लघु कहानी - उद्देश्य
सरकारी स्कूल के पास एक लग्जरी कार आकार रुकी।कार में से सत्ताधारी दल के कुछ नामचीन नेतागण उतरे।पिछली अन्य विजिट के मुकाबले इस बार उनकी वाणी में मिश्री से भी अधिक मिठास थी।
"सर आपको तो ज्ञात होगा कि हमारी पार्टी जब से सत्ता में आयी है सिर्फ जनसेवा के लिए ही प्रतिबद्ध है।जनसेवा के इसी सिलसिले को बरक़रार रखने के लिए हम आज एक प्रस्ताव आपके पास लाये हैं,उम्मीद है आपको कोई आपत्ति नहीं होगी।"मुख्य नेता नें आत्मविश्वास के साथ कहा।
"जी बिल्कुल..कहिये।"प्रधानाचार्य नें कहा।
"स्वतंत्रता दिवस नजदीक है..दरअसल हम चाहते हैं कि इस बार गरीबी रेखा से नीचे परिवार वाले उन सभी बच्चों का जन्मदिन मनाया जाये जिनका जन्म स्वतंत्रता दिवस को हुआ।देखिये..हमारा मानना है कि सभी को खुश रहने का अधिकार है,तो गरीब परिवार जन्मदिन मनाने जैसे अवसर से क्यों वंचित रहें! हम आपके विद्यालय आएंगे और उन बच्चों के लिए केक पेस्ट्री मिठाई आदि का प्रबंध करेंगे।"
"वाह ये तो बहुत नेक सोचा आपने,आपके सेवाभाव और नवीन सोच को नमन।"प्रधानाचार्य नें खुश होते हुए कहा।
"जी,हम निःस्वार्थ भाव से काम करते हैं,दूसरे राजनितिक दलों की तुलना में हमारे दल के उद्देश्य विशुद्ध है,हम सिर्फ कर्म करने में यकीन करते हैं।"मुख्य नेता नें गर्व के साथ कहा।
प्रधानाचार्य के कहने पर सभी कक्षाओं से उन बच्चों का चयन किया गया जिनका जन्मदिन स्वतंत्रता दिवस को होता है।बच्चों को प्रधानाचार्य के कक्ष में बुलाया गया।
मुख्य नेता नें अपनापन दिखाते हुए सभी बच्चों से हाथ मिलाया और आग्रह करते हुए कहा कि इस बार अपने जन्मदिन पर अपने माता पिता को जरूर साथ लेकर आना।
कक्ष में उपस्थित सभी कार्मिकों के आश्चर्य का ठिकाना न था।
"ठीक है,अब चलते हैं..आज्ञा दीजिये।"सेनेटाइजर से हाथ साफ करते हुए नेता नें कहा।
विद्यालय के मुख्य दरवाजे तक गाड़ी पहुंची ही थी कि आठवीं कक्षा के एक विद्यार्थी नें हाथ से इशारा कर रोकने का प्रयास किया।
"ये क्या तरीका है.."।कड़ककर नेता नें पूछा।
"सर वैरी सॉरी लेकिन जरुरी बात करनी थी।मैंने देखा आप इतने बड़े दिल के लोग हैं तो सोचा मेरी भी मदद करेंगे।"लड़के नें कहा।
"कहो.."
"सर मेरे पापा बहुत पहले ही गुजर गए थे,मैं लगभग दो साल का था..मेरी माँ घरों में झाड़ू पोंछा लगाकर मुझे और मेरी तीन छोटी बहनों को किसी तरह पढ़ा लिखा रही है।मैं हर बार कक्षा में प्रथम आता हूँ लेकिन अब मेरी माँ की तबियत बहुत ख़राब रहती है,इसलिए मुझे दुकान पर मजदूरी करने जाना होगा।अगर आप की कृपा हो तो मैं और मेरी छोटी बहनें आगे भी पढ़ लिख सकती हैं।"
"हां..हां.. देखते हैं ..देखते हैं..अब रास्ता छोड़ो अगले प्रोग्राम के लिए देर हो रही है।" कहकर नेता जी की गाड़ी आगे बढ़ गई।"
"ये सियासत भी पता नहीं क्या क्या दिन दिखाएगी..बात अगर मजदूरों के वोट की नहीं होती तो झांकता भी नहीं ऐसे सड़कछाप बच्चों की तरफ..अब इनका जन्मदिन मनाकर मीडिया में किसी तरह बात जाए तो हमारा उद्देश्य सफल हो..।"रास्ते भर नेताजी बड़बड़ाते रहे।
स्वरचित कॉपीराइट
अल्पना नागर
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