Thursday 2 July 2020

प्रिय आम

प्रिय आम

प्रिय आम !
शुक्रिया कि
जीवन के
भीषण तपते दिनों में
तुम आते हो
सुनहरी रंगत लिए..!
शुक्रिया
ये बताने के लिए कि
खुशबूदार और
रसीली होती है जिंदगी
बस तरीका आना चाहिए
उसे डूबकर
महसूस करने का..!
कभी जब देखती हूँ
गीली जमीन में
चूसकर फेंकी
कोई उपेक्षित गुठली
और उसमें अंकुरित होते
नन्हे पौध को
तो याद आता है
वाकई !!
क्या सचमुच आसान है
गुठली हो जाना?
मैंने सुना है यहाँ
निर्धारित हैं
गुठलियों के दाम भी..
आज से नहीं
कई युगों से..!
खैर,फिर भी..
प्यारे आम !
मुझे खुशी होती है
जब देखती हूँ तुम्हारे
अंतस में छिपी स्त्रीजात गुठली
और व्यक्तित्व में उपजी 
स्नेहिल मधुरता..!
जानना चाहती हूँ,
तुम गुठली की बदौलत हो
या गुठली तुम्हारी...!
खैर,
कभी साझा करना
वो गुर कि
किस तरह 'आम' होते हुए भी
बना जा सकता है 'खास'..!
कैसे तय किया
आम से 'राजा' तक का सफर..!
बताना कभी..
क्या सचमुच इसके लिए
दरकिनार करना पड़ता है
स्वयं को 
'आम' दुनिया से.. !!

अल्पना नागर

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