Tuesday 8 March 2022

लघुकथा

 लघुकथा

महिला सशक्तिकरण


"आपको महिला सशक्तिकरण पुरस्कार देते हुए हमें अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है।निस्संदेह आप इसकी हकदार हैं।" फोन के दूसरी ओर से आवाज आयी।"

"बस मैं थोड़ी देर में ही निकल रही हूँ..

हाँ..हाँ समय पर पहुँच जाऊंगी..।" दर्पण में स्वयं को निहारती सुमित्रा नें फोन पर उत्तर दिया।

"ये तो मेरा सौभाग्य है कि महिलाओं के हित में कार्य करने का अवसर मिल पा रहा है।विशेष रूप से निचले तबके की महिलायें जो बराबरी से सम्मानपूर्वक जीने की उतनी ही हकदार हैं जितने कि पुरुष..!"

मेकअप का फाइनल टच देते हुए फोन पर मधुर और विनीत आवाज में सुमित्रा नें कहा।

"दीदी जी..एक बात कहूँ..।"रसोई में काम करती कामवाली बाई नें झिझकते हुए पूछा।

"हम्म..मैं थोड़ा जल्दी में हूँ.. जल्दी कह जो भी कहना है..।"

"वो दीदी जी..आप ना आज बहुत ही सुंदर लग रही हो..बिंदी काजल में आपको कम ही देखती हूँ ना।आप रोज लगाया करो।"एक ही सांस में बात खत्म करती बाई नें कहा।

"अपनी औकात में रहा कर..ये तुम जैसे छोटे लोगों के साथ यही दिक्कत है जरा सी छूट दो तो सर पे बैठने को तैयार रहते हो तुम लोग..।"झल्लाते हुए सुमित्रा नें कहा।"और सुन शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना,मेरी कुछ सहेलियां आ रही हैं..पिछली बार की तरह नमक ज्यादा मत कर देना..वरना जानती है ना सैलेरी काट लूंगी.. समझी!"

-अल्पना नागर

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