Friday 16 December 2016

चादर

चादर

सर्द हवाओं के कम्बल में
गरीबी के छिद्र से झांकती भूख
पूछ रही है शायद
कोई बतायेगा !
आखिर किस जगह रहती है
रंगो और उमंगों की धूप..?
ठहरी हुई पुतलियों से
बहती वेदना
आसमां को तकते हुऐ
कर रही है
कुछ यक्ष प्रश्न..
क्या कोई और भी है
तुझसे भी ज्यादा शक्तिमान ?
जिसके आगे असहाय है
तेरी नीली छतरी !
दुख की एक चादर दी
मैली कुचैली फटी पुरानी
बाँट ली
आधी आधी..
न शिकन,न चुभन,न थकन !
बुझी हुई आँखों में
टिमटिमाते आस्था के दीप
रोशन कर रहे
संसार भर के आधे अंधियारे को,
लेकिन फ़िर भी..आह !
फुटपाथ पर भाग्य की टक्कर खाकर
उठ खड़ी हुई रेंगती सांसे..
पैबंद लगी झोली में
जिजीविषा के टुकडों को थामे
निकल पड़ी
एक नये दिन की
तलाश में
पाषाण इरादों को
कड़ी मेहनत की
धूप दिखाने...

अल्पना नागर









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