Saturday 18 June 2022

बारिश

 

बारिश बचपन की स्वरलिपि है

हाँ,मेरा बचपन बसता है
इन बारिशों में
झंकृत हो उठती हैं
हजारों पायलें
और एक बार फिर
चलाई जाती हैं
फुरसत के लम्हों पर
कागज़ की नावें
और चहकते चप्पू..
पहुँच जाती हूँ
मासूम सवालों की
टोलियों के बीच
जो कौतूहल भरी निगाहों से
देखती हैं हर चीज़
ये आसमां के उस सिरे से
ज़मीन तक टंगी
लम्बी पनीली झालरें
किसने बनाई !
या सरोवर में गिरती
टुपुक टुपुक
बूँदों की जलेबियाँ
कौन बना रहा है !
बूँदें गिरते ही
मिट्टी से
इत्र का ढक्कन
किसने खोला !
किसने उकेरे बादलों में
ढेर सारे सुनहरे चित्र!!
बिजली से कौंधते
सवालों के जवाब
चाहती हूँ कभी न मिले
इन्ही सवालों की उँगली थामे
लौट आता है बचपन
और जिंदा हो उठती हैं
मुझमें छुपी हुई बारिशें...

-अल्पना नागर

No comments:

Post a Comment