Monday 8 June 2020

जम्हूरियत में रोटी

जम्हूरियत में रोटी

वो लगे हुए थे
दिन रात
रोटियां उगाने में,
रोटियां बनाने में,
अभी निवाला दूर था,
हाथ से मुँह तक
रोटी भर का
फासला था!
कि तभी
जम्हूरियत के जमूरों का
एक झुंड आ पहुंचा
भाषा की आँच पर
बनी बनाई
रोटियां सेंकने..!
बदले में खड़ा कर गया
प्रतिनिधि बिजूका..
बिजूका,जो आपादमस्तक
भरा गया था
भूसे से,
मस्तक की जगह
रिक्त हंडिया थी,
मुखमंडल पर
पुता था चूना और कालिख़,
आँख नाक कान तक
बनाये गए थे
अपने हिसाब से!
सुना है आजकल
बिजूका की
बड़ी गहरी
दोस्ती है
कौओं से..
कौए आते हैं
कुछ क्षण टहलते हैं
रोटियां चुगते हैं,
कुछ खाते हैं,
कुछ बिगाड़ते हैं
और फिर
उसी के खाली मस्तक पर
विष्टा फैलाते हैं,
पर बिजूका तो बिजूका है जी!
एकदम तटस्थ,
भला उसे क्या आपत्ति !
अब रोटियों के मालिक हैं
चंद कौए..
कौए जो मुँह में
रोटी दबाए
दावा करते हैं
दो जून की रोटी दिलाने का!
वो जो न रोटी उगाते हैं
न रोटी बनाते हैं
बस झपट्टा मारते हैं
वो भी सर्वस्वीकार्य मोहर के साथ..!
बनी बनाई रोटियों से
मन बहलाते हैं,
बिगाड़ते हैं,
टुकड़े टुकड़े कर
इधर से उधर करते हैं !
नीचे खड़े हैं वो लोग
जो रोटी उगाते हैं
रोटी बनाते हैं
मगर अब भी
जिनके हाथ और मुँह के बीच
रोटी भर का फासला है!!
अंतड़ियों की अकुलाहट पर
वो जब चिल्लाते हैं
रोटी रोटी..
उन्हें परोसी जाती है
भाषा से सुसज्जित थाली!
तुमने देखा?
रोटियों के टुकड़े फैले हैं
हर जगह
और गिद्ध पहरा दे रहे हैं..!

Alpana Nagar

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