Monday 19 December 2016

लघुकथा -निर्णय

लघुकथा
निर्णय

एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गई,ढेर सारे प्रशस्ति पत्र...यूनिवर्सिटी टॉपर..हमेशा A ग्रेड...शादी के क़रीब 5 साल बाद उसने पुरानी अटैची में बंद सपनों को बाहर निकाला।
ड्रेसिंग के सामने खड़े होकर चेहरे के बायें हिस्से में आयी सूजन को निहारने लगी,हमेशा की तरह कन्सीलर बाहर निकाला और आहिस्ता से उस काले हिस्से को ढक दिया,सब कुछ सामान्य दिखने लगा।
बीती रात की बातें उसके दिमाग में घूमने लगी।
"तू मारना चाहती है ना मुझे हर्ट अटैक से ?एक काम ठीक से नहीं कर सकती.. इतना तेल भरा है ब्रेड पकौड़े में.."
टेबल क्लॉथ खींचकर नीचे फेंक दिया।एक जोरदार चाँटा उसके गाल पर पड़ा,अगले ही क्षण छन्न की आवाज़ के साथ तश्तरी, ब्रेड पकौड़े,जैम,नमक,चम्मच,काँच के ग्लास सब नीचे बिखरे पड़े थे।
वो सूखे पत्ते की तरह कांपते हुऐ बिखरी चीजें समेटने लगी।
तभी सास की आवाज़ सुनकर उसकी तंद्रा टूटी।
"बहु आज वट सावित्री का व्रत है तेरा ,पूजा की तैयारियाँ शुरू कर दे।"
"जी माँ जी मुझे ध्यान है,मैं ज़रा पास ही की दुकान से पूजा की सामग्री ले आती हूँ ।"
रास्ते में जाते हुऐ बहुत सारे ख़याल उसके दिमाग से गुजर रहे थे।
"देख बहु तू जानती है मेरा बेटा दिल का बुरा नहीं है,बस उसका स्वभाव थोड़ा गरम है गुस्सा जल्दी आ जाता है तू चुप ही रहा कर..वैसे भी महीने में 3-4 बार ही तो मारता है ।"सास नें कहा।
"बेटी तेरी बात सुनकर बहुत बुरा लगा पर अब 'बींध गये सो मोती'...एडजस्ट करना सीख ले..पूरी उम्र निभाना है तुझे ।"माँ नें कहा।
"छोटी ,देख मैंने जीजू से बात की थी,पर तू भी जानती है उनका स्वभाव ही ऐसा है,अपनी गृहस्थी तू ही सम्भाल सकती है ,संस्कारी लड़कियाँ घर की देहरी से बाहर बातें लेकर नहीं जाती।"
बड़े भाई नें कहा।
घर से कुछ क़दम की दूरी पर कोहरे से झांकती हुई पुलिस चौकी मुँह चिढाती हुई दिखाई दे रही थी।न जाने कितनी बार उसके क़दम चौकी के ठीक नज़दीक जाकर भी लौट आते थे।
घर की इज्ज़त,तथाकथित संस्कार और सावित्री के समर्पण को पोटली में समेटे आज वो रिपोर्ट लिखवाने में व्यस्त थी।

अल्पना नागर 

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