Sunday, 23 July 2017

कविता- शिवोहम

शिवोहम

मैं ही ध्वनि
मैं ही प्रकाश
मैं ऊर्जा पुंज
मैं ही विनाश
सृष्टि नियंता
मैं भ्रमहर्ता,
मैं शून्य से परे,
शून्य में निहित
पारदर्शी और
अभौतिक
मैं ही निरंतर
मैं अचल!
सर्व से जुड़ा
स्वयं से परे,
तम का नाशी,
अविनाशी
हर क्षण में हूँ
कण कण वासी,
मैं त्रयम्बकं
मैं गरल धारी
शिवोहम.. शिवोहम.. शिवोहम..

अल्पना नागर ©




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