Wednesday, 1 July 2020

जुलाई

जुलाई

काश कि जुलाई में
बरसाती ओढ़ खड़ी हो
मखमली अहसास वाली 
फरवरी..!
काश कि आसमान में
करीब आ जाएं
'सोशल डिस्टेंसिंग' लिए
छितरे हुए बादल और
बरस पड़े उनमें 
छुपी हुई आत्मीयता..!
खुले नल बादलों के
बहा ले जाएं
उन्नीस बीस का कचरा..!
फिर से दिखे
इठलाती हुई
कागज की नाव कोई,
खिड़कियों से झाँके
खोया हुआ बचपन ..!
कि निकाल फेंके
डर और हिचक की
जमी हुई पॉलीथिन
रुक न पाए इस बार
बहता हुआ पानी कोई !
काश कि जुलाई में
खुल जाए बंद कपाट
अविश्वास के..!
फिर आये
कोई अतिथि द्वार पर,
चाय की महक में
घुल जाए
अदरक सी 
पुरानी यादें,
कैरम वाले ठहाके
कुछ बेईमानियां लूडो सी..
चलो इस बार भूल जाये
अंकों का गणित,
सांप सीढ़ी सी उलझने..!
याद अगर रखें तो
सिर्फ जुलाई
और आसमान की
बदलियां..!

अल्पना नागर

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