Thursday 15 December 2016

पिता

पिता

बस इतनी सी है
आपकी अहमियत
उसकी छोटी सी दुनिया में
कि महसूस करती है वो
प्रतिदिन
ऊषा की पहली किरण की तरह
आत्मिक उष्मा से घनीभूत
आपके आशीष को..
निरंतर गतिमान पृथ्वी की तरह
अपने अक्ष पर घूमती हुई
आपकी आत्मजा
यूँ तो सक्षम है
हरीतिमा
धारण किये
एक अलग दुनिया की
सार सम्हाल में व्यस्त...
किन्तु जब हो जाती है
एकाकी
अँधेरे कोने में सिमटी,
कुंठा के कण्टकों में उलझी
उजाड़ बियाबान...
न जाने उसी समय
कहाँ से
ऊर्जा से भरपूर
धूप प्रविष्ट करती है
उसके शीत मन के आँगन में !
और बिना एक क्षण की देरी के
ये मृतप्राय पृथ्वी
हो उठती है पुनः गतिमान
चटक सुनहरी धूप को पहने
इठलाती मुस्कुराती,
लहलहानें लगती है
उसके मन रूपी धरातल पर
उत्सवी धुन की फसल..
एक पुत्री स्वीकार करती है
वो पृथ्वी है
जिसे ऊर्जा के लिये
प्रतिक्षण आवश्यकता है
पितृ सूर्य की उपस्थिति की,
सृष्टि के साथ भी
और सृष्टि के बाद भी..

अल्पना नागर ✏








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