बीस बीस की बातें
ये बराबरी का साल है
उन्नीस बीस के फर्क की नहीं
पूरे बीस बीस की बात है..
न एक कम.. न एक ज्यादा!!
बस हिसाब बराबर/
समय ताऊ खड़ा है इस बार
दरवाजे पर
लट्ठ लेकर..!
सीधी हो गई हैं
सबकी पीठ/
जिनके रीढ़ नहीं थी
वो भी उग आयी अचानक !
दुनिया जैसे बंद कमरा
कमरे में इक्कट्ठे ज्ञानी लोग
कर रहे चिंतन मनन
भजन कीर्तन..!
बस ये बंद कमरे तक की
बंद बातें हैं..
कमरा खुलते ही
फिर वही
घुड़दौड़..चूहादौड़/
जलता हुआ दौर..
दिशाभ्रमित
किसी नीरो की बंसी पर मुग्ध लोग
इधर से उधर बेसुध भागते हुए/
ये मामला है जमीं तक का..
अभी सितारों की बात होनी बाकी है
कि नसों में दौड़ रही है
सनसनी/
गर्दिश में डूबने की
बेताबी..!!
बीस बीस अभी कहाँ निपटा !
बहुत से जरूरी काम अभी बाकी हैं,
चुनौतियां तो चलती रहेंगी
अभी निपटाने हैं
ढेर सारे 'चैलेंजेज'..!
माफ करना
तुम्हारे हर जरूरी सवाल से पहले
मेरा एक ही सवाल है..
साल के अंत तक
पता लगाना ही है कि
'रसोड़े में आखिर कौन था..
कौन था..!'
-अल्पना नागर
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