Saturday 31 December 2016

लघु कहानी -दुश्मन

दुश्मन

पिछले कुछ हफ्तों से घर में एक युद्ध छिडा हुआ था,रोज़ एक नई चिंता,नई नई तरकीब लगाना,हम लगभग हार चुके थे सारी ऊर्जा समाप्त हो चुकी थी।
मगर दुश्मन न जाने कौनसी एनर्जी ड्रिंक पीता था कि हमारी सारी योजनाएँ रखी रह जाती थी !पतिदेव का ऑफिस से आते ही एक ही सवाल होता था "क्या वो आज भी आया था ?"
इस बार दुश्मन के खिलाफ चौतरफा घेराबंदी कर पुख्ता इंतजाम किया गया,पति नें कहा -"अगर इस बार भी मेरी योजनाएँ असफल रही तो तुम मेरा नाम बदल देना।"
शाम को घर आने पर वही सवाल "क्या वो आज भी......???"
मेरा जवाब -"चम्पकलाल आप चाय के साथ बिस्किट लेंगे या टोस्ट ?"
"वॉट द हेक ! ये असम्भव है ,कैसे आ सकता है वो आज ?"
नीचे कुतर कर पड़े हुऐ सारे इंतजाम मुँह चिढा रहे थे। सबूत के तौर पर दुश्मन नें अपने चरण कमलों के निशान रसोई में हर जगह छोड़े हुऐ थे।हम लोग मान चुके थे कि उसका दिमाग सुपर कम्प्यूटर से भी तेज है और वो चाचा चौधरी का ही कुम्भ के मेले में बिछड़ चुका कोई भाई है !
शुरुआत में उसे सिर्फ़ चूहा समझने की गलती कर बैठे।बढ़िया वाली चूहेदानी का प्रबंध भी किया,क्यूंकि वो एक महानगरी चूहा था इसलिये उसके लिये रोटी की जगह स्वादिष्ट पेस्ट्री लगाई गई आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब देखा कि चूहेदानी से बड़ी ही सफाई के साथ पेस्ट्री गायब कर दी गई है, और एग्जास्ट फेन के रास्ते से वो कब का निकल चुका है।खैर अब दुकानदार को कोसने का कोई फायदा न था!
एग्जास्ट फेन को पूरी तरह बँद किया गया मगर वो कोई न कोई रास्ता ढूँढ ही लेता था और अपनी उपस्थिति हमेशा पैरों के ऊपर से गुजर कर जताता था जिसकी परिणिति 7वें फ्लोर तक जाने वाली चीख के रूप में होती थी।
अब वो हमारा फेमिली फ्रेंड बन चुका है,एक दिन भी अगर नहीं आता तो कुछ खालीपन सा महसूस होता है,हमनें हथियार डाल दिये हैं और मान चुके हैं कि हमारे घर पर हमसे पहले उसी का हक है!
वैसे मैं बता दूँ उसका रंग काला था बिल्कुल हमारे देश के काले धन जैसा!
प्रयास जारी हैं उसे बाहर निकालने के,आप भी कोशिश करिये.. हम भी करते हैं !

अल्पना नागर ✏

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