आलेख
परेशानी का सुख
आज के सुविधाभोगी समय में कौन होना चाहता है परेशान ! और कौन होगा भला जो परेशानी में भी सुख की तलाश करे ! ये तलाश बड़ी अजीबोग़रीब है।इसे उलटबांसी जैसा कथ्य कहा जा सकता है।एकबारगी तो सुनकर ही ये आभास होता है कि कहीं हमने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया।शीर्षक कुछ और तो नहीं..कहीं टंकण त्रुटि तो नहीं हो गई..!
आराम में सुख की तलाश तो हर कोई करता है।लेकिन अजीब बात है..गौरतलब है कि जिंदगी में जितना अधिक आराम मिला,जितनी अधिक सुविधाएं मिली उतना ही सुख दूर होता चला गया..गोया कि सोने चांदी की रखवाली करते वक्त रातों की नींद उड़ना स्वाभाविक है।आराम की अलमारी में सुविधाएं तो भर दी हमनें लेकिन सुकून की चाभी कहीं भूल आये! रही बात परेशानी में सुख ढूंढने की तो ये सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन है बहुत गूढ़ अर्थ लिए हुए।चाहो तो आजमा कर देख लो,जिस दिन परेशानी भरे लम्हों में सुख की तलाश करना शुरू कर दोगे..जिंदगी के मायने ही बदल जाएंगे।ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे कीचड़ से लबालब भरे तालाब में कमल का खिलना।उस सुख की आप कल्पना भी नहीं कर सकते जो परेशानी भरे लम्हों से चुराया हुआ होता है।अगर हम अपने आसपास नजरें दौड़ाए तो हम देखेंगे कि बहुत से लोग और संस्थाएं ऐसी हैं जो सचमुच परेशानी में भी सुख तलाशने और सुकून देने जैसा नेक काम कर रही हैं।ज्यादा दूर न जाया जाए..हम अपने घर में भी देखें तो एक इंसान है जो रात दिन अपने सुख का बलिदान करके दूसरों के लिए सुख और सुकून अर्जित करने का माध्यम बनता है..जी,हाँ.. हमारी माँ जो बिना कोई नागा किये हर दिन हमें सुख की अनुभूति कराती है।वो भली भाँति जानती है परेशानी का सुख क्या होता है ! शायद मदर टेरेसा जो कि इंसानियत की सेवा सुश्रुसा करने के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हैं..अमर हैं..उन्हें 'मदर' की उपाधि इसी वजह से दी गई होगी।इसी तरह पिता जो कि जिंदगी भर दौड़ धूप करते हैं परेशान होते हैं ताकि संतति के लिए सुख उपलब्ध करा सके।थोड़ा और आगे जाएं तो आसपास के पेड़ पौधों को ही देखिए,कभी देखा है उन्हें भेदभाव करते हुए या पत्थर फेंकने का बदला पत्थर फेंककर पूरा करते हुए ! उन्हें तो हमनें उम्रभर फल फूल ही देते देखा है।उनसे बेहतर कौन जानेगा परेशानी में सुख देने का अर्थ ! हमारे समाज में भी अगर नजर घुमाएं तो देखेंगे कि किस तरह डॉक्टर्स अपनी परवाह किये बगैर समाज के हित में परेशानी मोल लेते हैं..किसी मरीज की जान बचाकर जो सुख उन्हें मिलता है वो शब्दों में बयां नहीं हो सकता शायद इसीलिए उन्हें भगवान की उपाधि दी गई है।इसी तरह सीमा पर हर घड़ी तैनात सैनिक तपती धूप हो या माईनस पचास डिग्री तापमान वो परेशानी झेलते हैं किसलिए..!ताकि हम लोग आराम से सुख के साथ निडर होकर जीवनयापन करें।आपने एक शब्द सुना होगा 'व्हिसल ब्लोअर'।वे व्यक्ति जो स्वयं की परवाह किये बैगर समाज की विसंगतियों को उजागर करते हैं,बिना किसी डर और हिचक के सामने आते हैं..व्यवस्था की पोल खोलते हैं,बदले में चाहे उन्हें गोली ठोककर मार दिया जाए या बम से उड़ा दिया जाए वो लेशमात्र भी इस बात पर विचार नहीं करते या करते भी होंगे तो उनके लिए 'स्व' से ऊपर 'हम' का भाव ज्यादा महत्वपूर्ण होता होगा जिसकी खातिर वो परेशानी उठाते हैं और मौत की पगडंडी पर चलने से भी हिचकते नहीं ! क्या इनका कोई परिवार नहीं होता होगा,पत्नी या प्रेमिका नहीं होती होगी..कोई भी जो इनके मार्ग को अवरुद्ध कर सके।देशहित या परहित जब स्वहित से ऊपर उठ जाता है तब इस तरह के निःस्वार्थ नायक पैदा होते हैं।वो लोग बेजान वस्तुओं जैसा जीवन जीना पसंद नहीं करते अपितु सजीव होकर निर्भीक मौत का चयन करते हैं।ये बिल्कुल आवश्यक नहीं कि इस राह में मौत या गुमनामी मिले लेकिन इस बात से बेपरवाह होकर जीना ही असल मायनों में जीना है..इसी में सुख है सुकून है।कुछ वर्ष पूर्व सुर्खियों में थी माल्टा की एक खोजी पत्रकार गाजीलिया जो कि 'रनिंग कमेंट्री' नाम से ब्लॉग भी चलाती थी।उसने देश में प्रचलित भ्रष्ट व्यवस्था और अधिकारियों की पोल खोलने के लिए रात दिन एक कर दिए।वो परेशान थी अपने देश की दीमकों से जिन्होंने नीचे ही नीचे देश को पूरी तरह खोखला कर दिया था।एक के बाद एक चौंकाने वाले तथ्य जुटाकर ला रही थी कि एक दिन उसकी कार को बम से उड़ा दिया गया।वो चली गई सदा के लिए..अपने पीछे कुछ सवाल छोड़कर।लोगों को जाग्रत करने के उद्देश्य में सफल रही भले ही इस समस्त घटनाक्रम में उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।खैर ये तो सिर्फ एक उदाहरण है,दुनिया भरी पड़ी है ऐसे लोगों से जो रोज इस तरह की परेशानी में सुख की तलाश के लिए निकलते रहते हैं,कभी राह चलते लावारिस अनाथ बच्चों के पालन पोषण का जिम्मा उठाते हैं तो कभी बेजुबान निरीह पशुओं की देखभाल का बीड़ा उठाते हैं।आखिर परेशानी की कीमत ही क्या है सिर्फ थोड़ा बहुत सुकून और क्या..!
किसी भी चीज का असली मूल्य उसे पाने के संघर्ष में छुपा होता है।वर्षभर कड़ी मेहनत की परेशानी झेलने के बाद ही विद्यार्थी अच्छे अंकों व सफलता का सुख महसूस कर पाते हैं,जैसे जेठ की तपती गर्मी के बाद राहत की बूँदों का बरसना और एक एक बूँद को अमृत की तरह महसूस करना।ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे कड़ी धूप में तपने के बाद किसान द्वारा अपनी लहलहाती फसल को देख सुकून की अनुभूति करना।अगर जेहमत न उठाई गई होती तो शायद संसार का कोई भी अविकसित या विकासशील देश आजादी का सुख देख नहीं पाता।रंगभेद की क्रूर दासत्व प्रवृति से मुक्त नहीं हो पाता।
अभी कुछ रोज पहले अखबारों और सोशल मीडिया पर खबर वायरल थी।महामारी के इस दौर में जहाँ लोग अपनी जान बचाये घरों में कैद हैं..कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस संकट की घड़ी में दूसरों के लिए अपना कीमती वक्त और ऊर्जा समर्पित कर रहे हैं।एक सरदार जी हैं जो दिनभर ढेरों रोटियां बनाकर जरूरतमंदों को ढूंढ ढूंढ कर बाँट रहे हैं..इन्हें क्या आवश्यकता आ पड़ी थी ये सब करने की वो भी महामारी के इस खौफ़नाक समय में ! लेकिन अभी भी इंसानियत बची हुई है जो परेशानी में ही सुख तलाश करती है।इन्हें ईश्वर के बंदे कहें तो कोई
अतिशयोक्ति नहीं होगी।इसी तरह कुछ और लोग भी हैं जो इस महामारी में मृत्यु का ग्रास बने उन लोगों को जिन्हें उनके अपने परिवार वाले भी भय के मारे लावारिस छोड़ देते हैं उन्हें पूरे विधि विधान और संस्कार के साथ अंतिम क्रियाकर्म में महती भूमिका अदा कर रहे हैं बिना अपनी जान की परवाह किये।दुनिया अभी अच्छे लोगों से खाली नहीं हुई है।सच बात तो ये है कि परेशानी में सुख ढूंढ पाना हर एक के बस की बात नहीं है।कोई भी व्यर्थ जेहमत नहीं उठाना चाहता।लोग बस जी रहे हैं जीवन किसी तरह अपने तक सीमित रहकर।परेशानी से उसी तरह बचकर निकल जाते हैं जैसे सड़क पर कुचला गया कोई आदमी या सरे राह गोलियों से भुन कर अंतिम सांस गिनता कोई अभागा !हमें कोई दरकार नहीं किसी भी व्यर्थ के पचड़े में पड़ने की।दुनिया जैसे चल रही है चलने दो!परेशानी में सुख तलाशकर कौन मुसीबत मोल लेगा ! काश अगर परेशानी का सुख अनुभूत करने जैसी छोटी मगर बेहद जरूरी बात अगर सभी को समझ आ जाये तो शायद दुनिया की आधी से अधिक समस्याएं तो यहीं खत्म हो जाएं।एक नई दुनिया हमें देखने को मिले जिसमें प्रेम,समर्पण और विश्वास का मजबूत रिश्ता कायम हो सके।स्वार्थ के घेरे से निकलकर निःस्वार्थ राह की ओर कदम बढ़ें तो सबकुछ बदला हुआ नजर आएगा।कथनी और करनी के अंतर को दूर कर सचमुच परेशानी में भी सुख ढूंढा जाए तो जीवन मूल्यों में भी आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले।
अल्पना नागर
परेशानी का सुख
आज के सुविधाभोगी समय में कौन होना चाहता है परेशान ! और कौन होगा भला जो परेशानी में भी सुख की तलाश करे ! ये तलाश बड़ी अजीबोग़रीब है।इसे उलटबांसी जैसा कथ्य कहा जा सकता है।एकबारगी तो सुनकर ही ये आभास होता है कि कहीं हमने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया।शीर्षक कुछ और तो नहीं..कहीं टंकण त्रुटि तो नहीं हो गई..!
आराम में सुख की तलाश तो हर कोई करता है।लेकिन अजीब बात है..गौरतलब है कि जिंदगी में जितना अधिक आराम मिला,जितनी अधिक सुविधाएं मिली उतना ही सुख दूर होता चला गया..गोया कि सोने चांदी की रखवाली करते वक्त रातों की नींद उड़ना स्वाभाविक है।आराम की अलमारी में सुविधाएं तो भर दी हमनें लेकिन सुकून की चाभी कहीं भूल आये! रही बात परेशानी में सुख ढूंढने की तो ये सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन है बहुत गूढ़ अर्थ लिए हुए।चाहो तो आजमा कर देख लो,जिस दिन परेशानी भरे लम्हों में सुख की तलाश करना शुरू कर दोगे..जिंदगी के मायने ही बदल जाएंगे।ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे कीचड़ से लबालब भरे तालाब में कमल का खिलना।उस सुख की आप कल्पना भी नहीं कर सकते जो परेशानी भरे लम्हों से चुराया हुआ होता है।अगर हम अपने आसपास नजरें दौड़ाए तो हम देखेंगे कि बहुत से लोग और संस्थाएं ऐसी हैं जो सचमुच परेशानी में भी सुख तलाशने और सुकून देने जैसा नेक काम कर रही हैं।ज्यादा दूर न जाया जाए..हम अपने घर में भी देखें तो एक इंसान है जो रात दिन अपने सुख का बलिदान करके दूसरों के लिए सुख और सुकून अर्जित करने का माध्यम बनता है..जी,हाँ.. हमारी माँ जो बिना कोई नागा किये हर दिन हमें सुख की अनुभूति कराती है।वो भली भाँति जानती है परेशानी का सुख क्या होता है ! शायद मदर टेरेसा जो कि इंसानियत की सेवा सुश्रुसा करने के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हैं..अमर हैं..उन्हें 'मदर' की उपाधि इसी वजह से दी गई होगी।इसी तरह पिता जो कि जिंदगी भर दौड़ धूप करते हैं परेशान होते हैं ताकि संतति के लिए सुख उपलब्ध करा सके।थोड़ा और आगे जाएं तो आसपास के पेड़ पौधों को ही देखिए,कभी देखा है उन्हें भेदभाव करते हुए या पत्थर फेंकने का बदला पत्थर फेंककर पूरा करते हुए ! उन्हें तो हमनें उम्रभर फल फूल ही देते देखा है।उनसे बेहतर कौन जानेगा परेशानी में सुख देने का अर्थ ! हमारे समाज में भी अगर नजर घुमाएं तो देखेंगे कि किस तरह डॉक्टर्स अपनी परवाह किये बगैर समाज के हित में परेशानी मोल लेते हैं..किसी मरीज की जान बचाकर जो सुख उन्हें मिलता है वो शब्दों में बयां नहीं हो सकता शायद इसीलिए उन्हें भगवान की उपाधि दी गई है।इसी तरह सीमा पर हर घड़ी तैनात सैनिक तपती धूप हो या माईनस पचास डिग्री तापमान वो परेशानी झेलते हैं किसलिए..!ताकि हम लोग आराम से सुख के साथ निडर होकर जीवनयापन करें।आपने एक शब्द सुना होगा 'व्हिसल ब्लोअर'।वे व्यक्ति जो स्वयं की परवाह किये बैगर समाज की विसंगतियों को उजागर करते हैं,बिना किसी डर और हिचक के सामने आते हैं..व्यवस्था की पोल खोलते हैं,बदले में चाहे उन्हें गोली ठोककर मार दिया जाए या बम से उड़ा दिया जाए वो लेशमात्र भी इस बात पर विचार नहीं करते या करते भी होंगे तो उनके लिए 'स्व' से ऊपर 'हम' का भाव ज्यादा महत्वपूर्ण होता होगा जिसकी खातिर वो परेशानी उठाते हैं और मौत की पगडंडी पर चलने से भी हिचकते नहीं ! क्या इनका कोई परिवार नहीं होता होगा,पत्नी या प्रेमिका नहीं होती होगी..कोई भी जो इनके मार्ग को अवरुद्ध कर सके।देशहित या परहित जब स्वहित से ऊपर उठ जाता है तब इस तरह के निःस्वार्थ नायक पैदा होते हैं।वो लोग बेजान वस्तुओं जैसा जीवन जीना पसंद नहीं करते अपितु सजीव होकर निर्भीक मौत का चयन करते हैं।ये बिल्कुल आवश्यक नहीं कि इस राह में मौत या गुमनामी मिले लेकिन इस बात से बेपरवाह होकर जीना ही असल मायनों में जीना है..इसी में सुख है सुकून है।कुछ वर्ष पूर्व सुर्खियों में थी माल्टा की एक खोजी पत्रकार गाजीलिया जो कि 'रनिंग कमेंट्री' नाम से ब्लॉग भी चलाती थी।उसने देश में प्रचलित भ्रष्ट व्यवस्था और अधिकारियों की पोल खोलने के लिए रात दिन एक कर दिए।वो परेशान थी अपने देश की दीमकों से जिन्होंने नीचे ही नीचे देश को पूरी तरह खोखला कर दिया था।एक के बाद एक चौंकाने वाले तथ्य जुटाकर ला रही थी कि एक दिन उसकी कार को बम से उड़ा दिया गया।वो चली गई सदा के लिए..अपने पीछे कुछ सवाल छोड़कर।लोगों को जाग्रत करने के उद्देश्य में सफल रही भले ही इस समस्त घटनाक्रम में उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।खैर ये तो सिर्फ एक उदाहरण है,दुनिया भरी पड़ी है ऐसे लोगों से जो रोज इस तरह की परेशानी में सुख की तलाश के लिए निकलते रहते हैं,कभी राह चलते लावारिस अनाथ बच्चों के पालन पोषण का जिम्मा उठाते हैं तो कभी बेजुबान निरीह पशुओं की देखभाल का बीड़ा उठाते हैं।आखिर परेशानी की कीमत ही क्या है सिर्फ थोड़ा बहुत सुकून और क्या..!
किसी भी चीज का असली मूल्य उसे पाने के संघर्ष में छुपा होता है।वर्षभर कड़ी मेहनत की परेशानी झेलने के बाद ही विद्यार्थी अच्छे अंकों व सफलता का सुख महसूस कर पाते हैं,जैसे जेठ की तपती गर्मी के बाद राहत की बूँदों का बरसना और एक एक बूँद को अमृत की तरह महसूस करना।ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे कड़ी धूप में तपने के बाद किसान द्वारा अपनी लहलहाती फसल को देख सुकून की अनुभूति करना।अगर जेहमत न उठाई गई होती तो शायद संसार का कोई भी अविकसित या विकासशील देश आजादी का सुख देख नहीं पाता।रंगभेद की क्रूर दासत्व प्रवृति से मुक्त नहीं हो पाता।
अभी कुछ रोज पहले अखबारों और सोशल मीडिया पर खबर वायरल थी।महामारी के इस दौर में जहाँ लोग अपनी जान बचाये घरों में कैद हैं..कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस संकट की घड़ी में दूसरों के लिए अपना कीमती वक्त और ऊर्जा समर्पित कर रहे हैं।एक सरदार जी हैं जो दिनभर ढेरों रोटियां बनाकर जरूरतमंदों को ढूंढ ढूंढ कर बाँट रहे हैं..इन्हें क्या आवश्यकता आ पड़ी थी ये सब करने की वो भी महामारी के इस खौफ़नाक समय में ! लेकिन अभी भी इंसानियत बची हुई है जो परेशानी में ही सुख तलाश करती है।इन्हें ईश्वर के बंदे कहें तो कोई
अतिशयोक्ति नहीं होगी।इसी तरह कुछ और लोग भी हैं जो इस महामारी में मृत्यु का ग्रास बने उन लोगों को जिन्हें उनके अपने परिवार वाले भी भय के मारे लावारिस छोड़ देते हैं उन्हें पूरे विधि विधान और संस्कार के साथ अंतिम क्रियाकर्म में महती भूमिका अदा कर रहे हैं बिना अपनी जान की परवाह किये।दुनिया अभी अच्छे लोगों से खाली नहीं हुई है।सच बात तो ये है कि परेशानी में सुख ढूंढ पाना हर एक के बस की बात नहीं है।कोई भी व्यर्थ जेहमत नहीं उठाना चाहता।लोग बस जी रहे हैं जीवन किसी तरह अपने तक सीमित रहकर।परेशानी से उसी तरह बचकर निकल जाते हैं जैसे सड़क पर कुचला गया कोई आदमी या सरे राह गोलियों से भुन कर अंतिम सांस गिनता कोई अभागा !हमें कोई दरकार नहीं किसी भी व्यर्थ के पचड़े में पड़ने की।दुनिया जैसे चल रही है चलने दो!परेशानी में सुख तलाशकर कौन मुसीबत मोल लेगा ! काश अगर परेशानी का सुख अनुभूत करने जैसी छोटी मगर बेहद जरूरी बात अगर सभी को समझ आ जाये तो शायद दुनिया की आधी से अधिक समस्याएं तो यहीं खत्म हो जाएं।एक नई दुनिया हमें देखने को मिले जिसमें प्रेम,समर्पण और विश्वास का मजबूत रिश्ता कायम हो सके।स्वार्थ के घेरे से निकलकर निःस्वार्थ राह की ओर कदम बढ़ें तो सबकुछ बदला हुआ नजर आएगा।कथनी और करनी के अंतर को दूर कर सचमुच परेशानी में भी सुख ढूंढा जाए तो जीवन मूल्यों में भी आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले।
अल्पना नागर
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