*कालजयी सत्याग्रही मोहनदास करमचंद गांधी*
गांधीजी की भारत और समस्त विश्व को देन अगर गिनने बैठें तो बहुत सी हैं मसलन आजादी दिलाने के लिए दिन रात एक करना।दक्षिण अफ्रीका की गिरमिटिया प्रथा का अंत ,चंपारण की तीन कठिया प्रथा का अंत,भारत छोड़ो आंदोलन को गति दी,सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से बिना हिंसक हुए शांति से किस तरह प्रशासन से अपनी बात मनवाई जा सकती है इसका पाठ पढ़ाया।दांडी यात्रा कर नमक कानून तोड़ा,जो उस समय की स्थिति पर सटीक बैठता था।असहयोग आंदोलन एकदम नवीन प्रयोग था जिसने प्रशासन की नींद उड़ा दी थी।न केवल सामान्य नागरिक अपितु बड़ी संख्या में महिलाएं विद्यार्थी मजदूर आदि आजादी की इस पावन आहूति का हिस्सा बनने कूद पड़े थे।स्वयं गाँधीजी नें आजीवन फकीरों जैसा जीवन व्यतीत किया क्योंकि उन्हें भारत की दुर्दशा पर सचमुच क्षोभ था।वो मात्र सूती धोती में काम चलाते थे क्योंकि देश की अधिकतर जनता के पास पहनने को वस्त्र नहीं थे।क्या आज के समय में हमारे प्रतिनिधियों द्वारा ऐसा सोचा जाना भी संभव है !
गाँधीजी द्वारा दी हुई अमूल्य देनों में सबसे अधिक कीमती देन है सत्याग्रह।सत्याग्रह यानी सत्य के प्रति आग्रह।ब्रिटिश काल में जो अन्याय भारत वासियों के साथ हो रहा था उसके खिलाफ गाँधीजी नें एकदम अनूठा तरीका खोज निकाला जो कि युगों युगों तक याद रखा जाएगा,अमल किया जाएगा।सत्याग्रह की लड़ाई के दौरान ही गाँधीजी नें देश की आय एंव स्वावलम्बन की प्रक्रिया को सुचारू करने के लिए रचनात्मक कार्यों का तरीका निकाला जिसमें हथकरघा,लघु उद्योग प्रमुख हैं।सत्याग्रह शब्द कैसे बना इसके पीछे भी एक रुचिकर तथ्य है।गाँधीजी द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को एक निश्चित सार्थक नाम देने के उद्देश्य से आंदोलन के मुख्य समाचार पत्र 'इंडियन ओपिनियन' में एक विज्ञापन निकाला गया साथ ही सटीक नाम सुझाने वाले को पुरस्कृत करने की भी योजना बनाई।इसका मुख्य उद्देश्य आंदोलन से अधिक से अधिक स्वयंसेवी सक्रिय लोगों को जोड़ना भी था।गाँधीजी के एक चचेरे भाई के पुत्र थे मगनलाल गांधी वो गाँधीजी के साथ ही उनके फीनिक्स आश्रम में रहते थे।मगनलाल जी नें जो शब्द सुझाया था वो 'सदाग्रह' था।जिसका शाब्दिक अर्थ है सद के प्रति आग्रह।वस्तुतः यह शब्द आंदोलन की मूल भावना के निकट था लेकिन पूर्णतः सटीक न था।केवल अच्छी वस्तु के लिए आग्रह आंदोलन की मूल आत्मा को संकुचित कर सकता था।अतः उसे और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गाँधीजी नें जो नाम सुझाया वो था' सत्याग्रह'।उस दिन के बाद से ये शब्द गाँधीजी के आदर्शों व सिद्धांतो का दूसरा पर्याय बन गया।
सत्याग्रह का प्रयोग गाँधीजी नें सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में ही कर लिया था एक प्रयोग के तौर पर अन्याय के खिलाफ पहली जंग।जब रंगभेद के लिए उन्हें जिंदगी का सबसे कड़वा अनुभव हुआ।प्रथम श्रेणी की टिकट होने के बावजूद गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों नें उन्हें धक्का मारकर पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर उतार दिया।गाँधीजी की आत्मा लहूलुहान थी।इस तरह पराए देश में अपमानित होना उनके लिए अविस्मरणीय कटु अनुभव था।लेकिन उन्होंने वापस घर लौटने की प्रबल इच्छा होने के बावजूद भी उस प्रचलित अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी।बस उसी दिन से सूट बूट वाले मोहनदास करमचंद गाँधी के अंदर एक नए व्यक्ति का प्रवेश हुआ जो भारतीयों की तत्कालीन स्थिति को परिलक्षित करता था।वो हमारे बापूजी बनकर सामने आये।उस घटना के बाद एक और झकझोरने वाली घटना पुनः हुई।जब बग्घी में उनकी आरक्षित सीट के लिए भी उन्हें गोरे खलासी से मार खानी पड़ी।इस प्रकार दक्षिण अफ्रीका के उनके समूचे अनुभव में सत्याग्रह के शुरुआती लक्षण दिखाई देने लग गए थे।सत्याग्रह का अनुभव उन्हें अपने स्वयं के बचपन से सीखने को बहुत पहले ही मिल गया था।जब गाँधीजी नें पहली बार परिवार से छुपकर माँस भक्षण किया था जिसके पश्चाताप में उन्होंने अपने पिता को चिट्ठी लिखकर क्षमायाचना की थी।उस समय उनके पिता नें दुःखी होकर चिट्ठी पढ़ी,उनकी आँखों में आँसू थे।उन्होंने अपने पुत्र को न तो डाँटा न फटकारा और न ही एक शब्द भी कहा अपितु चिट्ठी फाड़कर फेंक दी।ये सामने वाले को अपने किये का अपरोध बोध कराने का नवीन किन्तु प्रभावकारी तरीका था।उनके पिता को मोहनदास द्वारा किये कृत्य पर अत्यधिक आघात पहुँचा किन्तु उन्होंने अपने पुत्र को दंडित न कर एक तरह से स्वयं को दंडित किया।मन ही मन कष्ट सहन किया।गाँधीजी नें सत्याग्रह का पाठ यहीं से सर्वप्रथम पढ़ा।गाँधीजी नें जितनी बार भी सत्याग्रह को अपनाया व जीवन में प्रयोग किया हर बार उस पर गहनता से चिंतन मनन किया।यह 'सत्य के साथ उनका प्रयोग' था।उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली तरीके से सत्य प्रेम व अहिंसा की ताकत को दुनिया के सामने रखा।यह एक असरकारी तरीका सिद्ध हुआ।1920-22 के असहयोग आंदोलन के समय जब आंदोलन चरम उफान पर था,तभी चौरी चौरा कांड की घटना से आहत गाँधीजी नें आंदोलन स्थगित करने का निर्णय किया।ये गाँधीजी के अपने उसूल थे,सिद्धांत थे जिनके खिलाफ वो स्वयं भी नहीं जा सकते थे।1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय विनयपूर्वक बिना किसी हिंसा के जिस तरह कानून की अवज्ञा की गई वो इतिहास बन गया।एक बड़ी संख्या में स्त्री पुरुष विद्यार्थियों,चिंतकों नें इसमें भाग लिया।इस समय धारसना,बारडोली,पेशावर आदि जगहों पर इसका विराट रूप देखने को मिला।
गाँधीजी द्वारा अपनाए गए सत्याग्रह सिद्धान्त को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है-
1- सत्याग्रह के लिए कायरता का परित्याग आवश्यक है।
2-सत्याग्रह में अन्याय की जड़ पर प्रहार करना बुद्धिमता है न कि अन्याय करने वाले पर।अन्याय करने वाला मात्र प्रचलित व्यवस्था का निमित है।
3- किसी भी देश व काल में अच्छे बुरे सभी लोग हो सकते हैं।पूर्वग्रहों से मुक्त होकर ही कार्य को समुचित रूप से अंजाम दिया जा सकता है।
4- ये बिल्कुल आवश्यक नहीं कि आप अन्यायी व्यक्ति को कष्ट दे।अपितु स्वयं कष्ट सहकर उसे अहसास दिलाना सबसे बड़ा दंड साबित हो सकता है।यही सत्याग्रह की ताकत थी।
5- किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त करना अन्याय को बढ़ावा देना है।
6- सत्याग्रह का उद्देश्य प्रतिकार लेना या किसी को कष्ट देना कदापि नहीं हो सकता।
7- अन्यायी व्यवस्था के खिलाफ जाने का सबसे सही तरीका है असहयोग।
8- तरह तरह के छोटे बड़े उचित अनुचित कर न भरकर व्यवस्था के साथ असहयोग किया जा सकता है।
अल्पना नागर
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