Thursday, 22 December 2016

मेरे तुम्हारे बीच

कितनी बातें होती हैं दिनभर
मेरे तुम्हारे बीच..
मैं चेतना की आँखें बँद कर
महसूस करती हूँ
तुम्हारा सामीप्य
घंटे बीत जाते हैं
सेकेंड्स का आभास कराकर..
बातों बातों में
एकांत की खिड़की खुलती है
आसमान के पार
एक खूबसूरत से ग्रह में
जहाँ तितलियां पंछी पेड़
अभिव्यक्तियां..
सब होते हैं बंधनमुक्त,
औपचारिकता की सीमाओं से परे
सहज,सरल देश में
हम होते हैं आमने सामने
और दिनभर की थकन
जैसे छूमंतर...
सच बताना,क्या कोई जादू है
मेरे तुम्हारे बीच !
प्लेटोनिक लव की रंगीन दुनिया में
नृत्य करने लगती हैं
उत्साह की लहर पर सवार
ज़िंदगी की धड़कनें...
हम तुम क़दम रखते हैं
सितारों पर एक एक कर और
बजने लगती है
पियानो सी धुन
अहा! खुशी से लबालब
उत्सवी धुन..
अक्सर सो जाया करती हूँ मैं
चाँद का सिरहाना बनाकर
तुमसे बात करते करते..
जानते हो ?
मैं क्यूं आती हूँ बार बार
इस दुनिया में तुम्हारे संग!
क्यूंकि..
यहाँ गुम नहीं होते बिम्ब
प्रतिबिंबो के बीच रहकर..!
और जानते हो
यहाँ धरती सिकुड़ती नहीं है
आसमान के बड़ा हो जाने पर..!
कुछ भी तो सामान्य नहीं
मेरे तुम्हारे बीच..
सब कुछ यहाँ असामान्य..
पर हाँ, यही तो पसंद है हमें
हमेशा से..है ना ?
मेरा तुम्हारा साथ
बिल्कुल दिवास्वप्न सा
एक पुस्तक और पाठक सा
जिसमें झिझक और असहजता का
कोई स्थान नहीं..
एक दूसरे के लिये पर्याप्त,
अजस्र सुकून का झरना कोई,
एक बात बताना
क्या कोई और परग्रही आ पायेगा
मेरे तुम्हारे बीच?
कभी नहीं...

अल्पना नागर ✏

2 comments:

  1. वाह्ह्ह् बहुत खूब । बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार दीप जी..

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