Sunday 27 February 2022

नाराज

 नाराज क्यों हो?


जानते हो

जब कोई होता है नाराज तो

घुल जाती है नाराजगी

हवा के कण कण में/

घुटने लगता है दम

घर की चौखट से लेकर 

दफ़्तर की चारदीवारी का..

फीकी लगने लगती है

सुबह की चाय/

बोझिल संवाद

बेस्वाद जिंदगी..

क्या पूछ सकती हूँ तुमसे

आखिर नाराज़ क्यों हो?


चलो करते हैं 

कुछ ऐसा कि

न रहे बांस और न बजे बाँसुरी

न रहे कोई मित्र

सगे संबधी परिवार या

नाराजगी का एक भी कारण..!!

या फिर यूँ भी कर सकते हैं

बदल डालें

स्वयं का नजरिया/

झाँककर देखे मन के आईने में

हर रोज..!


नहीं मालूम

कैसा लगता होगा

सदियों से आतताइयों की

महत्वाकांक्षा तले कुचली जाती

मां धरती को/

हृदय में पड़ी असंख्य दरारों को

और दरारों में खिलते

क्षमाशील उन फूलों को

जिन्हें तोड़ा जाता है हर दिन

पिरोया जाता है माला में

बिखेरा जाता है राहों में

लेकिन फिर भी

क्या मजाल

ये खिलना बंद कर दें!

क्या पूछ सकती हूँ मां धरती से

रहस्य क्या है

मुस्कुराहट का..!

क्यों नहीं होता असर तुमपे

दुनियावी तुनकमिजाजी का

आखिर क्यों नहीं होती नाराज?


-अल्पना नागर



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