Tuesday, 8 March 2022

स्त्रियां

 स्त्रियां 


कभी गौर से देखना

आकाश की ओर उन्मुख होकर भी

जड़ें जमीन से जुड़ी होती हैं

कुछ ऐसी ही होती हैं

स्त्रियां..

आंधी बारिश और झंझावतों में

यकीन की तरह दृढ़ होती जाती हैं

स्त्रियां..

गिराती हैं ग़लतियों के सूखे पात

क्षमाशील नित नए पत्तों से 

पल्लवित होती जाती हैं

स्त्रियां..


पल्लू में बांधकर रखती आयी हैं

नमक संस्कार और हिदायतें

मगर अब चाहती हैं कि 

रिहा हो जाये

सदियों से सलवट पड़ी गांठें..

पल्लू को जरा आज़ाद और

हिदायतों को नई राह दिखाना चाहती है

स्त्रियां.. 


"सुनो,ये काम तुम्हारे हैं

तुम्हारी ही जिम्मेवारी है

संतान की शिक्षा दीक्षा और संस्कार.."

"तुम नौकरी करोगी तो कौन सम्हालेगा घर!

सब तुम्हारी ग़लती है..

तुम्हारे ही लाड़ प्यार का नतीजा है

संतान का आवारा होना..!"


उलाहनों के ऐसे ठीकरों को ठोकर मार

अब खुद के लिए भी जीना चाहती हैं

स्त्रियां..


समय आ गया कि 

पहचाने वो स्वयं को..

उसकी क्षमताओं के केश खुले हो या 

फिर हों जुड़े में बंद

ये फैसला भी उसी का हो..!

मानक दुनियादारी से दूर 

बसाये वो अपनी दुनिया

जिसे देखे वो अपनी निगाह से

जहाँ हस्तक्षेप न हो

किसी और की मनमानियों का/


वो चाहे तो कर सकती है अभ्यास

दे सकती है पटखनी 

कठिनाइयों को/

पीठ पर परिवार और संतान को लादे हुए भी..

मगर अभ्यस्त नहीं होना चाहती

अपने ही चारों ओर बनाई बेड़ियों का..

पराश्रय की पकड़ छोड़ वो

उड़ना चाहे या

दौड़ना चाहे 

ये फैसला भी उसी का हो/

समय आ गया कि

न बना जाए उसकी राह का रोड़ा बल्कि

दिया जाए उसे रास्ता

रास्ता जिसकी शिल्पकार भी वो हो

और रहगुज़र भी वो खुद हो..!


-अल्पना नागर



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