शिक्षक
एक शिक्षक
तैयार करता है
कच्ची जमीन..
संभावना की मिट्टीयुक्त
थोड़ी नम जगह
ताकि हो सके अंकुरण आसान/
वो बंजर जमीन पर भी
बहाता है अपना पसीना
निरंतर करता है
निराई गुड़ाई..
वक्त के साथ होती जाती हैं
बंजर जमीन भी उर्वर/
लचकदार और हरित..
वो जानता है
कहाँ और कौनसी मिट्टी में
मौजूद हैं उर्वर गुण
खनिज तत्व और उससे भी बढ़कर
अंकुरण की तड़प..!
एक शिक्षक जानता है..
वो बस सींचता है
उस तड़प को
अपने अथक प्रयासों के पानी से..
एक शिक्षक बस इतना ही करता है !
वो पुनः लग जाता है
किसी अन्य जमीन की देखरेख में/
एक अरसे बाद जब गुजरता है
उन्हीं रास्तों से तो
देखता है अपनी सिंचित
लहलहाती फसल को..
उसकी खुरदुरी हथेलियों से
झांकने लगते हैं
अनगिनत सूरजमुखी/
शून्य आकाश के वक्ष पर
एक शिक्षक उगाता है
अनेक सूरज
ठीक वहाँ जहाँ
स्थाई रात का बसेरा हो/
एक शिक्षक बस इतना ही करता है..!
अल्पना नागर
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