को छत की तरफ मुँह करते हुए चलाने का प्रयास किया।लेकिन ये क्या..बंदूक चली ही नहीं..!! धीरज नें पूरा प्रयास किया उसे चलाने का लेकिन बंदूक नहीं चली।उसने डाकू की तरफ बंदूक का मुँह किया और कारण पूछा।

डाकू की हालत जैसे काटो तो खून नहीं।लगा जैसे पोल खुल गई अब क्या करेगा..! उसने धीरज को बहुत ही दबी हुई आवाज में बताया कि बंदूक में कोई गोली नहीं है और न ही कभी थी।उसने अब तक किसी एक मक्खी तक को नहीं मारा है तीस लोग तो दूर की बात है।वो दूर के किसी गाँव में एक सेठ के यहाँ नौकरी करता था,सेठ उसे बहुत मारता था जिससे परेशान होकर एक दिन वो उसकी बंदूक और घोड़ा उठाकर भाग आया।और गाँव में आकर लोगों को शेखी बघार कर डाकू बन गया।

धीरज और उसके मित्रों का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया।उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि अब तक वो लोग बेवकूफ बनते आ रहे थे।अगर जरा सी हिम्मत दिखाई होती तो खुशहाल पुर गाँव कभी बदहाल नहीं होता।खैर अब क्या हो सकता था!

तीसमारखाँ नें धीरज और उसके मित्रों से कहा कि वो ये बात गाँव में किसी को न बताएं वरना बहुत किरकिरी होगी।उसने बताया कि वो अब कभी भी जिंदगी में किसी को परेशान नहीं करेगा।गांववालों की हमेशा मदद करेगा।साथ ही जो भी धन उसने गाँव वासियों से लिया है उसे लौटा देगा।

धीरज और उसके मित्रों नें तीसमारखाँ की बात मान ली।उसका बीमारी में पूरा खयाल रखा।पूरी तरह स्वस्थ करने के लिए धीरज और उसके मित्रों नें काफी प्रयास किये।डाकू तीसमारखाँ अब पूरी तरह से बदल गया था।उसने देखा कि किस तरह उन बच्चों नें सब कुछ जानने के बाद भी बीमारी से उबरने में उसकी मदद की।उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे।तीसमारखाँ नें अपना हुलिया ठीक किया।घनी डरावनी मूँछों को साफकर सभ्य नागरिक की तरह वो बच्चों के सामने आया।बच्चे खुशी से झूम उठे।अब गाँव में तीसमारखाँ नें लोगों की मदद करना शुरू कर दिया।मेहनत करके पेट भरने लगा।गाँव एक बार फिर से खुशहालपुर हो गया।


अल्पना नागर

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