लैम्प पोस्ट
ये रात के अंतिम पहर की
आखिरी ट्रेन है शायद
डिब्बों में सवार
चुप्पी उतर रही है
एक एक कर..
स्टेशन खाली है
कोई नहीं है वहाँ..सिवाय
एक ऊँघती बुकस्टाल और
प्रतीक्षा सीट के..
जिसपर मौजूद है पहले से
अगल बगल मुँह लटकाए बैठी
उदासीनता का झुंड..!
सीट के नीचे
बिखरे पड़े
कई जोड़ी जूते
व्यस्त हैं बातचीत में..
उनमें दिखाई देती है व्यग्रता
शीघ्रातिशीघ्र अन्यत्र जाने की..!
मैं शायद पता भूल गई हूँ
जाना कहाँ है/
कहाँ से आई हूँ/
और सबसे जरूरी सवाल
क्या करने आई हूँ !
खैर,कोई नई बात नहीं..
दूसरे काम भी अब तक
करती आई हूँ 'यूँ ही'..!
बिना किसी उत्तर की
प्रतीक्षा के..
क्योंकि करना होता है बस,
रेंगती चुप्पियों का
हिस्सा बनना होता है बस..!
फिर भी पूछ रही हूँ सवाल/
खालीपन से
लौट कर आ रहे हैं
वही सवाल मेरी ओर/
जैसे खाली कुँए से
लौटकर आता है
खाली घड़ा और
खाली आवाजें..!
स्टेशन पर रेंग रही
चुप्पी निकल गई है
सिर नीचा किये..
बिना कोई जवाब दिए/
बचा हुआ है सिर्फ एक
पीली रोशनी वाला लैम्प पोस्ट/
बेजुबानों की
एकमात्र शरणस्थली..
जो ओढ़ते हैं
उसी पीली रोशनी का कंबल/
जमाने भर से
दुत्कारे जाने के बाद..!
ठिठुरते शीत युग में
उम्मीद भरी
रोशनी और गरमाहट लिए/
अंधेरे को दूर तक
खदेड़ता
पीली रोशनी वाला
लैम्प पोस्ट..!
जैसे सुकून देती कोई
आत्मीय कविता..!
पीली रोशनी वाला
लैम्प पोस्ट
शायद बता दे पता
मेरी उलझनों का/
रिक्त सवालों का..!
लैम्प पोस्ट नें
किया है इशारा
उसी आखिरी ट्रेन की ओर/
आखिरी गंतव्य से आगे
एक नया रास्ता है..
अनदेखा/
अनचीन्हा/
जहाँ से जाना है पैदल
नितांत अकेले..!
अल्पना नागर
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर सृजन। चिट्ठा अनुसरणकर्ता बटन उपलब्ध करायें।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत गहन भाव रचना संवेदनाओं को समेटे मन के क्षुब्ध कोने का मंथन करती।
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