Thursday 23 July 2020

एक अहाता

एक अहाता

बिखरी चीजें
किसे पसंद हैं !
वो हँसते हैं मुझपर..
अजीब है,
पर पसंद है मुझे
बेतरतीब होना
इधर उधर बिखरा होना,
बिना किसी परवाह के
कि क्या होगा
जब देखेंगे चार लोग. ..!
वो चार लोग
रखते हैं सजाकर
हर वस्तु बेहद
करीने से..
भरते हैं उड़ती तितलियों को
जार भर प्रदर्शनी में !
खूबसूरत रंग बिरंगी
मखमली तितलियां..
जार के ढक्कन पर
चिपके होते हैं
कुछ रंग उनके
संघर्षों के..!
उन करीने से सजे घरों में
रोशन होती हैं दीवारें
उन्हीं तितलियों के
मखमली रंगों से..!
माफ करना
मुझे बागीचा भी नहीं पसंद,
करीने से लगे पेड़,
एक सीध में
अनुशासित पंक्तिबद्ध
पसंद नहीं कि
कोई आये और आकर कतर दे
अभी अभी ताजा खिली
घास के उठे हुए सर..
मुझे पसंद है
अहाता..!
बेतरतीब..बिखरा हुआ अहाता,
अहाते में
इधर उधर भागते बच्चों की
शैतान टोली से
आवारा झाड़ झंखाड़,
पाँव अंदर तक धंस जाए
इस कदर
रूह को गुदगुदाती
सर उठाती घास का स्पर्श..
जहाँ आती है धूप
बेरोकटोक..
मनमानियों की
फिसलपट्टी पर,
खेलती है जी भर
आँख मिचौली..
हाँ, मुझे पसंद है..!
धूप का हस्तक्षेप,
ईश का रूह से
सीधा मिलन..!
चाहती हूँ
उम्र भर रहे
मेरे अंदर पनपता
बेतरतीब
अहाता कोई..
दौड़ती रहें जहाँ
मनमर्ज़ियों की
तितलियां..गिलहरियां
और आती रहे
बेरोकटोक
रोशन धूप..
जहाँ सुस्ता सके
स्याह अंधेरों में लिपटी
मेरी बेचैन रूह..!

अल्पना नागर





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