सूरज ढल रहा है
बहुत से ऐसे मौके आएंगे
जब जीवन के आकाश में
दुविधाओं के घने बादल छाएंगे...
सुख का वो सूरज
जो अब तलक था
ऊर्जा का असीम पिटारा..
धीरे धीरे ढलता जाएगा
ढलता जाएगा
पिघलता जाएगा/
ठीक उसी वक्त
मेरे मित्र..
तुम देखना आकाश में
उन्हीं बादलों से निकलती
आंखमिचौली करती
इंद्रधनुषी झिलमिल किरणें/
तुम देखना
थोड़ा मन्द पड़ा
निस्तेज हुआ ढलता सूरज
किंतु वही तो है
जो दमकता है सुर्ख रोली सा
सांझ के माथे पर..!
कभी देखना
उसके ढलने पर ही
नहाती है रात
शुभ्र शीतल चांद की चांदनी में..!
थोड़ा हाथ बढ़ाकर
बस एक बार पलट देना सूरज..!
सांझ के उस पार
तुम्हें नज़र आएगा
हंसता मुस्कुराता भोर का सूरज..
मित्र..
ये सच है
जीवन की सांझ में
सूरज ढलने लगता है
किंतु
सूर्यास्त के बिना
सूर्योदय संभव नहीं...!
-अल्पना नागर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4379 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए हृदय से आभार 💐💐
Deleteवाह! एक सूरज ढलता है तो दूसरा उगता भी है, सुंदर सृजन!
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया 😊💐
Deleteवाह सुंदर रचना
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया 😊💐
Deleteमित्र..
ReplyDeleteये सच है
जीवन की सांझ में
सूरज ढलने लगता है
किंतु
सूर्यास्त के बिना
सूर्योदय संभव नहीं...!
वाह…!!
बहुत बहुत शुक्रिया ,,😊🌻
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