Tuesday, 15 March 2022

जानती हूँ

 जानती हूँ


जानती हूँ !

ये वसंत का समय नहीं..

वृक्ष हो रहे हैं

पुष्प और पत्रविहीन/

किन्तु फिर भी

मैं चुन रही हूँ

मुरझाए हुए पुष्प

रिक्त हो चुकी टोकरी में

वसंत का स्वप्न आँखों में लिए/


कुंज गलियों में 

पत्तों का गिरना जारी है

किन्तु फिर भी प्रिय,

तुम्हें पता है न!

मन की बगिया में कभी

पतझड़ नहीं होता..!


-अल्पना नागर



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