Friday 17 July 2020

मौन

मौन की अनुभूति

क्षणिकाएं

(1)

मौन
अटल दृढ़ प्रतिज्ञ
ध्रुव तारा है,
अनंत तारों के
बियावान में भी
सबसे प्रदीप्त..
सत्य शोधक,
पथ प्रदर्शक..!

(2)
जब भटक जाते हैं शब्द
अभिव्यक्ति की राह,
मौन मुखर हो उठता है.!

(3)
हजार शब्दों पर भारी
बस इक चुप
कोलाहल की भीड़ में
सबसे न्यारी
बस इक चुप..!

(4)
मौन
न्याय के तराजू का
भारी वाला हिस्सा है..
झूठ का शोर
कितना भी तेज हो
वजन हल्का ही होता है

(5)
मौन पूछता है सवाल
इंडिया गेट के
कैंडल मार्च से,
उदासीनता के बाद
क्या आवश्यक है
औपचारिकता का जुलूस..!!

(6)
सड़क पर
खून के धब्बों की जगह
बिखरे होते हैं प्रश्न..
और इंसानियत गुजर जाती है
निरुत्तर
सर झुकाए
मौन का मुखौटा ओढ़..!

(7)
वो जितना सहेगी,
मौन रहेगी
उतना ही
कहलाएगी
'संस्कारी'..!
उसका मौन रहना
पहचान है
आदर्श की..!

(8)
रात की पीठ पर
चलते हैं अक्सर
ताबड़तोड़
मौन के चाबुक..
बस्ती रात को
बहरी हो जाती है..!

(9)
मैंने देखा
मंच पर शब्द
टहल रहे थे
भाषा की अलंकृत
दुकान पर
चीख चीख कर
उछल रहे थे..
और भाव..?
वो पर्दे के पीछे
मौन का लबादा ओढ़
प्रतीक्षालय में खड़े थे..!

(10)
अहसास हैं
मौन रहकर भी
अनुभूत हो जाएंगे..
अल्फाज़ की चाशनी में
अक्सर रिश्ते
चिपचिपे हो जाते हैं..!

अल्पना नागर






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