Sunday 13 March 2022

लघुकथा

 लघुकथा

कर्ज का बोझ


'बेटी,मुझे तेरे फैसले पर कोई संदेह नहीं..पर जो तू कर रही है..ठीक है! सोच लिया तूने अच्छे से..?'

'जी,पिताजी..।' प्रतिभा के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक थी।

प्रतिभा नें मुंबई के प्रसिद्ध कॉलेज से एमबीए की डिग्री हासिल की थी।बहुत अच्छे अंकों से सफलतापूर्वक उच्चतर व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण की थी।बहुराष्ट्रीय कंपनी में लाखों के पैकेज पर कार्यरत भी थी।किंतु एक दिन अचानक वो सब कुछ छोड़कर गांव आ गई।

'पिताजी,मैं वहाँ नौकरी नहीं कर सकती।अजीब सी घुटन होती है।आपने पुरखों की जमीन बेचकर कर्ज लेकर मेरी शिक्षा सम्पूर्ण कराई..लेकिन मुझे लगता है,मैं इन सब के लिए नहीं बनी हूँ..।' 

प्रतिभा नें गांव की ही जमीन पर ऑर्गेनिक कृषि की शुरुआत की।समस्त गांव के लिए ये बात किसी अजूबे से कम नहीं थी।एक तो लड़की ऊपर से गैर पारम्परिक कार्य..खेतीबाड़ी के प्रबंधन संबंधी कार्य को अब तक सिर्फ पुरुषों तक ही सीमित माना जाता था,हाँ महिलाएं सहयोग जरूर करा सकती थी।लेकिन इन सबसे अलग प्रतिभा नें ऑर्गेनिक खेती का विकल्प चुना।धीरे धीरे गांव के ही जरूरतमंद लोगों को सहयोग के लिए दैनिक नौकरी पर रख लिया।प्रतिभा के बुद्धि चातुर्य और व्यावसायिक शिक्षा के असर से ऑर्गेनिक खेती भरपूर फलने फूलने लगी।आसपास के सभी गांवों व कस्बों तक उसकी फल सब्जियां जाने लगी।खेत से सीधे घरों तक डिलीवरी के विचार का लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया।इस छोटे से विचार से न केवल प्रतिभा को आत्मिक संतुष्टि मिली बल्कि गांव में रोजगार की राहें भी खुली।अब उसके गांव की विशिष्ट पहचान बन चुकी थी।ग्रामवासियों का जीवन स्तर सुधर रहा था।

'मैनें कहा था न पिताजी..मैं नौकरी के लिए नहीं बनी हूँ।'प्रतिभा नें पुरानी बात दोहराई।

'मुम्बई में काम के दौरान हर दिन मुझे लगता था कि कोई बहुत बड़ा बोझ मेरे सीने पर रखा है।मेरे गांव का मुझपर कर्ज बाकी था,जिसकी मिट्टी में बड़ी होकर मैं यहाँ तक पहुंची सिर्फ इसलिए कि विदेशी कम्पनियों को फायदा पहुंचा सकूँ..!नहीं पिताजी..अब समय आ गया कि गांव को सूद सहित उपहार लौटा सकूँ।'गर्वीली मुस्कान से प्रतिभा का चेहरा दमक रहा था।

प्रतिभा के पिता की आँखों में खुशी के आँसू थे।उन्हें भी लम्बे समय बाद काफी हल्का महसूस हो रहा था।


- अल्पना नागर

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