Thursday 13 April 2023

नींद में होना

 नींद में होना


अधिकतर नींद में होती हूँ

चलती हूँ, बात करती हूँ

खाना बनाती हूँ

हँसती हूँ नाचती हूँ

मुखौटे चुनती हूँ

भेड़ों के बीच भेड़ बन

खुद को सहज पाती हूँ,

किसी भी बात का कोई अर्थ है या नहीं

मैं सरोकार नहीं रखती

मगर अर्थ पाने के नए आयाम खोजती हूँ

अजीब है मगर सत्य है

'अर्थ' के बिना

जीवन का अर्थ निरर्थक है !


नींद मुझे प्रिय है

नींद में नकार सकती हूँ

'अवाँछनीय एपिसोड'

अस्वीकृत कर सकती हूँ

स्वीकृत यथार्थ को

घटनाओं को अपने हिसाब से

तोड़ मरोड़ सकती हूँ

अनदेखा कर सकती हूँ वो रास्ते

जिनपर चलकर गुजार दिया

जीवन का अधिकांश हिस्सा,



नींद की दुनिया घिरी होती है

कुहासे की मोटी परत से

कभी न छँटने वाला कुहासा

सुना है,कुहासे के उस पार है 

सवेरा

चमकीला सूरज

और जागृत अवस्था

मैं अक्सर खुद को पाती हूँ

इन दोनों के बीच

और महसूस करती हूँ कि

कुहासे के इस पार और उस पार की दुनिया में

अब ज्यादा भेद नहीं रहा

इसलिए पूरे होशोहवास में चुनती हूँ

नींद की बेसुध दुनिया!



नींद में स्पष्ट नजर नहीं आते चेहरे

न समझ आती हैं आवाजें

बस कुछ चलती फिरती आकृतियां

क्षणभर में आकार बदलती घटनाएं

नींद में असामान्य चीजें भी

नजर आती हैं सामान्य,

स्पष्ट चेहरे और परिचित आवाजें

चौंकाती हैं

इसलिए नींद बेहतर है !


पर अफसोस कि

नींद में नहीं लिख सकती कविताएं !

नींद कविताएं पसंद नहीं करती

और कविताएं नींद को पसंद नहीं करती

वो खींचकर ले आती हैं

कुहासे के उस पार/

डालती हैं बाल्टी भर

ठंडा पानी

सुबकियां आने तक,

दिखाती हैं अपने नजरिये से

नया सूर्योदय

खुली हुई खिड़कियां

और मुँह छुपाता कुहासा,


बस यही फ़र्क है

जीवन और मृत्यु के बीच

मैं जब नींद में नहीं होती

कविताएं लिखती हूँ..!

-अल्पना नागर

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