जानती हूँ
जानती हूँ !
ये वसंत का समय नहीं..
वृक्ष हो रहे हैं
पुष्प और पत्रविहीन/
किन्तु फिर भी
मैं चुन रही हूँ
मुरझाए हुए पुष्प
रिक्त हो चुकी टोकरी में
वसंत का स्वप्न आँखों में लिए/
कुंज गलियों में
पत्तों का गिरना जारी है
किन्तु फिर भी प्रिय,
तुम्हें पता है न!
मन की बगिया में कभी
पतझड़ नहीं होता..!
-अल्पना नागर
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